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आस्था के केंद्र सूर्य मंदिर

औरंगाबाद जिले के देव में स्थित ऐतिहासिक सूर्य मंदिर के बारे में मायन्ता है कि यहां लाखों श्रद्धालु आते हैं और अपनी मन्नतें पूरी कर लौटते हैं। कार्तिक एवं चैत मास में लगने वाले मेले में श्रद्धालुओं की निरंतर प्रवाह देखते ही बनता है। देवार्क के नाम से विख्यात सूर्य मंदिर की आस्था पूरे देश में फैली है।

By Edited By: Published: Thu, 08 Dec 2011 06:43 PM (IST)Updated: Thu, 08 Dec 2011 06:43 PM (IST)
आस्था के केंद्र सूर्य मंदिर

देवार्क, [औरंगाबाद]। औरंगाबाद जिले के देव में स्थित ऐतिहासिक सूर्य मंदिर के बारे में मायन्ता है कि यहां लाखों श्रद्धालु आते हैं और अपनी मन्नतें पूरी कर लौटते हैं। कार्तिक एवं चैत मास में लगने वाले मेले में श्रद्धालुओं की निरंतर प्रवाह देखते ही बनता है। देवार्क के नाम से विख्यात सूर्य मंदिर की आस्था पूरे देश में फैली है। जिला मुख्यालय से 18 किलोमीटर एवं जीटी रोड देव मोड़ [देव द्वार] से छह किलोमीटर दक्षिण स्थित इस धाम पर देश के कोने-कोने से श्रद्धालु आते हैं। बिहार के अलावा झारखंड, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश एवं छत्तीसगढ़ से श्रद्धालु पहुंचे हैं। छठ के मौके पर यहां मेला लगता है। मंदिर में ब्रंा, विष्णु एवं महेश रूपी एकादश सूर्य की प्रतिमा विराजमान है। भगवान की मुखाकृति के अवलोकन के समय यह झलक जाता है कि भगवान उनके प्रति वात्सलय हैं या निर्मिमेष। सूर्य की ऐसी जागृत प्रतिमा शायद अन्यत्र कहीं नहीं है। सूर्य मंदिर उलार सूर्यपुराण में वर्णित कथा के अनुसार गंगाचार्य ऋषि प्रात: काल स्नान करने जा रहे थे। उसी समय श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब अपनी पत्‍‌नी के साथ नदी तट पर स्नान कर रहे थे। सुबह की बेला में अर्घनग्न स्त्री पुरुष को साथ स्नान करता देख ऋषि आग बबूला हो गये। उन्होंने तुरंत श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब को श्राप दिया कि तुम्हें कुष्ठ हो जाये। जब कृष्ण को इसकी जानकारी मिली तो वे बड़े दुखी हुए। तब नारद जी ने साम्ब को श्राप से मुक्ति के लिए बारह विभिन्न स्थानों पर सूर्य मंदिर का निर्माण कराने एवं सूर्य उपासना का उपाय बताया। श्राप मुक्ति का उपाय सुनकर कृष्ण पुत्र साम्ब ने उलीक, देवीक, पूर्णाक, लोलीक, कोर्णाक समेत बारह विभिन्न स्थानों पर सूर्य मंदिर का निर्माण करवाया। तब जाकर उन्हें श्राप से मुक्ति मिली। आगे चलकर उलीक ही बोलचाल की भाषा में पटना जिले के दुल्हिनबाजार प्रखंड अंतर्गत उलार नाम से प्रसिद्ध हुआ।

