नेताओं ने गांव को अनदेखा किया, अब पलायन को मजबूर लोग
फोटो-105 में है। -जागरण विशेष- वोट की चोट में तड़पता मलोट, पलायन करते लोग -न सड़क, न पीने का पा
फोटो-105 में है।
-जागरण विशेष-
वोट की चोट में तड़पता मलोट, पलायन करते लोग
-न सड़क, न पीने का पानी, न स्वास्थ्य केंद्र व स्कूल में लगा ताला
-35 घरों में से 06 घर हिमाचल प्रदेश में कर चुके पलायन
हजारी लाल/बलराम पराशर, मलोट (होशियारपुर)
हर किसी की तमन्ना होती है कि वह जीए तो जन्मभूमि पर और अंतिम सांसें ले तो भी जन्मभूमि पर। खून का अपनी माटी से लगाव होता है, मगर होशियारपुर के गांव मलोट के लोग इस मामले में अभागे हैं। वह जन्मभूमि छोड़ने पर मजबूर हैं। नारकीय ¨जदगी से जूझ रहे कुछ लोग छोड़कर जाने वाले हैं। यूं कहें कि वोट की चोट से मलोट तड़प रहा है और विवशता में लोग यहां से पलायन कर रहे हैं। इसी वजह से गांव के राज कुमार, न¨रदर ¨सह, ¨थद पाल, गुरदेव ¨सह, बब्बू व विनोद कुमार हिमाचल प्रदेश में पलायन कर गए हैं। कुछ पलायन को सोच रहे हैं। यहां से हिमाचल की दूरी 12 किलोमीटर दूर है।
कस्बा हरियाना से करीब तीस किलोमीटर दूर अर्द्ध पहाड़ी इलाके में बसे गांव मलोट में 35 घर हैं। यहां की आबादी 125 के करीब होगी। इस गांव की हालत सन 1947 से भी बदतर हो गई है। गांव काफी दूरी पर होने और वोट बेहद कम होने की वजह से राजनीतिज्ञ लोग इस गांव को भाव नहीं देते हैं। रास्ता ऊबड़खाबड़ होने की वजह से सफेदपोश गांव में वोट मांगने के लिए जाते ही नहीं है। लिहाजा, गांव के विकास का पहिया भी ठप्प पड़ा है। गांव को जाने के लिए रास्ता नहीं है। पैदल ही आना-जाना पड़ता है। बरसात के दिनों में तो गांव का संपर्क जिले के अन्य भागों से लगभग कट सा जाता है। पेयजल का साधन नहीं है। लोग खड्ड का पानी लाते हैं। वही पानी जानवर और इंसान दोनों पीते हैं। इस गांव में रहने वाले करनैल ¨सह बताते हैं कि पिछले साल से गांव का एलीमेंट्री स्कूल भी बंद हो गया, क्योंकि यहां पर अध्यापक पढ़ाने के लिए राजी नहीं होता है। आलम यह है कि गांव के बच्चे अब अक्षर ज्ञान से वंचित हैं। कई बार नेताओं और प्रशासनिक अधिकारियों की चौखट पर माथा रगड़ा, पर सिवाय आश्वासन मिला कुछ नहीं। खुद के बलबूते पर गांव के लोग 12 से 15 किलोमीटर दूर जाकर दिहाड़ी करके खुद व बच्चों का पेट पालते हैं।
नारकीय ¨जदगी व्यतीत कर रहे यहां के लोग यह सोचने पर मजबूर हैं कि क्या वे आजाद मुल्क में रहते हैं, जहां पर संवैधानिक तौर पर प्रत्येक नागरिक को समान अधिकार व सुविदाएं दाने की बात कही जाती है और जमीनी हकीकत कुछ और ही है। लोगों ने सरकार से अपील की कि उनके गांव की सुध ली जाए, वर्ना धीरे-धीरे सभी यहां से पलायन कर जाएंगे और गांव मलोट इतिहास का पन्ना बनकर रह जाएगा।
गांव में स्कूल बंद किए जाने संबंधी बात करने पर डी.ई.ओ. (एलीमैंट्री) मोहन ¨सह लेहल ने बताया कि उन्हे इस बात की जानकारी नहीं है। वे इस संबंधी पूरी जानकारी हासिल करके ही कुछ कह सकते हैं।
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मैं इस गांव की तमाम जानकारी के लिए संबंधित अधिकारी की जिम्मेदारी फिक्स करूंगी। यहां की यथा स्थिति को सरकार के पास भेजकर यथासंभव मदद की जाएगी।
आनंदिता मित्रा, डीसी होशियारपुर।