किडनी प्रत्यारोपण के लिए सालों का इंतजार
फ्लैग - बढ़ता रोग : पीजीआइ में बड़ी संख्या में आते हैं मरीज, डॉक्टरों व संसाधन की कमी आती है आड़े
जागरण संवाददाता, चंडीगढ़
पीजीआइ में किडनी के मरीजों को प्रत्यारोपण के लिए कम से कम चार माह तो इंतजार करना ही पड़ता है। वजह है विभाग में डॉक्टरों की कमी। पीजीआइ में प्रति सप्ताह चार ट्रांसप्लांट ही हो पाते हैं। हालांकि विभाग के डॉक्टर किसी प्रकार की कमी से इन्कार करते हैं और उनकी दलील है कि जो इनफ्रास्ट्रक्चर संस्थान में उपलब्ध हैं उसमें चार से ज्यादा ट्रांसप्लांट किए ही नहीं जा सकते।
नेफ्रोलॉजी विभाग के डॉ. विवेक कुमार के अनुसार किडनी की बीमारियों को पांच स्टेज में बांटा जाता है। पहली स्टेज में किडनी नार्मल होती है। दूसरी स्टेज में किडनी को हल्का रोग लगता है। तीसरी स्टेज में थोड़ा बढ़ जाता है। चौथी और पांचवी स्टेज में डायलेसिस किया जाता है। उन्होंने बताया कि जिन लोगों का ब्लड प्रेशर ज्यादा है या जिनका वजन लंबाई के मुताबिक अधिक है। ग्लूकोज का स्तर काबू में नहीं है। मधुमेह से परेशान हैं तो इन परिस्थितियों में कुछ समय बाद न केवल यूरीन (पेशाब)टेस्ट कराते रहना चाहिए। किडनी फंक्शन टेस्ट भी कराते रहने चाहिए।
संस्थान में अब तक 185 मरीजों की किडनी हुई ट्रांसप्लांट
डॉ. विवेक ने बताया कि किडनी के रोगों में 10 प्रतिशत में डायलेसिस से ट्रीटमेंट होता है। संस्थान अब तक कुल 185 कैडेवरिक ट्रांसप्लांट कर चुका है। लिविंग डोनर ट्रांसप्लांट के केस भी संस्थान में होते हैं। उन्होंने बताया कि ट्रांसप्लांट की उन्हीं केस में संस्तुति की जाती है, जिसमें 70 प्रतिशत से ऊपर किडनी डैमेज हो। डॉ. विवेक के अनुसार किडनी की बीमारी होने पर घबराएं नहीं, बल्कि तुरंत चेकअप कराएं। इलाज से बीमारी पर काबू पाया जा सकता है। आंध्रप्रदेश व तमिलनाडु जैसे राज्यों में आरोग्य श्री योजना के तहत डिसीज्ड डोनर प्रोग्राम चल रहा है और वहां योजना काफी सफल भी है।
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डायलेसिस के लिए पहुंचते हैं बड़ी संख्या में मरीज
वर्ष 2012-13 में 185 मरीजों में किडनी प्रत्यारोप किया गया, जबकि 50 मरीजों में क्रॉनिक एंबुलेटरी पेरीटोनियर डायलेसिस (सीएपीडी) हुआ। वर्ष 2011-12 में 187 मरीजों में किडनी प्रत्यारोपण हुआ, जबकि 52 मरीजों में सीएपीडी हुआ। वर्ष 2010-11 में 168 मरीजों में किडनी प्रत्यारोपण हुआ, जबकि 45 मरीजों में सीएपीडी हुआ।