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पीजीआइ की स्‍टडी : पुरूष अधिक आ रहे हैं डायबिटीज की चपेट में

चंडीगढ़ पीजीआइ की स्‍टडी में खुलास हुआ है कि मधुमेह यानि डायबिटीज महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों को अपनी चपेट में ज्‍यादा ले रहा है। यह रोग आनुवांशिक रूप भी दिखाता है। परिवार के किसी सदस्‍य को यह हुआ हो तो उनकी अगली पीढ़ी भी चपेट में ले सकता है।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Thu, 07 Apr 2016 03:38 PM (IST)Updated: Thu, 07 Apr 2016 04:59 PM (IST)
पीजीआइ की स्‍टडी : पुरूष अधिक आ रहे हैं डायबिटीज की चपेट में

चंडीगढ़, [साजन शर्मा]। मधुमेह यानि डायबिटीज महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों को अपनी चपेट में ज्यादा ले रहा है। इसके साथ ही यह रोग आनुवांशिक रूप भी दिखाता है। परिवार में किसी को यह राेग है तो यह अन्य सदस्यों या आने वाली पीढ़ी को अपनी चपेट में ले सकता है। ये तथ्य चंडीगढ़ पीजीआइ द्वारा की गई एक स्टडी में सामने आए हैं।

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पीजीआइ द्वारा की गई स्टडी में पाया गया है कि मोटापा डायबिटीज होने के एक प्रमुख कारणों में है। एक बार मोटापा हुआ तो यह जल्दी साथ छोड़ने का नाम नहीं लेता। वजन घटाना एक मुश्किल भरा काम है। डायबिटीज के जिन मरीजों को भी जांच हुई तो उनमें से अधिकतर में इसका कारण मोटापा भी पाया गया।

स्टडी के अनुसार, डायबिटीज का संबंध पारिवारिक इतिहास से भी है। अगर परिवार में किसी सगे संबंधी को डायबीटिज है तो इस बीमारी के अन्य सदस्यों तक भी पहुंचने का खतरा रहता है। यानी जिन जींस में पहले से बीमारी घर कर चुकी है, वह जींस पीढ़ी दर पीढ़ी इस राेग को आगे बढ़ाएगा।

बीमारी से ग्रस्त लोगों में कम पाई गई फिजिकल एक्टीविटी

सर्वे में 35 साल के ऊपर के लोगों में ही किया गया। बीमारी से ग्रस्त लोगों में फिजिकल एक्टीविटी कम पाई गई। यानी डायबिटीज से पीड़ित लोग बहुत कम कसरत करते थे और इनकी शूगर इनटेक यानी शक्कर लेने की मात्र ज्यादा थी। इनमें ज्यादा खाने की आदत भी देखी गई, जो बड़ी समस्या पाई गई।

किडनी पर सबसे पहले इफेक्ट दिल को भी नहीं छोड़ती

पीजीआइ के डिपार्टमेंट ऑफ कम्युनिटी मेडिसन व स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के हेड प्रो. राजेश ने बताया कि डायबीटिज से पीड़ित मरीज को तो जिंदगी भर ट्रीटमेंट पर रहना पड़ता है और दवा खानी पड़ती है। कुछ में बीमारी कंट्रोल में रहती है लेकिन कुछ में यह बिगड़ जाती है। सबसे पहले यह किडनी पर अटैक करती है। जिन मरीजों में डायबिटीज कंट्रोल में नहीं रहता उनकी किडनी खराब होने की आशंका बनी रहती है।

यह बीमारी दिल पर भी यह जबरदस्त मार करती है। व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता (इम्युनिटी) भी घट जाती है, जिससे वह जल्द संक्रमणों की चपेट में आता है। डायबिटीज से बचाव ही बेहतर उपाय है। खुद को मोटापे से बचाएं, शारीरिक कसरत करने की आदत डालें। खाना कम खाएं और बीमारी होने पर तुरंत डाक्टर से संपर्क करें।

अमीर देशों की अपेक्षा गरीब देश में लाेग डायबिटीज से अधिक चपेट में

डॉ. राजेश ने बताया कि स्टडी तीन हाई इनकम, सात अपर मिडल इनकम, चार लो मिडल इनकम और चार लो इनकम कंट्रीज (देशों) पर की गई थी। 35 साल से ऊपर के 1,19,666 लोगों पर यह स्टडी की गई। चूंकि सुविधाएं विकसित देशों में ज्यादा हैं। मशीनों पर वहां ज्यादा निर्भरता है और फिजिकल एक्टीविटी वहां कम है, लिहाजा डायबिटीज की ज्यादा मार विकसित और अमीर देशों में होनी चाहिए थी लेकिन स्थिति बिलकुल उल्ट पाई गई। है। विकसित व अमीर देशों की अपेक्षा गरीब देशों के लोग इस बीमारी की चपेट में ज्यादा पाए गए।

