ऊर्जावान बनाता है शिव का धाम
हिंदुओं के परम आराध्य भगवान शिव के धाम कैलास मानसरोवर की यात्रा विश्व की सबसे लंबी पैदल यात्रा है। दुर्गम मार्गो से ग्लेशियरों के बीच होने वाली यह यात्रा शारीरिक ही नहीं, अपितु मानसिक रूप से यात्रियों को ऊर्जावान बनाती है।
हिंदुओं के परम आराध्य भगवान शिव के धाम कैलास मानसरोवर की यात्रा विश्व की सबसे लंबी पैदल यात्रा है। दुर्गम मार्गो से ग्लेशियरों के बीच होने वाली यह यात्रा शारीरिक ही नहीं, अपितु मानसिक रूप से यात्रियों को ऊर्जावान बनाती है। एक बार शिव के धाम का दर्शन कर चुका यात्री बार-बार इस यात्रा पर जाने को इच्छुक हो उठता है। हिंदू धर्मावलंबियों के लिए भगवान शिव सबसे बड़े आराध्य माने जाते हैं। प्रत्येक व्यक्ति अपने आराध्य के धाम के दर्शन करने की लालसा रखता है। पौराणिक काल से ही त्रिपिटक (तिब्बत) में स्थित शिव के धाम कैलास मानसरोवर को स्वर्ग की संज्ञा मिली है। वर्तमान मे राजनीतिक कारणों से कैलास मानसरोवर तक पहुंचने के प्रतिबंधों के चलते प्रतिवर्ष कुछ ही भक्त यहां तक पहुंच पाते हैं। नई दिल्ली से शुरू होने वाली यह यात्रा पिथौरागढ़ जिले के धारचूला तहसील के आध्यात्मिक स्थल नारायण आश्रम से पैदल यात्रा के रूप में तब्दील हो जाती है। कैलास मानसरोवर यात्रा का पैदल मार्ग अति दुरूह माना जाता है। नारायण आश्रम से भारत-तिब्बत सीमा लिपुलेख तक यात्रियों को 6 पड़ावों पर पहुंचना पड़ता है। विशाल काली नदी के किनारे गगनचुंबी पहाड़ों के बीच से होने वाली इस यात्रा मार्ग में झरनों, मनोरम दृश्यों और भयावह खाइयों के दर्शन होते हैं। प्रकृति के ये नजारे यात्रियों को डराने के स्थान पर उत्साहित करते रहते हैं। हताशा के स्थान पर यात्री ऊर्जावान होते रहते हैं और उनमें उच्च शिखर तक पहुंचने की लालसा बनी रहती है। कैलास मानसरोवर यात्रा का पुराणों में विशेष महत्व बताया गया है। पौराणिक गाथाओं में भी कैलास मानसरोवर यात्रा-मार्ग को अति दुर्गम बताते हुए इसे ऊर्जावान बताया गया है, जो आज भी प्रामाणिक प्रतीत होता है। कैलास मानसरोवर यात्रा में कुमाऊं के पहाड़ों से ही वातावरण शिवमय होने लगता है। प्रकृति अपना विराट रूप दिखाने लगती है। बैजनाथ, बागनाथ, पाताल भुवनेश्वर के दर्शन के बाद शिव के धाम के दर्शन की उत्कंठा बढ़ जाती है। यह कहना है पिछले वर्ष कैलास मानसरोवर यात्रा के प्रथम दल में बतौर लाइजन अफसर शामिल रहे भारत-तिब्बत सीमा पुलिस के उप महानिरीक्षक एपीएस निंबाडिया का। उनका कहना है कि अन्य पर्वतीय स्थलों की यात्रा के दौरान थकान और उदासी आती है, लेकिन कैलास मानसरोवर यात्रा में यह सब नहीं होता, अपितु यात्रा में आगे बढ़ने के साथ-साथ उत्साह में भी वृद्धि होती जाती है। उनका कहना है कि यह यात्रा व्यक्ति को शारीरिक रूप से ही नहीं, अपितु मानसिक रूप से भी मजबूत बनाती है। निंबाडिया का कहना है कि कैलास मानसरोवर यात्रा में किसी भी तरह की कोई मुश्किल नहीं आती है। वहां जाने से पहले लोगों को लगता है कि यात्रा में बहुत थकान हो जाएगी, परंतु जो लोग यात्रा में जाते हैं, वे श्रद्धा की असीम ऊर्जा से ओतप्रोत रहते हैं। निंबाडिया का कहना है कि तिब्बत में तकलाकोट से कैलास मानसरोवर की परिक्त्रमा शुरू होती है। 26 किमी लंबी इस पैदल परिक्त्रमा के दौरान चार स्थानों से कैलास पर्वत के अलग-अलग दर्शन होते हैं। डेराफू नामक स्थान से जब कैलास के दक्षिणी हिस्से के दर्शन होते हैं, तो उस दिव्य सौंदर्य में दर्शनार्थी अपने आप को भूल जाते हैं और स्वत: ही आनंदातिरेक में उनकी आंखों से आंसू निकलने लगते हैं। एक दिन में होने वाली इस लंबी परिक्त्रमा के दौरान थकने के बजाय यात्री अलग तरह की अनुभूति से ओतप्रोत रहते हैं। उन्हें ऐसा लगता है कि उन्होंने जीवन का लक्ष्य पा लिया है। कैलास मानसरोवर यात्रा आदिकाल से ही होती रही है। वर्ष 1962 के भारत चीन-युद्ध से पूर्व यात्रा में जाने के लिए किसी तरह के प्रतिबंध नहीं थे। अतीत में अस्कोट पाल राजवंश के शासक यात्रा-संचालन में अपना सहयोग देते थे। यात्रियों के प्रवास की व्यवस्था करते थे। उस समय अधिकांश यात्रा पैदल होती थी।। वर्तमान में पहले की अपेक्षा यात्रा अधिक सुविधाजनक हो चुकी है। धारचूला से 54 किमी आगे नारायण आश्रम तक वाहनों से यात्रा होती है, जबकि लिपुलेख में तिब्बत की सीमा में प्रवेश करते ही वाहन उपलब्ध रहते हैं। वर्तमान में कैलास मानसरोवर यात्रा भारत सरकार द्वारा संचालित की जाती है। प्रतिवर्ष सरकार सोलह यात्री दलों को यात्रा में जाने की अनुमति प्रदान करती है। एक दल में अधिकतम 60 यात्री होते हैं। यात्रियों को नई दिल्ली और गुंजी पैदल पड़ावों में स्वास्थ्य परीक्षण से गुजरना पड़ता है। इस परीक्षण में सफल यात्री ही कैलास मानसरोवर के दर्शन कर पाते हैं।
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