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मुस्लिम शासकों के शासनकाल में इस मंदिर को ध्वस्त कर दिया गया था। इसके आसपास जंगल उग आये। संत अलबेला बाबा द्वारा 1950-54 के बीच जन सहयोग से इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया। वर्तमान में इस मंदिर में पाल कालीन काले पत्थर की खंडित मूर्तियां हैं। यहां भगवान की खंडित मूर्ति की पूजा की जाती है। पुत्र धन की प्राप्ति के बाद महिलाएं छठ पर्व में अपने आंचल पर नटुआ [पुरुष नर्तक] का नृत्य करवा कर अपनी मनता पूर्ण करती हैं। बिहटा का यह सूर्य मंदिर पटना जिले के बिहटा प्रखंड स्थित वायु सेना के प्रांगण में स्थित है। खास कर छठ पर्व पर यहां भक्तों की आस्था देखते ही बनती है। बिहटा का ऐतिहासिक सूर्य मंदिर और तालाब धार्मिक दृष्टिकोण से काफी महत्वपूर्ण हैं। पटना से करीब 35 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है बिहटा। कार्तिक व चैत मास में छठ पर्व पर यहां स्थानीय के साथ ही दूर दराज से भी भक्त एवं व्रती आते हैं। ऐसी मान्यता है कि जो सूर्य मंदिर में आकर सच्ची निष्ठा से छठ व्रत करता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। प्रसिद्ध मंदिर की स्थापना कब हुई इसका कहीं स्पष्ट उल्लेख तो नहीं मिलता है लेकिन इसके संस्थापक के रूप में बाबा रामदासजी महाराज का नाम लिया जाता है। जानकारों के मुताबिक एक संत घूमते हुए यहां पहुंचे। उस समय गांव में संक्रामक बीमारी फैली थी। यह देख संत ने स्थानीय लोगों को भगवान भास्कर का मंदिर व तालाब बनाने का आदेश दिया। इसके बाद स्थानीय लोगों ने इस मंदिर और तालाब का निर्माण करवाया। साथ ही इस मंदिर में छठ व्रत का अनुष्ठान भी शुरू हुआ।

श्री विष्णु सूर्य मंदिर पटना जिले के मसौढ़ी अनुमंडल मुख्यालय के माणिचक स्थित श्री विष्णु सूर्य मंदिर 66 साल पुराना है। नगर परिषद के माणिचक मोहल्ले के वार्ड -12 में स्थित श्री विष्णु सूर्य मंदिर की अपनी एक पौराणिक कथा है। मोहल्ले के लोग बताते हैं कि सन 1945 में रामायण यादव मकान बनाने के लिए माणिचक के रामखेलावन यादव और विपत यादव की खेत से मिट्टी खोद रहे थे। इसी दौरान वहां भगवान विष्णु की अष्ठधातु की प्रतिमा मिली। ग्रामीणों ने प्रतिमा को तत्काल गांव के मुखलाल यादव के दालान में प्रतिस्थापित कर दिया। जिसके बाद हर रविवार को ग्रामीण यहां पूजा करने लगे। ग्रामीणों व मसौढ़ी के अन्य श्रद्धालुओं के सहयोग से दान में दी गई जमीन पर श्री विष्णु सूर्यमंदिर बना। 1949 में वहां भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थायी रूप से प्रतिस्थापित कर दी गई। बताया जाता है कि मसौढ़ी के कुष्ठरोगी रामसेवक प्रसाद वहां आया और ठीक होने की मन्नत मांगी। स्वस्थ होने के बाद उसने कुआं खुदवाने का वचन दिया। एक सप्ताह के भीतर ही वह स्वस्थ होने लगा। रामसेवक प्रसाद ने अपना वचन निभाया और भगवान विष्णु के मंदिर के पास ही भगवान सूर्य का मंदिर और बगल में एक कुआं खुदवा दिया। इसी तरह कई लोगों ने यहां मन्नत मांगी और मुराद पूरी होने पर अपना वचन निभाया। हंडिया देश के ऐतिहासिक सात सूर्य मंदिरों में शामिल है नवादा जिले के नारदीगंज प्रखंड क्षेत्र के हंडिया गांव स्थित सूर्यनाराण मंदिर। द्वापर कालीन सूर्य मंदिर होने के साक्ष्य यहां आज भी मौजूद हैं। राजगीर-बोध गया मार्ग पर राजमार्ग सं. 82 से महज चार किलोमीटर पश्चिम स्थित है हंडिया सूर्य मंदिर। लेकिन वहां तक जाने को पक्की सड़क नहीं है। धूलभरी सड़कों से व्रतियों व श्रद्धालुओं को आना -जाना पड़ता है। मान्यता है कि मगध सम्राट जरासंघ की पुत्री धन्यावती ने सूर्य मंदिर व तालाब की नींव डाली थी। धन्यवती प्रतिदिन यहां के तालाब में स्नान कर सूर्य मंदिर के साथ ही यहां से पश्चिम धनियावां पहाड़ी पर स्थित शिवलिंग पर जलाभिषेक किया करती थी। मंदिर के पास चैत शुक्ल पक्ष व कार्तिक शुक्ल पक्ष चतुर्थी से लेकर सप्तमी तक छठ पर्व पर दो बार मेला लगता है। मेले के दौरान रोशनी, सुरक्षा, पेयजल व मनोरंजन की जिम्मेवारी ग्रामीणों के कंधों पर होती है। मेले में किसी प्रकार की सरकारी सहायता नहीं मिलने का मलाल व्रतियों व ग्रामीणों को है।

