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पाडवों की यादें समेटे हैगाव कोई

मुनेंद्र शर्मा, गढ़दीवाला : द्वापर युग में जब पांडवों को अज्ञातवास मिला था तो वे देश के कोने-क

By Edited By: Published: Wed, 20 May 2015 06:51 PM (IST)Updated: Wed, 20 May 2015 06:51 PM (IST)

मुनेंद्र शर्मा, गढ़दीवाला :

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द्वापर युग में जब पांडवों को अज्ञातवास मिला था तो वे देश के कोने-कोने में छुप कर अपना समय व्यतीत कर रहे थे। अज्ञातवास में जिस जगह पर भी पांडवों ने छुप कर समय व्यतीत किया वह स्थान इतिहास के पन्नों में जुड़ता चला गया।

इसी तरह के स्थानों में शुमार है कस्बा गढ़दीवाला के गाव कोई का वह देहरे वाली माता का मंदिर, यहां पांडवों ने अज्ञातवास के समय छुपकर अपना समय व्यतीत किया था, जिसे अब कुंती माता मंदिर के नाम से जाना जाता है। इतिहास बताता है कि अपने अज्ञातवास के अंतिम पड़ाव के दौरान पांडवों ने इस मंदिर वाली जगह पर पहले जंगल हुआ करता था वहां शस्त्रों को छुपाया था और इसी जगह पर उन्होंने अपनी माता कुंती के साथ कई साल गुजारा भी था। कहते हैं कि कई बार पांडव तप के लिए जंगल में जाते थे तो माता कुंती इसी स्थान पर बैठ कर तपस्या में लीन रहती थीं। तपस्या से कुछ समय निकाल कर पाडव यहां पडे़ छोटे-छोटे पत्थरों से पाच टेहनी खेला करते थे। इन पत्थरों में कला कृति आज भी पिंडी के रूप में विराजमान हैं। जिसे बाद में एक मंदिर का रूप दिया गया। इसी जगह पर कोई के नाम से गाव की स्थापना भी हुई। कहते है कि गाव बसने के बाद गाव वासियों पर कई प्रकार की कुदरती आपदा आती रहती थी, लेकिन जब से ग्रामीणों ने इस मंदिर की पूजा करनी आरंभ की तब से आपदा आनी कम हो गई।

गाव वासियों तथा मंदिर कमेटी की ओर से सालों से चली आ रही परम्पराओं को निभा कर हर साल यहां एक विशाल भंडारा आयोजित किया जाता है। इस दिन दूर दूर से हजारों की तदाद में लोग अपनी मन्नत पूरी होने पर बैंड बाजे के साथ माथा टेकने के लिए आते है।

परपरा के अनुसार पहले मंदिर में हवन डाला जाता है, बाद में झंडा चढ़ाने की रस्म को पूरा किया जाता है। मंदिर कमेटी के अध्यक्ष बाबू कुलबीर सिंह, गुरमेल सिंह, हजारा सिंह, सूबेदार महिंद्र सिंह, सूबेदार कुलदीप सिंह, नंबरदार किशन कुमार, नरेंद्र कुमार, बलजीत सिंह, बलकार सिंह, बलवीर सिंह आदि ने इस साल के भंडारे के लिए रस्म अदा की।

मंदिर के लिए किसी सरकार ने नहीं दी सहायता

गाव कोई के इस ऐतिहासिक मंदिर के निर्माण के लिए आज तक किसी भी सरकार ने ध्यान देने की जरूरत नहीं समझी। सरकारें आई और चल भी गई, लेकिन किसी भी सरकार ने इस मंदिर के जीर्णोद्वार के लिए अपनी पहल कदमी नहीं दिखाई। गाव की पूर्व सरपंच दर्शना देवी ने कहा कि मंदिर में आज जो भी निर्माण हुआ है वह गाव वासियों ने अपनी ओर से करवाया है।

गाव को कुंतीपुर का नाम भी नहीं मिला

गाव की पूर्व सरपंच दर्शना देवी ने बताया कि इस ऐतिहासिक मंदिर के नाम पर गाव का नाम कुंतीपुर रखने के लिए काफी लंबे समय से विभिन्न सरकारों से माग की जाती रही है, लेकिन किसी सरकार ने भी इस पर ध्यान नहीं दिया।


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