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वीरान मस्जिद को एक शख्स ने किया आबाद

आमतौर पर मुख्य मार्गो पर आलीशान मस्जिदें नजर आती हैं मगर रथयात्रा महमूरगंज मार्ग पर एक मस्जिद ऐसी है जिसको ध्यान से देखने पर ही लगेगा कि यह मस्जिद है।

By Edited By: Published: Wed, 01 Aug 2012 12:26 PM (IST)Updated: Wed, 01 Aug 2012 12:26 PM (IST)

वाराणसी। आमतौर पर मुख्य मार्गो पर आलीशान मस्जिदें नजर आती हैं मगर रथयात्रा महमूरगंज मार्ग पर एक मस्जिद ऐसी है जिसको ध्यान से देखने पर ही लगेगा कि यह मस्जिद है। सिर्फ एक शख्स ने 60 वर्ष पहले आकर इस वीरान मस्जिद को आबाद किया। इसकी देखरेख करने वाले 85 वर्षीय अच्छू खां ने बताया कि हजरत मामूर शाह प्राचीन काल में इसी स्थान पर इबादत करते थे। उन्होंने अपनी हयात में ही इसको मस्जिद बनवा दिया। निकट ही उनका आस्ताना है। उन्हीं के नाम से पूरे इलाके का नाम महमूरगंज पड़ गया। अच्छू के मुताबिक पहले हर जानिब बाग-बगीचा, खाली जमीन और चारों ओर कच्चे मकान थे। कोई नमाजी नहीं आता था। धीरे-धीरे लोगों को पता चला तो कुछ लोग कभी-कभी यहां आने लगे। अब स्थिति बदल गई है। अस्पतालों में काम करने वाले, मजदूर तबका, मुसाफिर, या नमाज का वक्त हो गया है तो इधर से गुजरने वाले नमाज अदा करते हैं।

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बताया कि पाबंदी से पांचों वक्त की वह अजान देते हैं और इमामत करते हैं। ईद व बकरीद की नमाज यहां नहीं होती है। अल-सुबह फज्र की जमाअत 5.30 बजे, जोहर की 1.15 बजे, अस्त्र की 5 बजे, मगरिब की 6.44 बजे तथा ईशा की रात 8.30 बजे जमाअत होती है। जुमा की नमाज बजरडीहा के हाफिज पढ़ाने आते हैं। बताया कि सातवें रमजान में हाफिज वलीउल्लाह कादरी ने खत्म तरावीह कराई। जर्जर हो चुकी मस्जिद की छत चार साल पहले बारिश में गिर गई थी। बाद में लोगों के आर्थिक सहयोग से छत का निर्माण हुआ। इस मस्जिद में लगभग 500 लोग नमाज अदा कर सकते हैं।

मगफिरत का अशरा शुरु-

रमजानुल मुबारक को तीन अशरों में बांटा गया है। पहला अशरा रहमत का (10 दिन) दूसरा मगफिरत का तीसरा व अंतिम अशरा जहन्नुम से आजादी का है। मौलाना डॉ.शफीक अजमल ने बताया कि दूसरा अशरा मंगलवार से प्रारंभ हो गया है। अल्लाह तआला अपने बंदों की गुनाहें माफ फरमाता है। कहा कि अल्लाह को अपने बंदे का रो-रोकर गिड़गिड़ाकर दुआ मांगना बहुत पसंद है। इस माह में खुदावंद कुद्दूस अपने बंदे की गुनाहों को माफ करता है।

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