जहां शिक्षा कम, वहां भी बीमारी की मार ज्यादा

इस स्टडी का मकसद था कि क्या शूगर का आर्थिकता से भी कोई संबंध है और इसके रिस्क फैक्टर क्या क्या हैं। इंटरनेशनल डायबीटिज फेडरेशन के आंकड़े बताते हैं कि एडल्ट की अनुमानत: 8.3 प्रतिशत आबादी को वर्ष 2013 में डायबिटीज थी। शोध में पाया गया कि विकासशील देशों में शहरी लोगों में ग्रामीण लोगों के मुकाबले बीमारी ज्यादा है। विकसित देशों में जिन लोगों में पढ़ाई कम थी, उनमें बीमारी ज्यादा पाई गई।

जीवनशैली सुधारें तभी डाश्यबिटीज से बचाव संभव

अनहेल्दी डाइट, रहन-सहन के आरामतलब तरीकों की वजह से डायबीटिज की बीमारी लगातार बढ़ रही है। हेल्दी डाइट और आधे घंटे की फिजीकल एक्टीविटी से बीमारी पर रोक लगाई जा सकती है। फ्रूट व वेजीटेबल के ज्यादा सेवन से डायबीटिज रोकी जा सकती है। ऐसी डाइट होनी चाहिए, जिसमें कम से कम चीनी और नमक हो। कम सेचुरेटिड फैट हो।

शराब के सेवन पर रोक और धूम्रपान की आदत त्याग कर इससे बचा जा सकता है। ब्लड शूगर टेस्टिंग से जांच कर व डॉक्टर से परामर्श कर इस पर जल्द रोक लगाई जा सकती है। पीजीआइ के स्कूल ऑफ मेडिसन के डॉ. जेएस ठाकुर ने बताया कि चंडीगढ़ में डायबीटिज की दर १३.५ प्रतिशत है।

सेक्टर-16 अस्पताल की डाइटीशियन डॉ. राशि के अनुसार, इस रोग से बचने के लिए खाने के विकल्पों पर गौर करना चाहिए। उनका कहना है कि जंक फूड और शूगर डिंक बीमारी बढ़ाने में मदद करते हैं। पीजीआइ के एंडोक्रायनोलॉजी के एडीशनल प्रोफेसर डॉ. संजय भडाडा के अनुसार, बीमारी होने पर डरें नहीं, बल्कि डॉक्टर से परामर्श ले कर रेगुलर दवा खाएं।

अगर इस पर काबू न पाया जाए तो किडनी डैमेज हो सकती है। आंखों की दृष्टि जा सकती है। अंग भंग हो सकते हैं। अंगों में सुन्नपन आ सकता है। दिल की बीमारियां हो सकती हैं। बीमारी होने पर डरें नहीं क्योंकि इससे बचने की दवा उपलब्ध हैं।

समय पर चेते तो बच जाएंगे नुकसान से

मोहाली : जब किसी व्यक्ति को पता लगता है कि बीमारी के चलते जो उसका पैर काटा गया उससे बचा भी जा सकता था, तब यह न सिर्फ एक शारीरिक नुकसान बल्कि आर्थिक और मानसिक नुकसान भी बन जाता है। फोर्टिस अस्पताल के वस्कुलर सर्जरी के डायरेक्टर डॉ. रावुल जिंदल ने कहा कि डायबिटीज के चलते पैर गैंगरीन हो जाने पर उसे काटना ही पड़ता है। यही ज्यादातर मौतों की भी वजह बनता है। पर इनमें से 95 फीसद से भी ज्यादा सर्जरी केसों में समय रहते इलाज करने से अंग काटने की नौबत से बचा जा सकता है।

डॉ. जिंदल ने बताया कि पिछले दो साल में फोर्टिस में 200 से भी ज्यादा मरीज आए जो डायबिटीज की वजह से अपना पैर गंवा चुके थे और जब उन्हें पता लगा कि वे इस नुकसान से बच भी सकते थे, तब वे सभी चौंक गए। डॉ. जिंदल ने कहा कि हर महीने उनकी ओपीडी में 60 से भी ज्यादा डायबिटिक फुट के मरीज आते हैं। एक सुस्त जीवनशैली, शारीरिक गतिविधियों की कमी, मोटापा, तनाव और फैट, शुगर से यह बीमारी बढ़ रही है।

उन्होंने बताया कि डायबिटीज में पैर पर लगी चोट अकसर गैंगरीन की ओर इशारा करती है। ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोगों को जख्मों की वजह से अपने अंग गंवाने का ज्यादा खतरा रहता है। शिक्षा और रोकथाम लोगों को जागृत करने में अहम भूमिका निभाती है।

किसी भी सूरत में न बरतें लापरवाही

डॉ. जिंदल ने कहा कि चीरे, फोड़े, कोशिका, छाले, नाखून और चारकोट्स ज्वाइंट्स पर पैनी नजर रखनी जरूरी है। एंजियोप्लास्टी जैसा स्पेशलाइज्ड ट्रीटमेंट भी लाभदायक है। यदि समय रहते यह ट्रीटमेंट किया जाए तो यह अंग को बचा सकता है। डायबिटिक जख्मों में टिशू की सर्जिकल सफाई जरूरी है। पैर तक रक्त का वापस सही तरीके से जाना जरूरी है।


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