टीबी लाइलाज नहीं : डॉ. सोढ़ी
संवाद सूत्र, फिरोजपुर कैंट सांस की तकलीफ के कारण जिस प्रकार से फेफड़ों में टीबी हो जाती है, उसी प्र
संवाद सूत्र, फिरोजपुर कैंट
सांस की तकलीफ के कारण जिस प्रकार से फेफड़ों में टीबी हो जाती है, उसी प्रकार हमारी आंतों में भी टीबी के कीटाणु चले जाते हैं। टीबी की पहचान पेट के आम रोग जैसे ही होते हैं। आम तौर पर मरीज पेट की सूजन या आंतों की सूजन से बीमारी समझ में आ जाती हैं। टीबी मरीज का इलाज न होने से यह बीमारी धीरे-धीरे फैल जाती है। टीबी का इलाज पूरी तरह से संभव है। टेस्ट करवाकर इसकी पहचान की जा सकती है।
पेट रोगों के माहिर डॉक्टर से इलाज करवाएं : कमल किशोर
टीबी रिपोर्ट के कोऑर्डिनेटर कमल किशोर ने बताया कि कई बार थूक के रेशे में भी कीटाणु पाए जाते हैं, जो मुंह के रास्ते आंतों में खून के साथ मिलकर पेट में टीबी फैलाते हैं। अगर दूध को उबाल कर न पिया जाय तो भी टीबी फैल सकती है। आंतों की टीबी आमतौर पर उस जगह पर होती है जहां छोटी और बड़ी आंत का जोड़ होता है। उस जगह पर कीटाणु जख्म कर देते हैं और आंत बंद हो जाती है। आंत में तेज दर्द की वजह से नाडि़यां फूल जाती हैं या कई बार आंतों में एकदम रूकावट आ जाती है।
टीबी की दवा के साथ खुराक का होना जरूरी : डॉ सोढ़ी
सिविल अस्पताल की डॉक्टर तरनपाल कौर सोढ़ी ने बताया कि टीबी होने पर घबराने की जरूरत नहीं है। पेट रोगों के विशेषज्ञ डॉक्टरों की सलाह के अनुसार इलाज शुरू करना चाहिए। दवा का पूरा कोर्स करना चाहिए। टीबी की दवा के साथ खुराक भी बहुत जरूरी है। खून की कमी पूरा करने के लिए ऑयरन की दवा फायदेमंद होगी। अब नई तकनीक के साथ टेस्ट एलिजा और फ्लेक्सिबल फाइबर तकनीक आ गए हैं, जिसकी मदद के मरीज की बीमारी पहले ही चरण में पकड़ में आ जाती है और उसका सही इलाज करना आसान हो जाता है।