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शिक्षा से 'रोशन' हुई आंखें

धीरज कुमार झा, अमृतसर इन बालिकाओं की आंखें बेशक बचपन से ही नहीं खुल पाई हैं, लेकिन शिक्षा के प्रक

By Edited By: Published: Fri, 04 Sep 2015 09:26 PM (IST)Updated: Fri, 04 Sep 2015 09:26 PM (IST)
शिक्षा से 'रोशन' हुई आंखें

धीरज कुमार झा, अमृतसर

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इन बालिकाओं की आंखें बेशक बचपन से ही नहीं खुल पाई हैं, लेकिन शिक्षा के प्रकाश ने इन्हें 'रोशन' कर दी हैं। बंद आंखों में बड़े-बड़े सपने हैं। हाई-फाई स्कूल में बढ़ने वाले आम बच्चों की तरह इनकी अंगुलियां भी कंप्यूटर के की-बोर्ड पर दनादन दौड़ती हैं। इन्हें संगीत में भी महारत हैं। ये हारमोनिया और सितार भी बजा लेती हैं। पढ़ाई में भी पीछे नहीं हैं। तभी तो इसी स्कूल की छात्रा कूच बिहार की आबिदा खातून अब स्कूल में शिक्षिका का फर्ज निभा रही हैं। एमए की पढ़ाई करने के बाद अब वह सरकारी नौकरी की हसरत देख रही हैं।

अमृतसर में 30 सालों से यह स्कूल चल रहा है। इसमें तालीम हासिल कर सैकड़ों बालिकाओं के भविष्य का अंधेरा मिट चुका है। कारसेवा वाले बाबा खड़ग सिंह ने 1985 में छेहरटा में बीबी भानी कन्या नेत्रहीन विद्यालय का नींव पत्थर रखा था। फिलहाल स्कूल में पढ़ने वाली सोलह छात्राएं और पढ़ाने वाली चार शिक्षिकाएं सभी नेत्रहीन हैं। दानियों की मदद से यह स्कूल चल रहा है। स्कूल चलाने वाली 21 सदस्यीय प्रबंधकीय कमेटी के सदस्य भी नेत्रहीन हैं। कमेटी के प्रधान हेडमास्टर मंजीत सिंह अंध विधालय के प्रिंसिपल भी हैं। यहां के सभी विद्यार्थी अलग-अलग प्रांतों से हैं, लेकिन वह अब एक परिवार के सदस्य बन चुके हैं। मनमीत कौर जम्मू से हैं। उनके पिता आर्मी में हैं। उनके पिता यहां लेकर आए, ताकि वह भी आगे चलकर अफसर बन सके। इसी तरह महकप्रीत कौर पहली की छात्रा है। मजीठा की पूनम भी पहली कक्षा में हैं। तीसरी में पढ़ने वाली कोमल अंबाला से यहां पढ़ने आई है। इसके अलावा आठवीं की छात्रा जसमीन कौर बेगोवाल की रहने वाली हैं। छठी कक्षा की मनिन्दर खंडवाला की हैं, जबकि पवनप्रीत कौर कपूरथला की। बच्चे पंजाब स्कूल शिक्षा बोर्ड से बारहवीं तक की पढ़ाई के बाद गुरु नानक देव विश्वविद्यालय से बीए व एमए की तालीम ले रहे हैं। विद्यालय में चार शिक्षिकाएं भी हैं। जसविन्दर कौर म्यूजिक टीचर हैं। खुद बारहवीं पास है। हारमोनियम, सितार सिखाती हैं। डोलमा तिब्बत से आई हैं। महाराष्ट्र से भाई उसे यहां पढ़ने के लिए छोड़ गया। अब वह खुद टीचर बन चुकी हैं। पश्चिम बंगाल के कूच बिहार से आई आबिदा खातून यहां बारह साल पहले आई हैं। ढाई साल में उनकी आंख चली गई थी। एमए की पढ़ाई कर रही हैं। वह नौकरी पाने की हसरत संजोए बैठी हैं। पलविन्दर कौर बटाला की रहने वाली हैं। 15 साल पहले छात्र बनकर आई थी। अब स्कूल में शिक्षिका हैं। बारहवीं तक पढ़ाई की है। वह बच्चों को हिन्दी, पंजाबी, अंग्रेजी, गणित पढ़ाती हैं।

कमेटी के प्रधान मंजीत सिंह कहते हैं कि परमात्मा की मर्जी से तीस सालों से यह स्कूल चल रहा है। नेत्रहीनों की मदद करने वाले कई दानी हैं। बच्चों के खान-पीन, पढ़ाई सब कुछ मुफ्त। इसके लिए स्टाफ भी हैं। इन्हें हर माह वेतन देते हैं। धन-धन बाबा दीप सिंह जी वेलफेयर सोसायटी के सरपरस्त हरमिंदर सिंह भाटिया व प्रधान बरजिंदर सिंह कहते हैं कि यहां पढ़ने वाली छात्राएं नेत्रहीन लेकिन काफी प्रतिभाशाली हैं। संगीत, कंप्यूटर सब कुछ जानती हैं। वह पढ़ाई में भी अव्वल हैं। सोसायटी की ओर से समय-समय पर स्कूल की मदद की जाती है। सरकार को भी इस ओर ध्यान देना चाहिए।


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