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काशी के पथरीले घाटों और धरोहरों पर खतरा

काशी की पहचान से जुड़े गंगा के पथरीले घाट और उसपर आबाद धरोहर गंगा कटान की भारी चपेट में हैं।

By Edited By: Published: Mon, 21 May 2012 02:54 PM (IST)Updated: Mon, 21 May 2012 02:54 PM (IST)
काशी के पथरीले घाटों और धरोहरों पर खतरा

वाराणसी। काशी की पहचान से जुड़े गंगा के पथरीले घाट और उसपर आबाद धरोहर गंगा कटान की भारी चपेट में हैं। अब तक मणिकर्णिका घाट से राजघाट के बीच कुल 31 घाटों की बुनियाद कटान की जद में थी। इधर कछुआ सेंक्च्युअरी के चलते गंगा में जिस गति से बालू क्षेत्र का दायरा बढ़ा है उससे अब नगवा से अस्सी के बीच के घाट भी कटान की जद में आ गए हैं। इन सबके पीछे सबसे बड़ा कारण सामने आया है .अविरलता व जल वेग का लोप। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में गंगा अन्वेषण केंद्र के संस्थापक रहे प्रो. यूके चौधरी के अनुसार पानी में जब वेग होता है तो उसमें घुमाव (सेकेंड्री सर्कुलेशन) पैदा होता है। यह घुमाव ही मिट्टी को आगे बढ़ाता है। यह प्रक्त्रिया गंगा के बीच में होती है लेकिन अफसोस, गंगा की अविरलता बाधित होने से उसका वेग खत्म हो चुका है। ऐसे में खनन न होने के कारण बालू क्षेत्र का विस्तार होता जा रहा है जिससे यह घुमाव (सेकेंड्री सर्कुलेशन) बीच से हटकर घाट के किनारे होने लगा। यह घुमाव अब घाटों के नीचे की मिट्टी काटकर उसे ढोने (आगे बढ़ाने) का काम करने लगा है। ऐसे में घाट के किनारे की गहराई बढ़ती जा रही है। प्रो. चौधरी के अनुसार गहराई जिस अनुपात में बढ़ती जाती है, वहां भूमिगत जल के रिसाव की भी प्रक्त्रिया तेज होने लगती है। मृदा क्षरण से वहां तीक्ष्ण ढाल बनने लगता है, साथ ही मिट्टी का एक दूसरे से आपसी जुड़ाव समाप्त होने लगता है। परिणामस्वरूप जैसे-जैसे पानी और मिट्टी का गीला क्षेत्र बढ़ता जाएगा, तल उतना ही पोला होता जाएगा। कुछ ऐसी ही प्रतिक्त्रिया काशी के घाटों के बीच तेजी से हो रही है। यदि गंगा में बालू खनन जारी रहता तो नदी में जलभरण क्षमता ज्यादा होती और बाढ़ का पानी आबादी की ओर जाने की बजाए गंगा को भरने में लगा रहता, वेग का सारा आवेग बीच में होता। अविरलता बाधित होने से ऐसा नहीं हो पा रहा। प्रो. चौधरी के अनुसार गंगा में बालू की ऊंचाई जहां सबसे अधिक होती है या फिर बाढ़ के दौरान जो क्षेत्र सबसे बाद में डूबता है उसके ठीक सामने के घाट सर्वाधिक कटान की जद में होते हैं। काशी में गत वर्ष आई बाढ़ के दौरान इसे देखा भी गया कि मणिकर्णिका घाट से लगायत राजघाट और अस्सी से नगवां घाट के सामने रामनगर किले के पास फैला बालू क्षेत्र सबसे बाद में डूबे थे लिहाजा न केवल यह घाट बल्कि इनसे सटी ऐतिहासिक धरोहरों का भी वजूद खतरे में है। प्रो. यूके चौधरी के अनुसार मणिकर्णिका घाट से आदिकेशव घाट तक का क्षेत्र गंगा का मियंड्रिंग जोन (कटाव क्षेत्र) है। इन घाटों के सामने ऊंचे टीले पानी के वेग को आबादी (घाट) की ओर ठेलते हैं लिहाजा जो गहराई गंगा के बीच में होनी चाहिए वह किनारे होने लगती है। बाढ़ के दिनों में यह प्रक्त्रिया और तेज हो जाती है। जहां तक सवाल नगवा से अस्सी के बीच का है तो यह नदी का स्थिर क्षेत्र हैं। यहां न कटान संभव है और न ही मिट्टी का जमाव। क्षेत्र के लोग भले इस कटान के पीछे बाढ़ को वजह मानें लेकिन हकीकत यह है कि रामनगर किले के पास बालू क्षेत्र का विस्तार ही इन घाटों के कटान का एकमेव कारण है, अविरलता इससे जुड़ा हुआ सबसे मुख्य मसला है।

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