ईश्वर को समर्पण भाव ही प्रिय है
- धर्म तो प्रेम के प्रकाश का पुंज है फोटो संख्या 10,11 संवाद सूत्र, मलोट (श्री मुक्तसर साहिब)
- धर्म तो प्रेम के प्रकाश का पुंज है
फोटो संख्या 10,11
संवाद सूत्र, मलोट (श्री मुक्तसर साहिब)
दिव्य ज्योति जागृति संस्थान की ओर से श्रीमद्भागवत महापुराण साप्ताहिक कथा ज्ञानयज्ञ के छठे दिन साध्वी वैष्णवी भारती ने भगवान कृष्ण के मथुरागमन लीलाओं का वर्णन किया। उन्होंने बताया कि कंस की आज्ञा अनुसार अकू्रर जी कन्हैया और दाऊ को मथुरा ले जाने के लिए वृंदावन की ओर बढ़ते है। गांव में यह समाचार फैलाते हैं की अब कृष्ण और दाऊ गांव छोड़कर जा रहे हैं। सभी मायूस हो जाते है। क्योंकि गांव वासियों की आत्मा ही कृष्ण जी थे। जिसकी आत्मा ही निकल जाए वे गांव वासी कैसे बच सकते है। जब कृष्ण जी मथुरा गए तो सारा गांव शव के समान बन गया। आज लोग करते है कि अध्यात्म को धर्मनिर्पेक्ष होना चाहिए। जो धर्म को संप्रदाय समझते है वे ही ईष्र्या, वैर, हिंसा को जन्म देने वाली सांप्रदायिकता को उत्पन्न करते है। इस तरह एक दूसरे को बड़ा सिद्ध करने की होड़ लग जाती है। धर्म तो प्रेम के प्रकाश का पुंज है। समाज प्रेम सौहार्द के रंग में रंगता है। ये सब धर्म के विज्ञान पक्ष को जीवन में क्रियान्वित होगा। हमारे महापुरुष कहते है कि जल तो एक ही है। लेकिन पात्र विभिन्न होने के कारण उसका आकार अलग होने से जल में भी विभिन्नता पाई जाती है। ईश्वर को एक ही भाव प्रिया है और व है समर्पण भाव। जिसमें बांसुरी जैसी भक्ति तथा त्याग की भावना हो जो प्रभु के हाथों का यंत्र बनना चाहता हो वही परमात्मा को पा सकता है।