200 साल से मेहरा परिवार उठा रहा भगवान राम का सिंहासन
कृष्ण गोपाल, लुधियाना : समय बदल रहा, लेकिन वर्षो पुरानी कुछ परंपराएं आज भी अपने मूल स्वरूप में जीवित
कृष्ण गोपाल, लुधियाना : समय बदल रहा, लेकिन वर्षो पुरानी कुछ परंपराएं आज भी अपने मूल स्वरूप में जीवित हैं। शारदीय नवरात्र के मौके पर महानगर के पुराने शहर में 200 साल से भी अधिक समय से प्रभु श्रीराम की सिंहासन की यात्रा निकालने का क्रम जारी है। 11 दिन तक एक ही परिवार से संबधित 12 लोग अपने कंधो पर प्रभु श्रीराम के सिंहासन (डोला) को ठाकुरद्वारा से उठाकर विभिन्न इलाकों से होते हुए दरेसी के रामलीला मैदान में पहुंचते हैं। इसी प्रकार सिंहासन को यहा से उठाकर ठाकुरद्वारा ले जाते हैं। यह क्रम 11 दिन तक चलता है। गांव सुनेत का मेहरा परिवार 4 पीढि़यों से सिंहासन को उठाता आ रहा है।
पीढ़ी दर पीढ़ी चल रही परंपरा
महिंद्र सिंह ठेकेदार ने बताया कि करीब पिछले 70 साल वह अपने भाइयों व रिश्तेदारों की के साथ सिंहासन का उठाते आ रहे हैं। इससे पहले उनके पिता बाबूराम भी यहीं कार्य करते थे। अब उनकी तीसरी व चौथी पीढ़ी भी इस परंपरा को आगे बढ़ा रही है। उन्होंने ने बताया कि उनका बेटा परमिंद्र सिंह बैंक में कार्यरत है, शेष लोग दिहाड़ीदार हैं।
उन्होंने बताया कि इस बार परमिंद्र सिंह, जगरूप सिंह, मक्खन सिंह, मीरी सिंह, हनी सुनेत, गुरुचरण, जोगिन्द्र सिंह मेहरा, बिक्र सिंह, मनप्रीत मेहरा, आशु मेहरा, मनी पमाल, सनप्रीत मेहरा सिंहासन को उठा रहे हैं।
सिंहासन उठाने से मिलती है आत्मिक शक्ति : महिंद्र सिंह
महिंद्र सिंह ने बताया कि प्रभु श्रीराम के सिंहासन को उठाने से आत्मिक शक्ति मिलती है। लगभग 7-8 क्विंटल के इस सिंहासन को उठाने के पीछे प्रभु श्रीराम की कृपा ही मानते हैं।
पहले किले से उठाया जाता था सिंहासन
ठाकुरद्वारा में स्थित श्री हनुमान मंदिर के महंत कृष्ण बावा जी ने बताया पहले इस सिंहासन को किले से उठाया जाता था। लेकिन लेकिन 1857 के बाद इसे ठाकुरद्वारा के हवाले कर दिया गया। तब से यह सिंहासन ठाकुरद्वारा से सजकर दरेसी पहुंचता है। उन्होंने बताया कि पहले उनके दादा महंत मथुरादास उनके पिता महंत नंदकिशोर की अध्यक्षता में इसे उठाया जाता था। अब उनका बेटा महंत गौरव बाबा अपने परिवार की परंपरा को आगे बढ़ा रहा है।
चार साल पहले बदला गया सिंहासन
सिंहासन उठाने वाले परमिंद्र सिंह व जगरूप सिंह ने बताया कि लगभग 4 साल पहले पुराने सिंहासन की जगह नया सिंहासन बनाया गया है।