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स्कोड़ा से महंगी काली चमेली

साहिल पुरी, बठिंडा स्कोडा कार से भी महंगी बठिंडा के ढिल्लों ब्रदर्स की मारवाड़ी घोड़ी काली चमेली

By Edited By: Published: Sun, 19 Oct 2014 02:26 AM (IST)Updated: Sun, 19 Oct 2014 02:26 AM (IST)
स्कोड़ा से महंगी काली चमेली

साहिल पुरी, बठिंडा

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स्कोडा कार से भी महंगी बठिंडा के ढिल्लों ब्रदर्स की मारवाड़ी घोड़ी काली चमेली को जो भी देखता है तो बस देखता ही रह जाता है। लोग इसे खरीदना चाहते हैं पर ढिल्लों ब्रदर्स इसे बेचना नहीं चाहते हैं। यही कारण कि इसकी कीमत बीस लाख रुपये से ऊपर पहुंच चुकी है। भटनेर अश्व मेला 2014 की प्रथम विजेता बनने के बाद काली चमेली की डिमांड के साथ रेट भी दोगुणा हो गया है। वीवीआईपी ट्रीटमेंट लेने वाली काली चमेली की परवरिश पर ढिल्लों ब्रदर्स हर माह लगभग 18 हजार रुपये खर्च कर रहे हैं। अब ब्रिडिंग के लिए ढिल्लों ब्रदर्स की नजर उपमुख्यमंत्री के मारवाड़ी घोड़े राजहंस पर है।

राजस्थान के मारवाड़ी घोड़ों की डिमांड देश में सबसे अधिक है। अपनी विशेष खासियतों के चलते काली चमेली अपना नाम मारवाड़ी हार्स बुक में सोसायटी ऑफ इंडिया जयपुर के पास रजिस्टर्ड करवा चुकी है।

दो बार राजस्थान अश्व मेले की प्रथम विजेता काली चमेली 8 माह की उम्र में ही अपनी श्रेणी में देश भर में से प्रथम स्थान प्राप्त कर चुकी है। लगभग तीन साल की हो चुकी मारवाड़ी काली चमेली महंगी स्कोडा जैसी गाड़ियों की चमक को फीका करने लगी है। शहर की सड़क पर खूबसूरत काली चमेली को दौड़ते देख महंगी गाड़ियों में बैठे नवाब भी काली चमेली की चाह रखने लगते हैं। लेकिन अभी मालिक संदीप सिंह व सुखवीर सिंह ढिल्लों काली चमेली को बेचकर अपने अस्तबल की शान को कम नहीं करना चाहते।

इंजीनियरिंग छोड़ रखीं घोड़ियां

इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के बाद भी संदीप सिंह व सुखवीर सिंह का मन अपने बाप-दादा के घोड़ियां रखने के शौक पर टिका रहा। इससे पहले ढिल्लों ब्रदर्स का सुजाफ घोड़ा रुस्तम 2004 मुक्तसर पशुधन मेला में पांचवां स्थान प्राप्त कर चुका है। वहीं, 2010 में सुलताना व मारवाड़ी घोड़ी बिजली काफी पुरस्कार जीत चुकी है। बठिंडा के जनता नगर में रहने वाले दोनों भाइयों का कहना है कि वे बचपन से ही घोड़ियां पालने का शौक रखते हैं। चमेली को बाजार में देख लोग महंगी गाड़ियों से तस्वीर खिंचवाने के लिए उतरते हैं तो खुशी मिलती है। उनका कहना है कि वे अब जल्द ही दो और शानदार घोड़े लेकर आएंगे।

उनका कहना है कि इंजीनियरिंग में मन न लगने के बाद से वह डेयरी फार्म के साथ घोड़े का व्यापार कर अपनी आजीविका व शौक को बरकरार रखे हुए हैं।


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