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550 वर्षो में भी नहीं बदल पाई काली पूजा-विधि

साढ़े पांच सौ वर्ष गुजर गए, मगर उत्तर दिनाजपुर के जिला मुख्यालय रायगंज के बंदर इलाके में स्थापित मां काली की मूर्ति की पूजा विधि नहीं बदली। पंजाब से आए एक साधु द्वारा स्थापित इस प्रतिमा की तांत्रिक क्रिया से पूजा होती है और मां को प्रसाद के रूप में शोल मछली चढ़ाई जाती है। किंवदंती है कि मां की कृपा से यहां कई डकैतों का आत्मपरिवर्तन हो चुका है। मान्यता है कि मां की पूजा करने वाले कभी उनके दरबार से खाली हाथ नहीं लौटते। यही कारण है कि यहां पूजा देखने के लिए चार-पांच दिन पहले यहां भीड़ लगने लगती है।

By Edited By: Published: Sun, 11 Nov 2012 08:46 AM (IST)Updated: Sun, 11 Nov 2012 08:46 AM (IST)

उत्तर दिनाजपुर, निज संवाददाता। साढ़े पांच सौ वर्ष गुजर गए, मगर उत्तर दिनाजपुर के जिला मुख्यालय रायगंज के बंदर इलाके में स्थापित मां काली की मूर्ति की पूजा विधि नहीं बदली। पंजाब से आए एक साधु द्वारा स्थापित इस प्रतिमा की तांत्रिक क्रिया से पूजा होती है और मां को प्रसाद के रूप में शोल मछली चढ़ाई जाती है। किंवदंती है कि मां की कृपा से यहां कई डकैतों का आत्मपरिवर्तन हो चुका है। मान्यता है कि मां की पूजा करने वाले कभी उनके दरबार से खाली हाथ नहीं लौटते। यही कारण है कि यहां पूजा देखने के लिए चार-पांच दिन पहले यहां भीड़ लगने लगती है।

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मां की प्रतिमा पंचमुक्ति आसन में विराजमान है। मां को शोल मछली का भोग पंसद है। मंदिर के पुजारी मृत्युंजय चट्टोपाध्याय बताते हैं कि संत वामाखेपा के निर्देश पर साधक जानकीनाथ चट्टोपाध्याय ने वीरभूम से यहां आकर पूजा शुरू की थी। मंदिर के कुछ ही दूर पर कुलिक पक्षी निवास है जो इसके सौंदर्य को चार चांद लगाता रहता है। भक्तों द्वारा दान में दिए गए गहने से ही मां की मूर्ति सजाई जाती है। कई लोग पहले आदी कालीबाड़ी में चंदा देने के बाद ही दूसरी कमेटी को चंदा देते हैं। 550 वर्ष पूर्व पंजाब से एक साधु यहां आए थे। उन्होंने ही पंचमुक्ति की स्थापना कर कुछ दिनों तक पूजा की थी। उसके बाद इस मंदिर में डकैतों द्वारा पूजा की जाने लगी। पुजारी का कहना है कि माता की पूजा अर्चना का प्रभाव है कि कई डकैत आपराधिक जीवन त्यागकर सामान्य जीवन यापन करने लगे। इसके बाद उनके द्वारा श्रद्धालुओं को एकजुट कर स्थायी मंदिर स्थापित किया गया। तब प्रत्येक दीपावली पर तांत्रिक विधि से पूजा अर्चना होती चली आ रही है। रायगंज शहर के चारों ओर बड़े बजट की पूजा होती है। भव्य पंडाल वाली पूजा आदि कालीबाड़ी की माता की गरिमा को तनिक भी कम नहीं कर पाई है।

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