जनहित जागरण : बूंद-बूंद पानी जुटाकर दिखाई राह
आशा मेहता, लुधियाना : जल ही जीवन है। लेकिन इस जीवनदायिनी के संरक्षण के प्रति बहुत कम लोग गंभीर है
आशा मेहता, लुधियाना : जल ही जीवन है। लेकिन इस जीवनदायिनी के संरक्षण के प्रति बहुत कम लोग गंभीर हैं। यही कारण है कि धरती की कोख लगातार सूखती जा जा रही है। इस सूखती कोख को देख मुल्लांपुरदाखा इलाके के गांव मंडियाणी निवासी राजविंदरपाल सिंह राणा का हृदय तड़प उठा। उन्होंने अत्यंत दयनीय हालत में पड़े नौ छप्पड़ों को साफ किया। उसमें बूंद-बूंद जल एकत्रित कर जहां लोगों को जल संरक्षण के प्रति प्रेरित किया, वहीं छप्पड़ों में मछलीपालन कर समाज को एक नई राह दिखाई। वर्ष 2013 में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक समारोह के दौरान मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल की मौजूदगी में राजविंदरपाल के प्रयासों की प्रशंसा भी की। मुल्लांपुरदाखा के गांव मंडियाणी निवासी राजविंदरपाल सिंह राणा ने वर्ष 2000 में एमबीए करने के बाद दो वर्ष तक एक निजी कंपनी में नौकरी की। नौकरी के दौरान वर्ष 2002 में वह मुल्लांपुरदाखा इलाके के गांव पमाल गए, तो वहां गंदगी से भरे छप्पड़ों को देखकर चिंतित हो उठे। उन्होंने बदहाली का शिकार छप्पड़ों को साफ कराकर इसी से अपनी किस्मत बदलने की राह निकाली। फिश फार्मर डेवलपमेंट एजेंसी व पीएयू से प्रशिक्षण लेने के बाद वह दोबारा गांव पमाल गए। उन्होंने पंचायत से गंदगी से अटे पड़े छप्पड़ को ठेके पर लिया और गांव के लोगों से अनुरोध किया कि वह घरों से निकलने वाले गंदे पानी को यहां-वहां व्यर्थ में बहाने की बजाय नालियों के जरिए छप्पड़ तक पहुंचाएं। इसके बाद गांववालों ने गंदे पानी को छप्पड़ में छोड़ना शुरू कर दिया। राजविंदर ने छप्पड़ में जमा होने वाले गंदे पानी का शोधन कर उसमें मछलीपालन शुरू कर दिया। अब वह मुल्लांपुरदाखा के गांव मंडियाणी, मोरिंडा के गांव घुड़वा, मानसा के जोगा धरना, अलीशेर खुर्द, अनूपगढ़ सहित अन्य गांवों में 70 एकड़ में फैले नौ छप्पड़ों की सफाई कर बडे़ स्तर पर मछली पालन करा रहे हैं। इन छप्पड़ों में उन्होंने वर्षा जल संग्रहण की व्यवस्था भी की है। इससे बारिश की एक-एक बूंद से धरती मां की सूखती कोख फिर से भरती जा रही है।
जल संरक्षण के क्षेत्र में उनके उल्लेखनीय कार्यो को देखते हुए वर्ष 2013 में बाबू जगजीवन राम नेशनल अवार्ड व आस्ट्रेलिया की न्यू फीड आर्गेनाइजेशन की ओर से न्यू फीड कॉलर्स अवार्ड भी प्रदान किया जा चुका है। जविंदर ने कहा कि प्रदेश में करीब आठ हजार छोटे-बड़े छप्पड़ हैं। इनमें से ज्यादातर गंदगी से अटे पड़े हैं। अगर उनकी तरह ही दूसरे गांवों के लोग भी वैज्ञानिक तकनीक का सहारा लेकर छप्पड़ों को साफ करें, तो इससे न सिर्फ जल संरक्षण होगा, बल्कि छप्पड़ों में मछलीपालन कर अपनी किस्मत भी बदल सकते हैं।