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सुराखों से पहुंचे सांसों तक

By Edited By: Published: Tue, 17 Apr 2012 01:52 AM (IST)Updated: Tue, 17 Apr 2012 01:52 AM (IST)
सुराखों से पहुंचे सांसों तक

अरविंद श्रीवास्तव, जालंधर

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पहाड़ सा मलबा और उसके अंदर अटकी सांसों तक पहुंचने के रास्ते तलाशे जा रहे थे। समझ से परे था कि दाखिल हुआ कैसे जाए? तभी नेशनल डिजास्टर रेसक्यू फोर्स के जवानों की ओर से दीवार में खोदे गए एक सुराख ने वो जगह तलाश ली, जिसके अंदर जाने कितने सांसें अटकी हुई थीं। बस इसी के बाद शुरू हो गया रेसक्यू फोर्स का आपरेशन।

रात करीब 12.45 बजे जालंधर के डिप्टी कमिश्नर प्रियंक भारती ने नेशनल डिजास्टर रेसक्यू फोर्स के कमांडेंट राजिंदर कुमार वर्मा को शीतल फाइबर्स की बिल्डिंग के ढह जाने की सूचना दी। सूचना मिलने के साथ ही कमांडेंट वर्मा ने 45 सदस्यों की एनडीआरएफ की एक टुकड़ी को जालंधर के लिए रवाना कर दिया, जो सुबह करीब पांच बजे घटना स्थल पर पहुंच गई। पहुंचने के साथ ही टीम ने मोर्चा संभाल लिया, लेकिन इतने लोगों से हालात पर काबू नहीं पाया जा सकता था। लिहाजा कमांडेंट वर्मा अपने सहयोगी नित्यानंद गुप्ता के साथ 45 सदस्यों की दूसरी टुकड़ी को लेकर दोपहर करीब 12 बजे तक जालंधर पहुंच गए। कमांडेंट वर्मा के पहुंचने के साथ ही आपरेशन ने तेजी पकड़ ली।

तभी शीतल फाइबर्स के बगल की बिल्डिंग की दीवार में एक-एक कर इंस्पेक्शन होल किए जाने लगे। पहला प्रयास तो खाली चला गया, लेकिन दूसरी कोशिश रंग लाई। इंस्पेक्शन होल के साथ ही एनडीआरएफ जवानों ने कैमरा लगाकर मलबे के अंदर फंसे लोगों की तलाश कर ली। तकरीबन 360 डिग्री पर सुराख के अंदर कैमरे को घुमाने के बाद मलबे के अंदर के हालात पता चलने लगे। मलबे के अंदर से जीवित बचे लोगों की कुछ आवाजें आने लग गईं। दोपहर करीब चार बजे तक एनडीआरएफ जवान मलबे के अंदर फंसे करीब नौ लोगों को जीवित निकाल चुके थे। इस बीच दो श्रमिकों की लाशें भी बाहर निकाली जा चुकी थीं।

कमांडेंट वर्मा ने बताया कि मलबे के अंदर दबे लोगों को 24 घंटे में बाहर निकाला जा सकेगा। उनकी पूरी कोशिश है कि पहले घायलों को बाहर निकाला जाए, ताकि उनके जानमाल की रक्षा की जा सके। राहत कार्य में लगे जवानों को पीछे से सहयोग देने के लिए उन्होंने एनडीआरएफ जवानों की तीसरी टुकड़ी को भी बठिंडा से जालंधर बुला लिया है। इसमें भी 45 जवान शामिल हैं। देर शाम खबर लिखे जाने तक एनडीआरएफ जवानों का आपरेशन जारी रहा।

इन औजारों का हुआ इस्तेमाल

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-लाइफ डिटेक्टर टाइम (मलबे में जीवन की पहचान के लिए)

-विक्टिम लोकेशन कैमरा (मलबे में दबे लोगों की तलाश के लिए)

-रोटरी रेसक्यू शा (सुराख को बड़ा करने के लिए)

-चीपिंग हैमर (दीवार को खोदने लिए)

-चेन शा (छोटी आरी जो सुराख बनाने में बेहद सहायक)

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घटनास्थल पर एनडीआरएफ को पहुंचने में लग जाता है समय

पंजाब में एनडीआरएफ की सिर्फ एक इकाई है, जो बठिंडा में तैनात है। यह इकाई ही किसी भी घटना के होने पर आपदा प्रबंधन के लिए जाती है। एक कोने में पड़ी होने की वजह से फोर्स को कई बार घटना स्थल तक पहुंचने में चार से पांच घंटे तक लग जाते हैं। एमडीआरएफ की ओर से पंजाब सरकार से कई बार मांग की जा चुकी है कि पंजाब के बीचों-बीच पड़ने वाले जिलों में उसे जमीन उपलब्ध कराई जाए, जिससे कि किसी भी घटना के घटने पर उसके जवान समय गंवाए बिना घटना स्थल पर पहुंच कर राहत कार्य में जुट सकें। खास यह है कि कई बार इस मुद्दे को उठाए जने के बाद भी सरकार ने गंभीरता नहीं अपनाई है।

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