श्रीहरि को समर्पित कार्तिक पूर्णिमा
कार्तिक मास सृष्टि के पालनकर्ता श्रीहरि यानी भगवान विष्णु को समर्पित मास है। इस माह की अंतिम तिथि पूर्णिमा को देवदीपावली मनाया जाता है। यह उत्सव 28 नवंबर (बुधवार) को पड़ रहा ह
वाराणसी। कार्तिक मास सृष्टि के पालनकर्ता श्रीहरि यानी भगवान विष्णु को समर्पित मास है। इस माह की अंतिम तिथि पूर्णिमा को देवदीपावली मनाया जाता है। यह उत्सव 28 नवंबर (बुधवार) को पड़ रहा है। पूर्णिमा तिथि 27 को अपराह्न 4.54 बजे लग रही है जो बुधवार को रात 7.06 बजे तक रहेगी। पूर्णिमा पर दिन के 2.23 बजे तक कृतिका नक्षत्र का अनुपम संयोग है। शास्त्रों में इसे महाकार्तिकी की संज्ञा दी गई है।
मान्यता है कि श्रीहरि ने भाद्रमास की एकादशी को शंखासुर राक्षस करने के बाद क्षीरसागर में शयन किया और कार्तिक शुक्ल एकादशी को जागे। इसे देवोत्थान एकादशी के नाम से जाना गया। भगवान के जागने की खुशी में पांचवें दिन पूर्णिमा की रात देवों ने आह्लादित होकर गंगा, अन्य नदियों व सरोवरों के तट पर दीप जलाकर कर उत्सव मनाया। काशी में यह उत्सव आस्था-उल्लास के साथ मनाया जाता है। गंगा के घाटों पर लाखों की संख्या में दीप जगमगाते हैं। आभा निखरने के लिए धर्मानुरागीजनों के साथ ही देश विदेश से पर्यटकों का आना जारी है।
काशी विश्वनाथ मंदिर के आचार्य पद्मश्री प्रो. देवी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा पर भगवान विष्णु व प्रभु शंकर के देवालयों में दीपदान का विशेष महत्व है। इससे लक्ष्य प्राप्ति में विहित समस्याओं का निराकरण हो जाता है। कार्तिक पूर्णिमा पर गंगा स्नान, दीपदान व भगवान कार्तिकेय के दर्शन पूजन का भी विधान शास्त्रों में वर्णित है।
यह भी माना जाता है कि कार्तिक पूर्णिमा को ही भगवान शंकर ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध किया था। इसी दिन शिवजी के आशीर्वाद से दुर्गारूपिणी पार्वती ने महिषासुर वध के लिए शक्तियां अर्जित की थीं। इस दिन चंद्रोदय पर 6 कृतिकाओं -शिवा, संभूति, संतति, प्रीति, अनसूया व क्षमा का पूजन मंगलकारी माना जाता है।
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