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धड़ल्ले से बेची जा रही है पाबंदीशुदा मछली

राघव मेहता, मोगा : केंद्र व राज्य सरकार द्वारा जहां मांगूर मछली पालन व बेचने पर पूर्ण पाबंदी लगाई हु

By Edited By: Published: Wed, 25 Nov 2015 06:16 PM (IST)Updated: Wed, 25 Nov 2015 06:16 PM (IST)
धड़ल्ले से बेची जा रही है पाबंदीशुदा मछली

राघव मेहता, मोगा : केंद्र व राज्य सरकार द्वारा जहां मांगूर मछली पालन व बेचने पर पूर्ण पाबंदी लगाई हुई है। वहीं मोगा के जीटी रोड की मछली मार्केट में दुकानदारों की ओर से मांगूर मछली को धड़ल्ले से बेचा जा रहा है। दुकानदारों का कहना है कि वह विभाग के अधिकारियों को महीना देकर मांगूर मछली मार्केट में बेच रहे हैं।

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इस संबंधी मछली विक्रेता रामधर पुत्र शकलसैन निवासी धल्लेके ने बताया कि रेहू, मुराख, बग्रेड नस्ल की मछली बेचकर कम लाभ होता है, जबकि मांगूर मछली 40 से 60 रुपये किलो मिल जाती है और 100 से 120 रुपए किलो बिकती है। विभाग के कर्मचारी हर महीने उनसे पैसे लेते हैं।

इस संबंधी जब मछली पालन विभाग के सहायक प्रोजेक्ट अफसर दलबीर ¨सह से बातचीत की तो उन्होंने कहा कि विभाग के किसी भी कर्मचारी द्वारा मछली मार्केट में से कोई पैसे नहीं लिया जाता। मछली मार्केट के दुकानदारों की ओर से लगाए गए आरोप बेबुनियाद हैं। उन्होंने कहा कि विभाग की सख्ती के बावजूद भी अगर कोई दुकानदार ऐसा करता है तो उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

क्यों लगाई गई मांगूर मछली के पालन और बेचने पर पाबंदी

केंद्र व राज्य सरकार द्वारा मांगूर मछली पालन व बेचने पर पाबंदी को लेकर मछली पालन विभाग के सहायक प्रोजेक्ट अफसर दलबीर ¨सह ने बताया कि थाईलैंड के एक विज्ञानी गिराई फीनस की ओर से मांगूर ब्रीड की खोज पानी में से गंदगी खत्म करने के लिए की गई थी, क्योंकि यह मछली मांस खाकर पानी में से गंदगी जैसे लाशें व अन्य गंदगी खाकर पानी साफ कर देती है। इसके अंतर्गत इसको इंडिया में लाया गया, परंतु इस मछली ने दरियाओं की गंदगी के साथ छोटी मछलियों को भी खाना शुरू कर दिया। इस कारण सरकार की करोड़ों रुपये की आमद कम हो गई, इसलिए सरकारों ने इस पर पूर्ण पाबंदी लगाई हुई है।


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