नौलखा मंदिर, रक्सौल पूर्वी चंपारण जिले में एकमात्र सूर्य मंदिर रक्सौल थाना प्रांगण स्थित तालाब के मध्य स्थापित है। यह मंदिर धार्मिक आस्था का केन्द्र है। इस मंदिर का निर्माण कार्य 1991 में शुरू हुआ। मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा 27 जनवरी 1993 में संत चंचल बाबा द्वारा की गई। मंदिर के चारों ओर सीढ़ीनुमा घाट बना है। यह नौलखा मंदिर के नाम से भी चर्चित है।

कंदाहा सहरसा जिले के कंदाहा में स्थापित मार्कण्डेयार्क सूर्य मंदिर भारत के प्रसिद्ध बारह सूर्य मंदिरों में से एक है। कोणार्क व देवार्क में स्थापित सूर्य मंदिर की तुलना इस मंदिर से लोग करते हैं। यूं तो हर दिन भक्तों की भीड़ यहां होती है, लेकिन, सूर्योपासना के महा पर्व छठ में यहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। बावजूद यह मंदिर अब भी प्रशासनिक उपेक्षा का शिकार बना हुआ है। पौराणिक ग्रंथों में इस मंदिर के बारे में उल्लेख किया गया है कि भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब ने आर्यावर्त के विभिन्न भागों में नक्षत्रों की बारह राशियों की अवधि में सूर्य मंदिर की स्थापना की। कहा गया है कि यह कार्य नारद मुनि के श्राप से मुक्ति के लिए उन्होंने किया था। यह भी कहा जाता है कि सूर्य मंदिर का पुर्ननिर्माण पाल वंशीय राजाओं ने कराया था। एक ताम्र अभिलेख में यह भी कहा गया है कि ओइनवारा वंश के राजा नरसिंह देव के आदेश पर वंशधर नामक ब्राह्मण ने सन 1357 में इसका निर्माण कराया था। लक्ष्मणा नदी तट सूर्यमंदिर सीतामढ़ी नगर के लक्ष्मणा नदी के किनारे स्थित सूर्यमंदिर वर्षो पूर्व निर्मित है। वैसे तो यहां हमेशा श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है, लेकिन छठ पर और बढ़ जाती है। मान्यता है कि छठ व्रती सच्चे मन से यहां आकर भगवान सूर्य का दर्शन करें तो मुरादें पूरी हो जाती हैं। छठ पर सूर्य पूजा के लिए मंदिर को सजाया गया है। पंडित अभिराम झा बताते हैं कि जन सहयोग से मंदिर को सजाने व सूर्य पूजनोत्सव की तैयारी जारी है।

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