नोटबंदी से बिगड़ी व्यवस्था, बुढ़ापा बेबस
जागरण संवाददाता, अमृतसर : नोटबंदी के एक महीने बाद भी तस्वीर बदली नहीं। वही भीड़भाड़, धक्
जागरण संवाददाता, अमृतसर : नोटबंदी के एक महीने बाद भी तस्वीर बदली नहीं। वही भीड़भाड़, धक्का-मुक्की और उसी तरह बैंकों के बाहर रोष प्रदर्शन का क्रम जारी है। इन सबके विपरीत नोटबंदी का एक विकृत चेहरा सामने आया है, जो हर सहृदय जन की आंखें भिगो देगा।
85 वर्षीय जगजीत इंद्र पाल सिंह बतरा आज बिस्तर पर हैं। आठ महीने पूर्व पैरालाइज का अटैक आया और तब से ही उठ नहीं सकते। शिक्षा विभाग में सुप¨रटेंडेंट के रूप में सेवानिवृत्त हुए बतरा के बच्चे विदेश में सैटेल हैं। वह अपनी पत्नी के साथ मजीठा रोड स्थित घर में रहते हैं। सेवानिवृत्ति के बाद विभाग ने पेंशन लगा दी। विभाग से मिली पीएफ राशि को अलग खाते में जमा करवाया और पेंशन के लिए स्टेट बैंक ऑफ इंडिया घालामाला चौक में अकाउंट खुलवाया।
पीएफ राशि निकलवाकर घर का खर्चा चलाते रहे। पैरालाइज अटैक आने के बाद उनके जानने वालों ने सरकारी कार्यालयों की औपचारिकताएं पूरी करवाकर बैंक में दस्तावेज जमा कर दिए। इसके बाद बैंक कर्मचारी हर माह उनके घर आकर पीएफ राशि में से हर माह पच्चीस से तीस हजार रुपये उन्हें दे जाता। अक्टूबर में पीएफ राशि खत्म हो गई तो जगजीत इंद्र पाल पेंशन राशि पर निर्भर हो गए। इसी बीच 8 नवंबर को नोटबंदी का आदेश जारी हुआ। यह आदेश इन बुजुर्ग के लिए भारी मुसीबत बन गया। बैंक वालों ने पेंशन नहीं भेजी।
जगजीत इंद्र पाल बड़ी मुश्किल से बोल पाते हैं। कहते हैं- मैं उठ नहीं सकता। अपने परिचित को बैंक भेजा तो अधिकारियों ने कहा कि पेंशन की राशि जनवरी में घर पहुंचेगी। आज मेरे घर में एक नया पैसा नहीं बचा। बीमारी के कारण हजारों रुपयों की दवाइयां खाता हूं। कामकाज के लिए सहायक रखे हैं। डॉक्टर को घर बुलाता हूं। उन्हें भी फीस देनी पड़ती है। पेंशन के सहारे जिंदगी की गाड़ी चल रही थी। वह भी नहीं मिलेगी तो खाना कहां से खाएंगे? जगजीत इंद्र पाल जैसे अनेक बुजुर्ग हैं जो इस परेशानी का सामना कर रहे हैं।