भागवत कथा में बही भक्ति की धारा
जगत के किसी भी पदार्थ में इतना मोह मत रखो कि वह तुम्हारी भक्ति में बाधा बन जाए। ममता बंधनकर्ता है।
आगरा। जगत के किसी भी पदार्थ में इतना मोह मत रखो कि वह तुम्हारी भक्ति में बाधा बन जाए। ममता बंधनकर्ता है। यह कहना था आचार्य श्यामदत्त का। वे कमला नगर स्थित महाराजा अग्रसेन सेवा सदन में आयोजित भागवत कथा के दूसरे दिन जड़ भरत की कथा का वर्णन कर रहे थे।
कथा का प्रारम्भ में उन्होंने गुरु की महिमा का वर्णन किया। उसके बाद आदिशक्ति सती के चरित्र व मनु की कन्याओं के वंश का उल्लेख एवं दक्ष प्रजापति की पत्नी प्रसूती को सोलह कन्याओं के बारे मे वर्णन करते हुए बताया कि सोलहवीं कन्या सती थी, जो कि भगवान शिव की पत्नी बनी थीं। कथा व्यास ने ऐसी बहुत सी कथाओं के बारे में वर्णन कर भक्तों का मन मोह लिया। सभी भक्त भागवत कथा के बीच बीच में होने वाले मधुर भजनों जैसे मेरे घर के आगे ओ श्याम, तेरा मंदिर बन जाए एवं अमीर चले आये गरीब चले आये आज तेरे दर पर फकीर चले आए भजनों में भाव विभोर हो गए।
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