विद्या पर न करें अभिमान : दिव्यानंद
संवाद सहयोगी, श्री मुक्तसर साहिब 'अतिथि देवो भव। अर्थात घर आया अतिथि देव तुल्य होता है, इसलिए क
संवाद सहयोगी, श्री मुक्तसर साहिब
'अतिथि देवो भव। अर्थात घर आया अतिथि देव तुल्य होता है, इसलिए कभी भी अतिथि का अपमान न करें। घर आए अतिथि की सेवा का पुण्य कमाएं। अतिथि की सेवा भगवान की सेवा समान है। यह विचार श्री रघुनाथ मंदिर में चल रहे माघ महात्म्य श्रीमद् भागवत ज्ञान यज्ञ कार्यक्रम के दौरान श्री मोहन जगदीश्वर आश्रम कनखल हरिद्वार के अनंत श्री विभूषित 1008 महामंडलेश्वर स्वामी दिव्यानंद गिरि जी महाराज ने श्रद्धालुओं के विशाल जनसमूह के समक्ष व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि व्यक्ति को अपनी विद्या पर कभी अभिमान नहीं करना चाहिए। जो व्यक्ति अपनी विद्या पर अभिमान करता है और दूसरों को हमेशा नीचा दिखाने की कोशिश करता रहता है। वह मरणोपरांत राक्षस बनते हैं। दिव्यानंद जी ने कहा कि सत्य के अनुभव के बिना सेवा नहीं की जा सकती। जिस प्रकार बिना नींव के मकान नहीं बन सकता, उसी प्रकार सद्कर्मों के बिना सेवा का फल भी नहीं मिल सकता। सेवा नि:स्वार्थ भाव से ही की जानी चाहिए। सत्संग की महिमा सुनाते हुए स्वामी जी ने कहा कि सत्संग अर्थात सत्य के साथ जोड़ने वाला संग। जो सत्य से जोड़ता है उसे सत्संग कहते हैं। मगर ¨चता की बात है कि आज कोई भी सत्य के साथ जुड़ना नहीं चाहता। मोह-माया के जाल में फंसा मनुष्य चाहकर भी सत्य का दामन नहीं थामना चाहता। उस पर सत्संग मिलना तो और भी सौभाग्य की बात हो जाती है। सत्संग में बैठकर मनुष्य को मन को एक्रागचित बनाना चाहिए। सत्संग में बैठकर भी अगर मन इधर-उधर भटकता रहेगा तो सत्य के साथ संग होना मुश्किल है। जो श्रद्धालु सत्संग में आकर प्रभु के रंग में रंग जाते हैं उन्हें ही सत्संग का सही अर्थ पता चलता है। सत्संग श्रवण करने वाले को खुद इस बात का अहसास होना चाहिए कि जिस प्रभु की कथा इतनी सुंदर है वह खुद कितने सुंदर होंगे। जब तक इस बात का अहसास नहीं होता तब तक कथा या सत्संग श्रवण का कोई लाभ नहीं। हरि नाम की चर्चा करते हुए स्वामी जी ने कहा कि जो भक्त पूर्ण श्रद्धा-विश्वास के साथ हरि नाम का संकीर्तण करता है उसके हर प्रकार के पाप, ताप और संताप मिटकर खत्म हो जाते हैं। इस मौके पर बड़ी गिनती में श्रद्धालु उपस्थित थे।