112 स्कूलों और 5 कॉलेजों के बाद भी दाखिले के लिए भटकते विद्यार्थी
जागरण संवाददाता, चंडीगढ़ : शहर की शिक्षा को जितना बेहतर माना जाता है, विभाग को उतना ही फिसड्डी कहा ज
जागरण संवाददाता, चंडीगढ़ : शहर की शिक्षा को जितना बेहतर माना जाता है, विभाग को उतना ही फिसड्डी कहा जा सकता है। शहर के स्कूल और कॉलेजों से शिक्षा लेने वाले स्टूडेंट्स की संख्या प्रति वर्ष बढ़ जाती है लेकिन उन्हें संभालने के लिए विभाग के पास कोई साधन नहीं है। विभाग के पास अध्यापकों की कमी है तो कभी किसी अन्य सुविधा की। इसी सुविधा को सुधारने के लिए प्रशासन कई सालों से लगा हुआ है, लेकिन समस्या का समाधान जस का तस बना हुआ है। विभाग के द्वारा प्रति वर्ष नर्सरी, केजी, नौवीं, ग्यारहवीं और उसके बाद स्तानक की कक्षाओं के लिए दाखिले की प्रक्रिया होती है। प्रतिवर्ष की तरह इस वर्ष भी ऐसी ही परिस्थिति देखने को मिली है। केजी, नर्सरी और नौवीं के दाखिले हो चुके हैं। नौवीं में दाखिला पाने के लिए सैकड़ों अभिभावकों को धक्के खाने पड़े थे। आठवीं कक्षा के बाद ज्यादातर अभिभावकों की इच्छा होती है कि उनके बच्चों को अच्छे स्कूलों में दाखिला मिले। कई अभिभावक ऐसे भी होते हैं, जिनके बच्चे आठवीं तक गैरमान्यता प्राप्त स्कूल में पढ़ रहे होते हैं और उसके बाद उन्हें सरकारी स्कूलों में दाखिला लेना होता है। ऐसा नजारा इस बार स्लम एरिया के स्कूलों जिसमें से बड़ेहड़ी, पलसौरा, मलोया, धनास, मनीमाजरा के कई सरकारी स्कूलों में देखने को मिला कि बच्चे परिणाम के बाद सरकारी स्कूल में दाखिला पाने आए लेकिन सीटें भर चुकी थी।
ग्यारहवीं कक्षा में प्रवेश के लिए दिखी मारामारी
इस समय ग्यारहवीं कक्षा के प्रवेश प्रक्रिया चल रही है। सत्र का आधा समय गुजर चुका है लेकिन दाखिले की प्रक्रिया अभी तक चल रही है। इस समय शहर में 40 सरकारी स्कूल हैं, जिनमें ग्याहरवीं कक्षा के लिए 13500 सीटें है। उसके लिए 15364 आवेदन पत्र विभाग को जमा हुए हैं। ऐसे में सीटों के भरने के बाद 1864 स्टूडेंट ऐसे हैं, जोकि दाखिला पाने से वंचित रह जाएंगे। ग्यारहवीं कक्षा में एक अहम कारण है कि यहां दाखिला लेने के लिए मोहाली और पंचकूला से भी विद्यार्थी रूख कर लेते हैं।
सीटों के मुकाबले दो गुना है आवेदकों की संख्या
जो हाल स्कूलों में देखने को मिल रहा है, उससे भी बदतर हालत कॉलेजों में देखने को मिल रही है। प्रतिवर्ष करीब 20 हजार विद्यार्थी विभिन्न कक्षाओं से पास होते हैं, लेकिन उनकी जगह को पाने के लिए 35 हजार के करीब आवेदक आते हैं। शहर में मात्र पांच सरकारी कॉलेज हैं, जिसमें से एक कॉमर्स कॉलेज है। इनमें साइंस में मेडिकल, नॉन मेडिकल, बीए और कॉमर्स विषय के लिए विद्यार्थी आते हैं।
एक साधारण बीए की बात करें तो उसके लिए चार कॉलेज हैं। इसमें इस बार दाखिला पाने के लिए पोस्ट ग्रेजुएट गवर्नमेंट कॉलेज सेक्टर-11 में 750 सीटों के लिए 3691 आवेदन, पोस्ट ग्रेजुएट गर्वमेट गर्ल्स कॉलेज सेक्टर-11 में 800 सीटों के लिए 2401, पीजीजीजीसी सेक्टर-42 में 700 सीटों के लिए 1678 और पीजीजीसी सेक्टर-46 में 550 सीटों के लिए 1804 स्टूडेंट्स ने आवेदन किया है।
