सेलवेल से 10 करोड़ की विज्ञापन फीस न वसूलने का मामला गर्माया
दयानंद शर्मा, चंडीगढ़ : सेलवेल मीडिया सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड पर 2007 से 2014 के बीच लंबित विज्ञाप
दयानंद शर्मा, चंडीगढ़ : सेलवेल मीडिया सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड पर 2007 से 2014 के बीच लंबित विज्ञापन फीस की वसूली न करने के मामले में एमसी कमिश्नर चंडीगढ़ की मुश्किलें बढ़ गई हैं। तक्ष मीडिया प्राइवेट लिमिटेड की ओर से दाखिल अवमानना याचिका पर सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने एमसी कमिश्नर को अवमानना नोटिस जारी करते हुए विज्ञापन फीस की वसूली के नोटिस पर 19 माह से कार्रवाई न करने पर जवाब तलब किया है। मामले में कारपोरेशन को 22 नवंबर तक इस बारे में जवाब दाखिल करना होगा। मामले में याचिका दाखिल करते हुए तक्ष मीडिया प्राइवेट लिमिटेड की ओर से कहा गया कि चंडीगढ़ प्रशासन ने 2007 से लेकर 2014 तक शहर के विभिन्न पब्लिक टॉयलेट की मेंटेनेंस और संचालन का काम सेलवेल मीडिया सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड को दिया था। इसकी एवज में सेलवेल मीडिया सर्विसेज को आमदनी के लिए इन टॉयलेट्स पर विज्ञापन लगाने की अनुमति दी गई थी।
प्रावधान था : विज्ञापन के बदले देना ही होगा भुगतान
हालाकि चंडीगढ़ एडवरटाइजमेंट कंट्रोल ऑर्डर 1954 में प्रावधान है कि इन विज्ञापनों के लिए सेलवेल को विज्ञापन फीस का भुगतान करना अनिवार्य होगा। बावजूद इसके कारपोरेशन की ओर से इस दिशा में कोई पहल नहीं की गई और न ही कंपनी की ओर से इस राशि को जमा करवाया गया। सीबीआइ ने भी एमसी के अधिकारियों के खिलाफ मामला दर्ज किया था और उस मामले में भी विज्ञापन फीस के 6.31 करोड़ को जोड़ा गया था।
तक्ष मीडिया प्राइवेट लिमिटेड ने दायर की थी याचिका
मामले में एमसी द्वारा विज्ञापन फीस की वसूली न करने पर तक्ष मीडिया प्राइवेट लिमिटेड ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर अपील की थी कि एमसी को निर्देश दिए जाएं कि वे सेलवेल से विज्ञापन फीस की वसूली के लिए उन्हें नोटिस जारी करे। मामले में हाईकोर्ट के कड़े रुख के बाद एमसी कंपनी को नोटिस जारी किया, जिस पर हाईकोर्ट ने याचिका का निपटारा कर दिया था। एमसी द्वारा जारी किए गए नोटिस को 19 माह बीत जाने के बाद भी सेलवेल से न तो कोई वसूली की गई है और न ही कंपनी के खिलाफ कोई कार्रवाई की गई है। याचिकाकर्ता ने एमसी पर आरोप लगाया कि वे सेलवेल को लाभ पहुंचाने के लिए कार्य कर रहें हैं।
न कंपनी पर कार्रवाई की न ही ब्लैकलिस्ट किया
इसके साथ ही याची ने कहा कि नोटिस केवल मार्च 2014 तक के लिए जारी किया गया था, जो 6.31 करोड़ था और यदि बाद के समय को जोड़ लिया जाए तो यह आकड़ा 10 करोड़ से उपर बैठता है। बावजूद इसके न तो कंपनी पर कोई कार्रवाई हुई और न ही इसे ब्लैकलिस्ट किया गया। याची ने कहा कि एक ओर कंपनी से वसूली नहीं की गई और दूसरी ओर कंपनी 3 और टेंडर लिए हुए है। इस याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस आरके जैन की बेंच ने एमसी कमिश्नर को अवमानना का नोटिस जारी करते हुए जवाब दाखिल करने के आदेश दिए हैं।