स्वतंत्रता संग्राम में रूपनगर का अहम योगदान
काली किंकर मिश्रा, रूपनगर : भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में रूपनगर का योगदान खास रहा है। यहां के स्वतंत्रता सेनानियों ने जांबाजी का प्रदर्शन करते हुए स्वतंत्रता संग्राम में अहम योगदान दिया है। चाहे 1857 का विद्रोह रहा हो या 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन, किसी भी मौके पर जिले के स्वतंत्रता सेनानियों ने ब्रिटिश सरकार से लोहा लेने में पिछे नहीं हटे। उपलब्ध साक्ष्यों के अनुसार रूपनगर जिले से करीब 117 स्वतंत्रता सेनानी रहे हैं। हालांकि, स्वतंत्रता संग्राम के दिनों में जिले का स्वरूप मौजूदा स्थिति से काफी अलग था। तब रूपनगर जिला अंबाला का हिस्सा हुआ करता था (मौजूदा जिले का बड़ा हिस्सा होशियारपुर का भी हिस्सा था) और यहां की अधिकांश गतिविधियों का केंद्र ऊना (हिमाचल प्रदेश) रहता था। संयुक्त रूपनगर जिला (मोहाली समेत) में 213 स्वतंत्रता सेनानियों का जिक्र मिलता है। यह गिनती संयुक्त रूपनगर जिले के दिनों में जिला लोक संपर्क विभाग की प्रकाशित पुस्तक पर आधारित है। जिले के गजेटियर से प्राप्त जानकारी के अनुसार यहां आजादी की अलख 1857 से ही शुरू हो गई थी। जिला गजट में जिले के पहले स्वतंत्रता सेनानी का नाम पंडित कांसीराम का आता है। इनका गदर मूवमेंट में बेहद उल्लेखनीय योगदान रहा है। यह गदर पार्टी के पहले खजांची थे। पंडित कांसीराम का जन्म 1882 में गांव मड़ौली कलां के ब्राह्मण परिवार में हुआ था। जिन्हें लाहौर सेंट्रल जेल में 27 मार्च 1915 को फांसी दे दी गई थी। बताया जाता है कि उस वक्त इनके परिवार की आर्थिक हालात इतनी दयनीय थी कि इनका परिवार केस की पैरवी के लिए वकील भी नियुक्त नहीं कर सके थे। रौलेट एक्ट के विरोध व असहयोग आंदोलन के वक्त भी जिले में खूब गदर मची थी। महात्मा गांधी के आह्वान पर यहां जोरदार प्रदर्शन हुआ था। विद्यार्थी स्कूल-कालेज छोड़कर सड़क पर उतर गए थे। विदेशी कपड़ों की जमकर होली खेली गई थी। मौजूदा खरड़ तहसील के गांव सियालवा माजरी की खूब चर्चा हुई थी। यहां स्वतंत्रता सेनानियों की विशेष बैठक हुई थी। इसके बाद 1947 तक यहां के स्वतंत्रता सेनानी सरगर्म रहे। भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान खरड़ में हुए विद्रोह की चर्चा स्वतंत्रता संग्राम के लिए मील का पत्थर के तौर पर होती है। सविनय अवज्ञा आंदोलन के वक्त भी जिले के सेनानियों ने अंग्रेजों के खिलाफ जमकर कहर बरपाया था। इस समय के जिले के स्वतंत्रता सेनानियों में मथुरादास गांधी, डा.वेदप्रकाश, गुरदासराम, जयकृष्ण दास, डा.रामनाथ पंडित आदि का जिक्र आता है। सियालवा माजरी, खरड़ व सोहाणा (तीनों अब मोहाली में) में स्वतंत्रता सेनानियों ने खूब सक्रियता दिखाई थी। सियालवा माजरी स्वतंत्रता संग्राम का केंद्र बनकर उभरा था। सियालवा माजरी की सक्रियता को देखते हुए इसे बिहार का बारदौली कहा जाने लगा था। इस दौरान पंडित मदन मोहन मालवीय, पंडित गोविंद बल्लभ पंत, लाला लाजपत राय, नेताजी सुभाषचंद्र बोस के आदि के जिले में किए गए दौरे का जिक्र मिलता है। खास बात यह भी है कि लाला लाजपत राय का बचपन रूपनगर में ही बीता था, इनके पिता राधा कृष्ण स्थानीय प्राइमरी स्कूल में शिक्षक थे। जिले के पुराने स्वतंत्रता सेनानियों में कृपा सिंह, जत्थेदार गुरदित्त सिंह, जत्थेदार उधम सिंह आदि की भी चर्चा होती है। कृपा सिंह शहीद करतार सिंह सराभा के साथी थे, जिन्हें अंग्रेजी हुकुमत ने समय-समय पर अलग-अलग जगहों पर करीबन बीस वर्षो तक नजरबंद रखा था। रूपनगर शहर के स्वतंत्रता सेनानी में नौबत राय दर्दी का नाम प्रमुखता से आता है। इनके बारे में जिक्र आता है कि शहीद भगत सिंह की फांसी के विरोध में जुलूस निकला था, तब ये कक्षा नौ के छात्र थे। ये स्कूल छोड़कर जुलूस में शामिल हो गए थे। इन्होंने करीबन तीन सौ तीन दिन जेल में गुजारे थे। महीनों नजरबंद रहे थे। स्वतंत्रता सेनानी किशन वैद्य कविराज की डिग्री हासिल करने के बाद आंदोलन में उतरे थे। बताया जाता है कि इन्होंने महात्मा गांधी के साथ दांडी मार्च में हिस्सा लिया था। इन्हें करीबन एक वर्ष जेल में गुजारना पड़ा था। सेनानी हरनाम सिंह का उन दिनों नाम हुआ करता था। ये अखबार में लेखन के साथ-साथ सियासी कांफ्रेंस में लोगों को प्रेरित करने का काम करते थे। स्वतंत्रता संग्राम के दिनों में यह बार-बार गिरफ्तार होते रहे थे। गजेटियर व लोक संपर्क विभाग द्वारा प्रकाशित किताब का अवलोकन करने से जाहिर होता है जिले में सिर्फ एक ही महिला स्वतंत्रता सेनानी थीं, जिनका नाम बीबी लाभ कौर जी था। ये गांव माजरी जंट्टां से जुड़ी हुई थी। इन्होंने इंडियन इंडिपेंडेंट लीग में हिस्सा लिया था। इन्हें करीबन सात माह जेल में बिताना पड़ा था। इसी तरह जिले के अन्य स्वतंत्रता सेनानियों ने देश को आजाद कराने में अमूल्य योगदान दिया था।
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