दाखिले की प्रक्रि या में होना चाहिए बदलाव
नर्सरी केजी और नौवीं कक्षा के दाखिले के लिए विशेष प्रबंध होना चाहिए। शहर में गैरमान्यता प्राप्त स्कूलों की संख्या बहुत ही ज्यादा हैं, जिसके कारण बच्चे पहले वहां पढ़ते है और उनका कोई डाटा प्रशासन के पास नहीं होता है। इसी कारण से दाखिले में परेशानी होती है। ऐसे में बहुत ही जरूरत है कि दाखिले की प्रक्रि या के लिए विशेष प्रक्रिया होनी चाहिए ताकि गैर मान्यता प्राप्त स्कूल या तो काम कर न सके और अगर करते हैं तो उस स्कूल को छोड़ने के बाद आगे की पढ़ाई का उचित प्रावधान हो।
-हरीश, अभिभावक
सरकारी अफसरों को बच्चे पढ़ाने होगें सरकारी स्कूलों में
प्रशासन में काम करने वाले जितने ाी अधिकारी हैं, उनके बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ाई नहीं करते है। उनके बच्चे हाई-प्रोफाइल स्कूलों में पढ़ते हैं। ऐसे में दाखिले के मौके पर किस प्रकार की परेशानी होती है, इसके बारे में न तो अधिकारियों को समझ होती है और न ही व समस्या का समाधान कर पाते है। ऐसे में अनिवार्य है कि वह अधिकारी खुद बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढ़ाएं, उसके बाद ही उन्हें समस्या का सही पता चल पाएगा।
-सवर्ण सिंह कंबोज, प्रेसिडेंट, यूटी कैडर एजुकेशन इंप्लाइज यूनियन
प्रति वर्ष बच्चे दाखिले लेने के लिए भटकते है। विभाग का दाखिला देने की प्रक्रिया गलत है। अभी भी आधा सत्र ात्म हो चुका है, लेकिन स्टूडेंट्स को पढ़ाई की किताबों का पता नहीं। विभाग तीन-तीन काउंसिलिंग का आयोजन करता है, जिसके कारण दो महीने तो उसी में गुजर जाते हैं। सैकड़ों स्टूडेंट काउंसिलिंग के चक्कर में ही दाखिला पाने से रह जाते हैं।
-अरविंद राणा, प्रेसिडेंट, सर्व शिक्षा अभियान
कॉलेज में सीटों को बढ़ाने का होना चाहिए प्रावधान
कॉलेज बहुत बड़े दायरे में बने होते हैं। यदि स्कूल दो-दो सत्रों में चलते हैं तो कॉलेजों को भी चलाया जा सकता है। यदि कॉलेज के समय को दोगुणा कर दिया जाता है तो निश्चित तौर पर जिन स्टूडेंटस को दाखिला नहीं मिलता है, उन्हें मिलना शुरू हो जाएगा।
-सोमवीर, स्टूडेंट यूनियन लीडर
स्कूलों की कमी को दूर करने के लिए उन्हें डबल शिफ्ट में चलाने पर विचार किया जा सकता है। इसके अलावा पूरी कोशिश की जा रही है कि इस वर्ष भी और आने वाले समय में भी ज्यादा से ज्यादा स्टूडेंटस को दाखिला मिले। इसके अलावा पंचकूला और मोहाली के स्टुडेंटस को दाखिला देने से पहले शहर के बच्चों को प्राथमिकता मिलेगी।
-रूपिंदरजीत सिंह बराड़, डायरेक्टर, हायर एजुकेशन
नए कॉलेज का किया जा रहा है निर्माण
कॉलेजों में स्टूडेंटस की भीड़ को कम करने के लिए मनीमाजरा में कॉलेज का निर्माण किया जा रहा है। इसके अलावा कॉलेजों में रूटीन में डबल शिफ्ट क्लासें लगें, इसके लिए भी विचार किया जाएगा।
-जतिन्दर यादव, डायरेक्टर, हायर एजुकेशन