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यादों से भी 'आजाद' हो रहे चंद्रशेखर

रमेश शुक्ला 'सफर', अमृतसर 25 वर्ष की उम्र में जिस चंद्रशेखर आजाद ने देश को आजादी दिलाने के लिए अप

By Edited By: Published: Fri, 27 Feb 2015 09:35 PM (IST)Updated: Fri, 27 Feb 2015 09:35 PM (IST)
यादों से भी 'आजाद'  हो रहे चंद्रशेखर

रमेश शुक्ला 'सफर', अमृतसर

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25 वर्ष की उम्र में जिस चंद्रशेखर आजाद ने देश को आजादी दिलाने के लिए अपने कनपटी पर गोली दाग ली थी, आज उसी आजाद को युवा पीढ़ी भूलती जा रही है। विडंबना देखिए, युवाओं को 'पीके' और 'शमिताब' से लेकर विश्व क्रिकेट मैच में जीत-हार के बारे में जानकारी थी, लेकिन यह भूल गए थे कि कि 27 फरवरी 1931 देश को आजादी दिलाने के लिए उस क्रांतिकारी देशभक्त चंद्रशेखर आजाद ने अपने कनपटी पर गोली मार ली थी। आजाद का प्रण था कि वह हमेशा आजाद रहेगा, अंग्रेज न उसे मार सकते हैं और न गिरफ्तार कर सकते हैं।

आर्ट गैलरी में आई दीपा और काजल दोनों ग्रीन एवेन्यू की रहने वाली हैं। दोनों दसवीं की छात्रा हैं। दीपा कहती हैं कि मैं चंद्रशेखर आजाद को नहीं जानती, तभी काजल बोल पड़ी, अरे ये वही तो नहीं जिन्होंने जनरल डायर को मारा था। छेहरटा के दविंदर सोनी व नानक सिंह दोनों यह तो जानते हैं कि देश में कोई आजाद था, लेकिन यह भूल गए कि उनका पूरा नाम चंद्रशेखर आजाद था।

कचहरी में मैरिज रजिस्ट्रेशन करवाने आए केशव व योग्यता दोनों ग्रेजुएट हैं। दोनों ने लव मैरिज की थी। दोनों एमबीए भी साथ कर रहे हैं। लेकिन दोनों ने एक साथ गलत उत्तर दिया। पहले दोनों चंद्रशेखर आजाद को चंद्रमोहन आजाद बताते रहे और बाद में यह भी कह दिया कि उन्हें अंग्रेजों ने फांसी दी थी।

चौकाने वाली बात यह है कि कचहरी चौक के पास गन्ने का रस बेचने वाला दसवीं पास राम आधार जानता था कि चंद्रशेखर आजाद कौन थे, उनकी सारी कहानी उन्हें याद थी। बताते हैं स्कूल में नैतिक पाठ में पढ़ा था।

पंजाब के पूर्व मंत्री प्रोफेसर लक्ष्मीकांता चावला कहती हैं कि आज की व्यवसायीकरण शिक्षानीति ने देश को भुला दिया है। किताबों व स्कूलों में अब देश व देश के शहीदों के बारे में बताने के लिए कुछ नहीं है। यही वजह है कि युवा देश के इतिहास और देश की सभ्यता भूल रहा है। जनवादी लेखक संघ के प्रधान व साहित्यकार देवदर्द मानते हैं कि आज के दौर में शिक्षण संस्थाएं अपना दायित्व नहीं निभा रही हैं। मुल्क के शहीदों के बारे में न किताबों में कुछ बचा है और न ही स्कूलों में बताया ही जाता है। यह देश की आने वाली पीढ़ी के लिए बड़ी चुनौती है।


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