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रोजाना चार लाख लीटर पानी साफ कर इस्तेमाल में ला रहा जीएनई

राजीव पाठक, लुधियाना बॉयो फिल्टर बेस्ड टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर गुरु नानक देव इंजीनिय¨रग कॉलेज ने

By JagranEdited By: Published: Thu, 20 Jul 2017 10:29 PM (IST)Updated: Thu, 20 Jul 2017 10:29 PM (IST)
रोजाना चार लाख लीटर पानी साफ कर इस्तेमाल में ला रहा जीएनई
रोजाना चार लाख लीटर पानी साफ कर इस्तेमाल में ला रहा जीएनई

राजीव पाठक, लुधियाना

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बॉयो फिल्टर बेस्ड टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर गुरु नानक देव इंजीनिय¨रग कॉलेज ने सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) लगा कर पहल की है। यह रोजाना चार लाख लीटर पानी साफ कर रहा है। सीवरेज का पानी ट्रीटमेंट के बाद पूरी तरह से साफ हो जाता है। उसकी बदबू, गंदगी और बैक्टीरिया भी खत्म हो जाते हैं। सीवरेज के पानी की पहली स्टेज में बीओडी - 360 मिग्रा होती है। इसे साफ करने के बाद बीओडी केवल 10 मिलीग्राम रह जाता है। जो कि सामान्य से भी कम है। इस पानी का दोबारा इस्तेमाल किया जा सकता है। जीएनई इस पानी का इस्तेमाल सिंचाई के लिए कर रहा है। महानगर में रोजाना 80 करोड़ लीटर पानी सीवरेज में बहा दिया जाता है। यह पानी सतलुज को प्रदूषित करता है। इसके प्रदूषण का शिकार बुढ्डा दरिया बुढ्डा नाला में तब्दील हो गया है। नाले की सफाई व सीवरेज के पानी को साफ करने के लिए अरबों रुपये के प्रोजेक्ट तैयार हुए, लेकिन फेल साबित हुए।

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पानी को फिर इस्तेमाल के लिए लगाया गया प्लांट : डॉ. चीमा

कॉलेज के प्रोफेसर डॉ. पीपीएस चीमा बताते हैं कि जीएनई कॉलेज में रोजाना चार लाख लीटर पानी का इस्तेमाल होता है। यहां पहले सेप्टिक टैंक में पानी जाता था। हमने कारगर टेक्नोलॉजी पर विचार किया। हमने बॉयो फिल्टर बेस्ड एसटीपी प्लांट लगाने का फैसला किया। इसकी रनिंग व मेनटेनेंस कास्ट बहुत कम है। हम रोजाना चार लाख लीटर पानी केवल 2 हजार रुपये के खर्च पर साफ करते हैं।

डेढ़ करोड की लागत आई, अनट्रेंड भी कर सकता है ऑपरेट

डॉ. चीमा ने बताया कि कॉलेज में 5 लाख लीटर क्षमता वाला प्लांट करीब 1.45 करोड़ रुपये की लागत से 11 सौ स्क्वॉयर मीटर एरिया में लगाया गया है। इसे अनट्रेंड आदमी ऑपरेट कर सकता है। इसे दिल्ली की एक कंपनी के जरिए लगवाया गया है।

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इन पांच चरणों से होकर गुजरता है पानी

इस तकनीक पर आधारित प्लांट में पांच चरणों सीवरेज के पानी को ट्रीटमेंट किया जाता है।

स्क्रीनिंग

सीवरेज के पानी को पहले स्क्रीन चेंबर से गुजारा जाता है। जहां प्लास्टिक के कूड़े, कपड़े, टुकड़े, ईट व पत्थर के टुकड़े अलग हो जाते हैं। पानी को स्टोरेज टैंक में जमा किया जाता है। फिर पंप के सहारे डिग्रीटर तक पहुंचाया जाता है। यहां से बहुत छोटे टुकड़े पानी से अलग किए जाते हैं।

बायो फिल्टर

इस चरण में प्लास्टिक क्रेटों की तीन लेयरों में अर्थ वार्म (केंचुआ) को रखा जाता है। क्रेटों में कॉटन वेस्ट (कपास के पौधे के टुकड़े) रखे जाते हैं। इसके ऊपर डिग्रीटर से साफ हो कर आए सीवरेज के पानी को डाला जाता है। अर्थ वार्म सीवरेज के पानी के अंदर मौजूद विभिन्न तरह के अवयवों को खा जाते है और पानी साफ हो जाता है।

ग्रेविटी सैंड फिल्टर

इस चरण में बॉयो फिल्टर से पानी सेंड फिल्टर में गिरता है। इसमें रेत की परतें बिछाई जाती हैं। इसमें से पानी साफ होकर स्टोरेज टैंक में जमा होता है।

प्रेशर सैंड फिल्टर

ग्रेविटी सैंड फिल्टर के बाद प्रेशर सैंड फिल्टर में प्रेशर पानी छोड़ा जाता है। इससे बारिक से बारीक कण निकल जाते हैं और पानी बिल्कुल साफ हो जाता है। इसमें गंध व रंग खत्म हो जाता है।

ओजोनेशन

प्रेशर सैंड फिल्टर होने के बाद पानी में बैक्टीरिया रह जाते हैं। ये खत्म होते हैं ओजोनेशन के जरिए। यह पानी में मौजूद बैक्टीरिया को मार देता है।


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