रसायनमुक्त खेती कैसे करें, पंजाब में बताएंगे टी विजय कुमार, आंध्र का मॉडल लागू करने की तैयारी
आंध्र प्रदेश में जीरो बजट से रसायनमुक्त खेती का माडल पेश करने वाले ब्यूरोक्रेट टी विजय कुमार पंजाब के किसानों को भी टिप्स देंगे। इसमें खेती केे तरीके के अलावा उसके लिए मार्केट तैयार करने की जानकारी भी जाएगी।
चंडीगढ़ [इन्द्रप्रीत सिंह]। आंध्र प्रदेश में जीरो बजटिंग खेती के सफल हुए मॉडल को अब पंजाब में लागू करने पर पंजाब किसान आयोग काम शुरू करेगा। इस मॉडल को आंध्र प्रदेश में सफल बनाने वाले पूर्व ब्यूरोक्रेट टी विजय कुमार मंगलवार को प्रगतिशील और अपने तौर पर नेचुरल फार्मिंग पर काम कर रहे किसानों को प्रजेंटेशन देंगे, जिसमें न केवल यह बताया जाएगा कि यह खेती कैसे करनी है बल्कि उसके लिए बाजार कैसे खड़ा करना है।
आंध्र प्रदेश में जहां नब्बे के दशक में सबसे ज्यादा किसानों की ओर से खुदकुशी हो रही थी, वहां टी विजय कुमार के मॉडल के अलावा कई और संगठन भी इस पर काम कर रहे हैँ। उन्होंने छह लाख से ज्यादा किसानों को रासायनयुक्त खेती से निकालकर नेचुरल खेती की ओर प्रमोट किया है। साथ ही सेंटर फॉर सस्टेनेबल एग्रीकल्चर जैसे एनजीओ ने उपभोक्ताओं और किसानों को एक साथ लाकर जहां नेचुरल फार्मिंग शुरू करवाई, उनके उत्पाद अपने एनजीओ के बाजार में बेचकर उपभोक्ताओं को रासायन युक्त खाद्य उत्पाद उपलब्ध करवाए।
इससे दो फायदे हुए हैं। किसान कर्ज-जाल से मुक्त हो रहे हैं और आत्महत्याएं इन इलाकों में काफी कम हो गई हैं, वहीं उपभोक्ताओं को उचित दरों पर खाद्य पदार्थ मिल रहे हैं। टी विजय कुमार, आंध्र प्रदेश सरकार की ओर से जीरो बजटिंग मॉडल के सलाहकार हैं और पिछले कई सालों से किसानों को रासायन मुक्त खेती करने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं। इसके लिए उन्होंने विभिन्न गांव में किसानों के सेल्फ हेल्प ग्रुप बनाए हैं जो न केवल मिश्रित खेती तकनीक को अपनाते हैँ, बल्कि अपना सामान बेचने के लिए अपने बाजार तैयार करते हैं।
यह मॉडल काफी सफल हो रहा है। प्रसिद्ध खेती नीतियों के माहिर दविंदर शर्मा का कहना है कि वह खुद इस मॉडल को देखकर आए हैं और अब तक छह लाख किसान इसे अपना चुके हैँ। उन्होंने बताया कि आंध्र प्रदेश सरकार इसे प्रमोट कर रही है और उनका लक्ष्य है कि 2024 तक पूरे आंध्र प्रदेश को रसायन मुक्त खेती करने वाला राज्य घोषित किया जाए।
साफ है कि यदि सरकार किसानों को सपोर्ट करे तो इस तरह के मॉडल अपनाए जा सकते हैं। उन्होंने बताया कि जब भी नेचुरल फार्मिंग की बात होती है तो किसानों को ही एक आशंका सताती है कि उनकी पैदावार गिर जाएगी लेकिन ऐसा नहीं है। आंध्र प्रदेश में धान, सब्जियों और फलों की पैदावार रासायन खेती के मुकाबले ज्यादा हो रही है। उन्हें लगता है कि इसे पूरे देश में लागू करने की जरूरत है।
आंध्र प्रदेश और पंजाब में वैसे तो कोई समानता नहीं है, लेकिन गर्मियों की फसलें दोनों राज्यों में एक तरह की ही हैं। कपास, धान, दालें और सब्जियां एक जैसी ही हैं, चूंकि पंजाब में सर्दी ज्यादा रहती है और आंध्र प्रदेश में सर्दी नहीं पड़ती, इसलिए वहां गेहूं की फसल नहीं होती। आंध्र प्रदेश में 90 के दशक में कपास की फसल फेल होने के कारण किसानों की आत्महत्याएं बढ़ी थीं, ऐसा ही लगभग पंजाब में हुआ। आज भी पंजाब की कपास पट्टी में ही सबसे ज्यादा किसानों की आत्महत्याएं हो रही हैं।