बिना कर्म किए फल की प्राप्ति नहीं : पंडित कृष्ण मुरारी
संवाद सूत्र, फगवाड़ा श्रीमद्भागवत कथा के पांचवे दिन व्यासपीठ पर विराजमान पंडित कृष्ण मुरारी जी महार
संवाद सूत्र, फगवाड़ा
श्रीमद्भागवत कथा के पांचवे दिन व्यासपीठ पर विराजमान पंडित कृष्ण मुरारी जी महाराज (वृन्दावन वाले) ने श्रीमदभागवत कथा के पाचवें दिन श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं पर चर्चा की। पंडित कृष्ण मुरारी जी ने भगवान की माखन चोरी लीला और पूतना वध जसे रोचक प्रसंग पर विस्तार से प्रकाश डाला।
पंडित जी ने कहा कि भगवान की लीला जीवनोपयोगी है, इसे आत्मसात कर हम अपना यही लोक और परलोक दोनों सुधार सकते हैं। भगवान कृष्ण की लीला के प्रसंग को सुनाते हुए बताया कि भगवान को जो भाव से थोड़ा देता है उसे भगवान संपूर्ण सुख प्रदान कर देते हैं। पंडित जी ने गिरिराज पूजनोत्सव के सरस वर्णन से कथा का विस्तार किया। सरस प्रसंगो, आख्यानों, एवं संगीतमय भजनों पर श्रोता जमकर झूमे एवं भावविभार होकर जय ध्वनि एवं करतल ध्वनि करते रहे। मनमोहक झॉकियों के माध्यम से प्रभु की सरस ललित ब्रज लीलाओं का प्रस्तुतीकरण किया गया। गोवर्धन का अर्थ है गौ संवर्धन। भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत मात्र इसीलिए उठाया था कि पृथ्वी पर फैली बुराइयों का अंत केवल प्रकृति एवं गौ संवर्धन से ही हो सकता है। उन्होंने कहा कि अगर हम बिना कर्म करे फल की प्राप्ति चाहेंगे तो वह कभी नहीं मिलेगा, कर्म तो हमें करना ही होगा। पंडित जी ने गोवर्धन पर्वत की कथा सुनाते हुए कहा कि इंद्र के कुपित होने पर श्रीकृष्ण ने गोवर्धन उठा लिया था। इसमें ब्रजवासियों ने भी अपना-अपना सहयोग दिया। श्रीकृष्ण ने ब्रजवासियों की रक्षा के लिए राक्षसों का अंत किया तथा ब्रजवासियों को पुरानी चली रही सामाजिक कुरीतियों को मिटाने एवं निष्काम कर्म के जरिए अपना जीवन सफल बनाने का उपदेश दिया। इसके जरिये जलवायु एवम प्राकृतिक संसाधन का धन्यवाद दिया जाता है। इस पूजा के कारण मानवजाति में इन प्राकृतिक साधनों के प्रति भावना का विकास होता है। यह पूजन यह सन्देश देता हैं कि हमारा जीवन प्रकृति की हर एक चीज़ पर निर्भर करता हैं जैसे पेड़-पौधों, पशु-पक्षी, नदी और पर्वत आदि इसलिए हमें उन सभी का धन्यवाद देना चाहिए। भारत देश में जलवायु संतुलन का विशेष कारण पर्वत मालायें एवम नदियां हैं। इस प्रकार यह पूजन इन सभी प्राकृतिक धन संपत्ति के प्रति हमारी भावना को व्यक्त करता हैं। इस मौके पर मंदिर में गिरिराज पर्वत की झाकी सजाई गई एवं अन्नकूट एवं छप्पन भोग लगा कर श्रद्धालुओं को प्रसादी वितरित की गई।