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स्वर्णिम इतिहास के साथ 100 वर्ष का हुआ शिअद, अब विश्वास को फिर से हासिल करने की बड़ी चुनौती

शिरोमणि अकाली दल के गठन को 100 वर्ष हो गए हैं। पार्टी का गठन 14 दिसंबर 2020 को हुआ था। इस दौरान पार्टी ने एक मुकाम हासिल किया लेकिन पिछले कुछ समय से पार्टी ने किसानों व पंथक विश्वास खो दिया है।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Sun, 13 Dec 2020 04:34 PM (IST)Updated: Mon, 14 Dec 2020 09:35 AM (IST)
स्वर्णिम इतिहास के साथ 100 वर्ष का हुआ शिअद, अब विश्वास को फिर से हासिल करने की बड़ी चुनौती
शिरोमणि अकाली दल की सांकेतिक फोटो ।

चंडीगढ़ [कैलाश नाथ]। देश की सबसे पुरानी क्षेत्रीय पार्टी शिरोमणि अकाली दल (Shiromani Akali Dal) 14 दिसंबर 2020 को 100 साल की हो जाएगी। 100 सालों में शिरोमणि अकाली दल कई बार टूटा, कई शाखाएं फूंटी, लेकिन कभी भी पार्टी को विश्वास के संकट से नहीं जूझना पड़ा। जब अकाली दल अपना स्वर्णिम 100 वर्ष का इतिहास लिखने जा रहा है तो आज पार्टी के सामने सबसे बड़ी चुनौती विश्वास की है। कभी ऐतिहासिक गुरुद्वारों को महंतों के कब्जे से आजाद करवाने के लिए तैयार की गई यह पार्टी आज अपने सबसे बड़े दो स्तंभ पंथ और किसानों के विश्वास बहाली के लिए जूझ रही है।

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संघर्ष रहा पार्टी का अभिन्न अंग

शिरोमणि अकाली दल के 100 साल के इतिहास को पलट कर देखा जाए तो संघर्ष इस पार्टी का अभिन्न अंग रहा है। गुरुद्वारा सुधार लहर से दल का गठन हुआ जो ब्रिटिश शासन के अधीन थे। यही वजह थी कि अकालियों को गुरुद्वारों की स्वतंत्रता में देश की स्वतंत्रता की भी झलक दिखती थी। ननकाना साहिब को आजाद करवाने के लिए बड़ी लड़ाई लड़ी गई, जिसमें 130 अकाली शहीद हो गए।

महंत नारायण दास को ब्रिटिश प्रशासन का समर्थन था। चाबियों का मोर्चा, जैतो का मोर्चा समेत कई मोर्चे अकाली दल ने गुरुद्वारा साहिबान को आजाद करवाने के लिए लड़े। इन गुरुद्वारों पर अपना प्रबंध बनाने के लिए 1925 में गुरुद्वारा एक्ट पास करवाया गया। चाहे आजादी की लड़ाई हो या पंजाबी सूबा बनाने की। पंजाब के पानी की लड़ाई हो या दिल्ली सिख दुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की स्थापना की। शिरोमणि अकाली दल के पांव कभी डगमगाए नहीं।

2015 से मंडराने लगे थे अविश्वास के बादल

पंजाब पूरे देश में एक मात्र एसा राज्य है जिसका बंटवारा भाषा के आधार पर हुआ। राजसी तौर पर जीवित रहने के लिए अकाली दल ने आंदोलन किया। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को अंततः अकालियों के आंदोलन के आगे झुकना पड़ा। 1966 में पंजाब का विभाजन हुआ। तब से लेकर आज तक अकाली दल में कई बार विभाजन का दौर देखा कई बार अकाली दल टूटा, लेकिन अकाली दल में कभी भी विश्वास का संकट नहीं उत्पन्न हुआ। अक्टूबर 2015 में पंजाब में गुरुग्रंथ साहिब की बेअदबी के बाद अकाली दल पर अविश्वास के बादल मंडराने लगे। बेअदबी कांड के बाद पंथक वोट बैंक में अविश्वास का घुन लग गया। पंथक वोट बैंक को बचाए रखने के अकाली दल के सारे प्रयास व्यर्थ साबित हुए। 2017 के विधानसभा चुनाव में अकाली दल हाशिये पर आ गई। चुनाव में अकाली दल को मात्र 15 सीटें ही मिली।

100 साल पूरा होने का जश्न नहीं मना पाई

किसी भी पार्टी के लिए 100 साल पूरा होना बड़े फख्र की बात होती है, लेकिन अकाली दल 100 साल पूरा होने पर जश्न नहीं मना सकी। पंथ के बाद किसान वोट बैंक अकाली दल से खिसक रहा था। किसान दिल्ली में तीन कृषि सुधार बिलों को रद करवाने के लिए धरना लगाकर बैठे हुए है। ऐसे में अकाली दल 14 दिसंबर को अपने 100 वर्ष पूरे होने के समारोह को नहीं मनाया।

सबसे बड़ा संकट का दौर

राजनीतिक रूप से अकाली दल के सामने वर्तमान स्थिति सबसे बड़ा संकट भरा है। एक तरफ पंथक वोट बैंक उनसे खिसक रहा है। वहीं, केंद्र सरकार द्वारा लाए गए कृषि सुधार बिलों का समर्थन करने के कारण किसान अकाली दल से नाराज हो गए, जबकि किसान कभी अकाली दल के कट्टर समर्थक माने जाते थे। किसान वोट को बचाने के लिए अकाली दल ने केंद्र में अपनी कैबिनेट की कुर्सी छोड़ दी। 24 साल पुराना भाजपा से नाता तोड़ लिया। पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने पद्म विभूषण का पुरस्कार वापस करने की घोषणा कर दी। इस सबके बावजूद किसान पुनः अकाली दल पर विश्वास नहीं कर पा रहे हैं।

ये रहे है अकाली दल के प्रधान

1. सरमुख सिंह झब्बाल

2. बाबा खड़क सिंह

3. करम सिंह बस्सी

4. मास्तर तारा सिंह

5. गोपाल सिंह कौमी

6. तारा सिंह

7. तेजा सिंह

8. बाबू लाभ सिंह

9. ऊधम सिंह नागोके

10. ज्ञानी करतार सिंह

11. प्रीतम सिंह गोजरा

12. हुकम सिंह

13. संत फतेह सिंह

14. अच्छर सिंह

15. भूपेंदर सिंह

16. मोहन सिंह तूड़

17. जगदेव सिंह तलवंडी

18. हरचंद सिंह लोंगोवाल

19. सुरजीत सिंह बरनाला

20. सिमरजीत सिंह मान

21. प्रकाश सिंह बादल

22. सुखबीर सिंह बादल


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