नेहरू की वसीयत से खो गई गंगा
गंगा का अस्तित्व बरकरार रखने की मुहिम के बीच देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू का स्मरण स्वाभाविक है। पं. नेहरू के लिए गंगा में डुबकी लगाने का मोह जगजाहिर है।
इलाहाबाद। गंगा का अस्तित्व बरकरार रखने की मुहिम के बीच देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू का स्मरण स्वाभाविक है। पं. नेहरू के लिए गंगा में डुबकी लगाने का मोह जगजाहिर है। गंगा स्नान करते उनके चित्र आनंद भवन में आज भी विद्यमान हैं। नेहरू की पुण्यतिथि पर गंगा का मुद्दा आज अधिक प्रासंगिक है। महज इस कारण नहीं कि नेहरू ने अपनी अस्थियों की एक मुट्ठी राख गंगा में प्रवाहित करने की इच्छा जाहिर की थी, बल्कि इस वजह से भी कि उनकी भारतीय संस्कृति-सभ्यता का प्रतीक है गंगा और आज वही विलुप्त होने के कगार पर है। नेहरू के शब्दों में सोचें, तो यह गंगा के साथ समाज का विलोपन होगा। मैंने सुबह की रोशनी में गंगा को मुस्कराते, उछलते-कूदते देखा है, और शाम के साये में उदास, यही गंगा मेरे लिए निशानी है भारत की प्राचीनता की, यादगार की, जो बहती आई है वर्तमान तक और बहती चली जा रही है भविष्य के महासागर की ओर. -वसीयत से
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