बढ़ती गर्मी से दूध उत्पादन गिरा, रेट में हुआ इजाफा
-दूध उत्पादन गिरने से ¨सथेटिक दूध के कारोबारी सरगर्म फोटो-16 जागरण संवाददाता, पटियाला बढ़ती
-दूध उत्पादन गिरने से ¨सथेटिक दूध के कारोबारी सरगर्म
फोटो-16
जागरण संवाददाता, पटियाला
बढ़ती गर्मी से दूध उत्पादन में करीब 20 फीसद की कमी आई है। आगामी दिनों में तापमान बढ़ने से उत्पादन के गिरते जा रहे ग्राफ में करीब पांच से आठ फीसद की गिरावट और दर्ज हो सकती है। मौजूदा हालात ने डेयरी विभाग और जिला सेहत अधिकारी की नींद उड़ा दी है। अर्थशास्त्र के अनुसार जब किसी वस्तु की मांग स्थिर रहे और उसका उत्पादन कम हो जाए तो मांग को पूरा करने के लिए या तो रेट में इजाफा होता है या वस्तु की क्वालिटी पर असर दिखना शुरू हो जाता है। मौजूदा हालात में सरकार किसी भी कंपनी को दूध के रेट में इजाफे की अनुमति नहीं दे सकती या यूं कहें के कोई भी कंपनी दूध के रेट में बड़ा इजाफा कर कोई मुसीबत मोल लेने की स्थिति में नहीं है। इस हालात में साफ है कि दूध की मांग पूरा करने के लिए दूध के कारोबारी या तो ¨सथेटिक दूध को बाजार में उतारने का प्रयास करेंगे या विभिन्न कंपनियों के दूध पाउडर को असल दूध में मिलाकर दूध की क्षमता को पूरा करने का प्रयास करेंगे। गुणवत्ता पर खरा न उतरने वाला दूध बाजार तक न पहुंचे, इसके लिए प्रत्येक साल गर्मी सीजन में डेयरी विभाग और सेहत विभाग को संयुक्त रूप से अतिरिक्त प्रयास करने पड़ रहे हैं।
डेयरी विभाग के निदेशक अशोक रौणी का कहना है कि दूध उत्पादन में करीब 25 फीसद से अधिक की गिरावट दर्ज होना शुरू हो चुकी है। उन्होंने बताया कि मार्च महीने के अंत तक छह फैट दूध का रेट करीब 32 रुपये थे, लेकिन मई माह के शुरू से इसके रेट में साढे़ तीन रुपये का उछाल आया है। उन्होंने बताया कि इस समय साढ़े छह फैट का दूध साढ़े 35 रुपये के हिसाब से बाजार में बिक रहा है और कई दुकानदारों ने तो अपनी कमाई को बढ़ाने के लिए असल दूध देने के बदले इसके रेट को करीब 40 रुपये किलो तक पहुंचा दिए हैं। दूध की गुणवत्ता को लेकर पूछे सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि दूध की गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए वर्ष 2011 तक दूध की सैंप¨लग करने का अधिकार उनके पास था, लेकिन इसके बाद ये अधिकार जिला सेहत अधिकारी को दे दिया गया है। उन्होंने दावा किया कि जिला सेहत अधिकारी दूध की गुणवत्ता को परखने के लिए क्या जानकारी रखते हैं, उसके लिए वह किसी भी समय उनके साथ बहस के लिए तैयार है। उन्होंने दावा किया कि सेहत विभाग को दूध की गुणवत्ता की परख करना तो दूर, वह दूध के सैंपल तक तय नियमों अनुसार भरने की तकनीक ठीक से नहीं जानते। उन्होंने कहा कि उन्हें इस बात से कोई दुख नहीं है कि उनके पास दूध के सैंपल भरने का अधिकार नहीं है, लेकिन इस बात का दुख जरूर है कि बाजार में बिना गुणवत्ता वाला दूध पीकर लोग विभिन्न प्रकार की बीमारियों का शिकार हो रहे हैं।
दूध उत्पादक कर रहे पाउडर का इस्तेमाल
उनका कहना है कि दूध उत्पादक दूध की मांग को पूरा करने के लिए इन दिनों विभिन्न कंपनियों द्वारा बनाए जा रहे दूध पाउडर का प्रयोग कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि करीब 20 रुपये किलो में मिलने वाले दूध पाउडर में करीब सात लीटर पानी मिलाकर करीब आठ लीटर दूध तैयार किया जा सकता है। इस दूध को अन्य दूध में मिलाकर उसे 35 से 40 रुपये किलो में आसानी से बेच दिया जाता है। 200 रुपये किलो के दूध पाउडर को कारोबारी बड़ी चालाक से 320 रुपये में बेचकर 120 से 150 रुपये की कमाई कर रहे हैं। हालांकि इस दूध से कोई बड़ी बीमारी फैलने का खतरा नहीं है, लेकिन दूध से जो तत्व मानव शरीर को मिलने चाहिए वे उसे नहीं मिल पाते। इसके अतिरिक्त आम आदमी पैसे खर्च करने के बाद भी बाजार से सही वस्तु नहीं खरीद पा रहा है।