बड़ा विलक्षण है ध्यान का आनंद
असमर्थ महिला कल्याण समिति के संस्थापक पंडित रामनिवास अहिरका ने नरवाना रोड पर समिति की बैठक में परमात्मा के ध्यान के महत्व पर प्रकाश डाला।
जींद। असमर्थ महिला कल्याण समिति के संस्थापक पंडित रामनिवास अहिरका ने नरवाना रोड पर समिति की बैठक में परमात्मा के ध्यान के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि हमारी आत्मा सचिदानंद परमात्मा का अंश होने के कारण इसमें सत और चित्त तो है, लेकिन आनंद दिलाने के लिए दुनिया में यदि कोई वस्तु है तो वह परमात्मा का भजन और उसका ध्यान है। इसके लिए नित्य सात्विक भोजन, स्वाध्याय, निष्काम सेवा, सदाचार, ध्यान के समय नाभि, हृदय और मस्तिष्क का एक सीध में रखना ही पर्याप्त नहीं, ध्यान के समय श्वास की गति भी सतोगुण प्रधान होनी चाहिए। ध्यान में बैठने से पूर्व यदि आपके श्वास की गति रहने नाशा द्वार में तीव्र गति से हो तो उस समय आपके श्वास में तमोगुण की प्रधानता होती है। यदि बाए नाशा द्वार में तीव्र गति से हो तो रजोगुम की प्रधानता होती है। सतोगुण की प्रधानता के लिए दोनों नाशा द्वारों में श्वास की गति सम होनी चाहिए। इसके लिए जिस भी तरफ के नाशा द्वार में श्वास की गति तीव्र हो दो मिनट उसी करवट लेट जाएं। इससे तत्काल श्वास की गति दूसरी तरफ के नाशाद्वार में बढ़ने लगेगी। जब श्वास की गति दोनों नाशाद्वारों में समगति से चलने लगे तो परमात्मा के भजन तथा ध्यान के लिए ऊनी तथा पटसन के आसन पर पालथी मार कर बैठ जाए ताकि भजन तथा ध्यान से प्राप्त ऊर्जा पृथ्वी में न जा आपके शरीर में ही रहे। इससे आपको कुछ दिन के अभ्यास से ही बड़ा विलक्षण आनंद प्राप्त होने लगेगा।
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