कालीमठ मंदिर-रुद्रप्रयाग
कंद पुराण के अंतर्गत केदारखंड के बासठवें अध्याय में मंदिर का वर्णन है। साथ यहां शिलालेखों में पूरा वर्णन है। इस मंदिर की स्थापना शंकराचार्य की ओर से की गई थी।
रुद्रप्रयाग। स्कंद पुराण के अंतर्गत केदारखंड के बासठवें अध्याय में मंदिर का वर्णन है। साथ यहां शिलालेखों में पूरा वर्णन है। इस मंदिर की स्थापना शंकराचार्य की ओर से की गई थी। रुद्रशूल नामक राजा की ओर से यहां शिलालेख स्थापित किए गए हैं जो बाह्मीलिपी में लिखे गए हैं। यहां मां काली ने रक्तबीज राक्षस का संहार किया था, जिसके देवी मां इसी जगह पर अंर्तध्यान हो गई थीं। आज भी यहां पर रक्तशिला, मातंगशिला व चंद्रशिला स्थित है।
सामयिकता-
नवरात्र के समय महाअष्टमी को रात्रि में यहां महानिशा की पूजा होती है। रात्रि के चारों पहर लोग उपवास रखकर पूजा करते हैं। इस पूजा का सबसे अधिक महत्व है।
रुचिकर तथ्य- इस सिद्धपीठ में पूजा-अर्चना के लिए श्रद्धालु मां को कच्चा नारियल व देवी के श्रृंगार से जुड़ी सामग्री जिसमें चूड़ी, बिंदी, छोटा दर्पण, कंघी, रिबन, चुनरिया अर्पित करते हैं।
ऐसे पहुंचे-
जिला मुख्यालय रुद्रप्रयाग से गौरीकुंड हाइवे के जरिए 42 किमी का सफर तय कर गुप्तकाशी पहुंचे। उसके बाद गुप्तकाशी से सड़क मार्ग से आठ किमी सफर तय कर कालीमठ मंदिर पहुंचा जा सकता है।
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