जोगिया रंग ने तोड़ा पूरब पश्चिम का भेद
काशी के घाट पूरी तरह जोगिया रंग में रंग आए। नख शिख भभूती लगाए-धूनी रमाए संन्यासियों के डेरे। इसे देशी श्रद्धालुओं के साथ ही विदेशी श्रद्धालु दिन भर घेरे रहे। जुहार लगाते-शीश नवाते अघाते रहे। बुधवार को अन्य दिनों की अपेक्षा कुछ अधिक ही भीड़ रही। कुंभ में ऐसे रंग ढंग लोगों को दंग कर रहे थे। अब सांस्कृतिक समृद्धता की पुनरावृत्ति काशी को निहाल कर रही थी।
वाराणसी। काशी के घाट पूरी तरह जोगिया रंग में रंग आए। नख शिख भभूती लगाए-धूनी रमाए संन्यासियों के डेरे। इसे देशी श्रद्धालुओं के साथ ही विदेशी श्रद्धालु दिन भर घेरे रहे। जुहार लगाते-शीश नवाते अघाते रहे। बुधवार को अन्य दिनों की अपेक्षा कुछ अधिक ही भीड़ रही। कुंभ में ऐसे रंग ढंग लोगों को दंग कर रहे थे। अब सांस्कृतिक समृद्धता की पुनरावृत्ति काशी को निहाल कर रही थी। आय-आयु की सीमाओं से परे पुरुष- महिलाएं तो आधुनिकता की माला जपने वाले युवाओं की भी बड़ी भागीदारी रही।
11 वर्षीय बाल संन्यासिन का आशीष पाने की होड़ हरिश्चंद्रघाट पर कैंप में विराजमान जूना अखाड़े की बाल संन्यासिन राजेश्वरी भारती (11 वर्ष) का आशीष लेने की लोगों में होड़ रही। उन्होंने सात वर्ष पहले नागा संस्कार लिए थे। जंगम की अलख से गूंजे घाट
जंगम संन्यासियों की अलख से भी घाट गूंजे। जम्मू कश्मीर के घूमंतू संन्यासियों का 10 सदस्यीय जत्था प्रयाग से यहां आया। पंचदेव को सिर पर धारण किए भगवान शिव के भजन गाते नागा साधुओं से भिक्षाटन किया। बताया कि सिर पर मोर मुकुट विष्णु, नाग का फन शिव, फूल पार्वती, जनेऊ ब्रह्मा व घंटी नंदी का प्रतीक है।
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