रामसेतु का विखंडन अनुचित
बंगाल की खाड़ी और अरब सागर के बीच प्रस्तावित सेतु समुद्रम परियोजना के तहत रामसेतु का विखंडन धार्मिक दृष्टि से अनुचित है। सुरक्षा की दृष्टि से भी यह ठीक नहीं है।
वाराणसी। बंगाल की खाड़ी और अरब सागर के बीच प्रस्तावित सेतु समुद्रम परियोजना के तहत रामसेतु का विखंडन धार्मिक दृष्टि से अनुचित है। सुरक्षा की दृष्टि से भी यह ठीक नहीं है।
ज्योतिषपीठाधीश्र्र्वर शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने परमहंसी आश्रम (म.प्र.) से बुधवार को जागरण को प्रेषित ईमेल में कहा है कि वैसे भी 100 वर्ष से अधिक पुरानी ऐतिहासिक वस्तु, इमारत, स्मारक, बगैरह का विखंडन भारतीय संविधान के विपरीत है, फिर रामसेतु का तो हजारो-लाखों वर्ष पूर्व का प्रामाणिक इतिहास है। कुछ वर्ष पूर्व अमेरिकी ऐजेंसी नासा ने भी सेटेलाइट चित्रों के माध्यम से रामसेतु की प्रामाणिकता साबित की थी।
दक्षिण भारत के कुछ लोग इस भ्रम के आधार पर कि भगवान राम आर्य थे और रावण अनार्य। वे अनार्य रावण के वंशजों की संतान हैं इसलिए रामसेतु को वे रावण की विजय का प्रतीक मानते हुए उसके विखंडन का आग्रह कर रहे हैं। वास्तविकता यह है कि रावण ब्रांाण होते हुए भी अहंकारवश राक्षस हो गया था।
उन्होंने बताया है कि लाखों वर्ष पूर्व बनवाया गया रामसेतु भारत के दक्षिण तट रामेश्वरम से लेकर श्रीलंका तक फैला हुआ है। अभी तक मालवाहक एवं अन्य बडे़ जहाज श्रीलंका के दक्षिणी समुद्री तट से परिवहन करते हैं, रामसेतु के विखंडन से समुद्री जहाज भारत के दक्षिण तट (भारतीय समुद्री सीमा) से निकलने लगेंगे, जिससे भारत के दक्षिण भाग की सुरक्षा भी प्रभावित होगी। बडे़ जहाजों के आवागमन से भारत के दक्षिणी समुद्री भाग से सटे समुद्री तटों पर बड़ी संख्या में समुद्री जीवों की असमय हत्या होगी जिसके कारण पर्यावरण को भारी खतरा होगा। उपरोक्त स्थिति में रामसेतु का विखंडन धार्मिक ही नहीं आर्थिक, पर्यावरण एवं सुरक्षा की दृष्टि से भी अनुचित है।
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