शहीद परिवारों के लिए अभिशाप बनकर रह गया दीनानगर आतंकी हमला
संवाद सहयोगी दीनानगर, दीनानगर पुलिस स्टेशन पर हुए दो साल पहले आतंकी हमले को याद कर आज भी दिल दहल उठत
संवाद सहयोगी दीनानगर, दीनानगर पुलिस स्टेशन पर हुए दो साल पहले आतंकी हमले को याद कर आज भी दिल दहल उठता है।शहीद परिवारों की ¨जदगी के लिए यह हमला अभिशाप बनकर रह गया है तथा दो वर्ष बीत जाने के बाद भी इन परिवारों को जख्म आज भी हरे है। एक तरफ अपनों को खोने का गम तथा दूसरी तरफ सरकार की उपेक्षा का दंश उनकी भावनाओं को ठेस पहुंचा रहा है।
इस हमले की दूसरी बरसी की पूर्व संध्या पर उस हमले में शहीद होने वाले होमगार्ड के जवान बोधराज निवासी सैदीपुर की पत्नी सुदेश कुमारी ने नम आंखो से बताया कि पति के शहीद होने पर बेशक सरकार ने उन्हें नौकरी तो दे दी मगर अभी तक सरकार द्वारा घोषित उनकी पति की याद में यादगार गेट व गांव के सरकारी स्कूल का नाम उनके नाम पर नहीं रखा गया है।
इसी तरह शहीद देसराज की पत्नी सुदेश कुमारी निवासी जंगल ने भी कहा कि सरकार ने उनके पति के याद में यादगार गेट बनाने की घोषणा की थी, मगर दो साल गुजर जाने के बाद भी घोषणा को अमलीजामा नही पहनाया गया।
शहीद सैनिक परिवार सुरक्षा परिषद के महासचिव कुंवर र¨वदर ¨सह विक्की ने सरकार की उदासीनता पर हैरानी जताते हुए कहा कि तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाश ¨सह बादल जब शहीदों के परिजनों से मिलने उनके घर गये तो उन्होने आश्वासन दिया था कि एक महीने में शहीदों के नाम पर स्कूलों का नाम रखा जाएगा और उनके गांवो में यादगार गेट भी बनाये जाएंगे। उन्होंने तत्कालीन डीसी सुख¨वदर ¨सह को आदेश दिया था कि यह काम एक महीने के भीतर शुरु हो जाना चाहिए, लेकिन दो साल बीत गये, मगर न कोई यादगार गेट बना और न ही स्कूलों का नाम शहीदों के नाम पर रखा गया।
एनजीओ कर रही है शहीद परिवारों के बच्चों की मदद
कुंवर र¨वदर विक्की ने बताया कि उस वक्त मुख्यमंत्री प्रकाश ¨सह बादल ने शहीद परिवारों को यह भरोसा दिलाया था कि उनके बच्चों की पढ़ाई का खर्चा सरकार देगी, लेकिन एक महीना पैसे आने के बाद वह मदद भी बंद हो गई। मगर एएसपी दीनानगर वरुण शर्मा ने चेन्नई की एक एनजीओ शौर्य चैरीटेबल ट्रस्ट के माध्यम से इन बच्चों की पढ़ाई व होने वाले खर्च का प्रबंध किया। यह संस्था किश्तो में इन परिवारों को आर्थिक सहायता भेजती है।
नए मकान की इच्छा मन में लेकर चले गए पापा : ज्योति
गांव सैदीपुर के शहीद जवान बोधराज की छोटे बेटी ज्योति ने बताया कि 26 जुलाई की शाम को जब पापा ड्यूटी पर गये तो नये बन रहे मकान पर हो रहे खर्च का हिसाब-किताब जोड़ रहे थे और जाते समय कहकर गये थे कि बाकि सब आकर देखता हूं, लेकिन वह आज तक नहीं लौटे। उसने बताया कि उनकी इच्छा थी कि मकान जल्दी बन जाये, मगर अफसोस उनकी इच्छा पूरी नही हो सकी। सरकार की ओर से मिले दस लाख रुपए की मदद से अब मकान तो बन गया, लेकिन देखने के लिए पापा नही रहे।
आज भी सुबह पति के आने का रहता है इंतजार : सुदेश
गांव जंगल निवासी शहीद देसराज की पत्नी सुदेश ने नम आंखो से बताया कि रोजाना की तरह 26 जुलाई की शाम को थाने पर ड्यूटी पर यह कहकर गये थे कि वह सुबह जल्दी आ जाएगे, मगर 27 जुलाई को सुबह पति के शहीद होने के बाद शाम 6 बजे उन्हें जानकारी दी गई। पति की शहादत के बाद सरकार ने उनके बेटे को नौकरी भी दे दी, लेकिन वह आज भी उन्हें पति की कहीं हुई बातें याद आती है।
दो साल बाद भी बेटी को नही मिली नौकरी : कमलजीत
दीनानगर आतंकी हमले में सबसे पहले आतंकियों ने कमलजीत ¨सह मठारू की गाड़ी को छीनकर उन्हें गंभीर रुप से घायल कर दिया था तथा उसी गाड़ी से आतंकी थाने तक पहुंचे थे। कमलजीत ¨सह ने बताया कि उस हमले में उनकी दाई बाजू कंधे के पास से कट गई है तथा वह 87 फीसदी अपाहिज हो चुका है। उसका एक बेटा व एक बेटी है, जबकि बेटा बचपन से ही मंदबुद्धि है तथा परिवार में कमाने वाला अकेला बचा है, जब वह अमृतसर अमनदीप अस्पताल में एडमिट थे तो तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाश ¨सह बादल उनका हाल जानने के लिए पहुंचे थे तथा उन्हें तीन लाख का चेक देकर यह कहा था कि उनकी बेटी को सरकार नौकरी देगी व उसे पेंशन देगी, मगर दो साल हो गये वह सरकारी कार्यालयों के चक्कर काटकर थक चुके है, लेकिन अभी तक तत्कालीन मुख्यमंत्री की घोषणा पर अमल नही किया गया। इस हमले से उनके सारे परिवार की ¨जदगी ठहर सी गई है। इस लिए वह सरकार से अपील करते है कि वह उनकी बेटी को नौकरी देकर उनके रिस्ते जख्मों पर मरहम लगाने का प्रयास करें।