होलिका दहन
इस बार होलिका दहन को लेकर भ्रम की स्थिति पैदा हो गई है। यह भ्रम कुछ कैलेंडर एवं पंचागों की वजह से हुआ है।
रुड़की। इस बार होलिका दहन को लेकर भ्रम की स्थिति पैदा हो गई है। यह भ्रम कुछ कैलेंडर एवं पंचागों की वजह से हुआ है। क्षेत्रीय पंचागो के मुताबिक होलिका दहन शाम छह बजकर पचास मिनट से लेकर रात्रि 8 बजकर 55 मिनट के बीच होगा, जबकि बनारस के पंचागो के मुताबिक होलिका दहन रात्रि 12 बजे के बाद है। हालांकि पंडितों ने शाम वाले समय को ही उपयुक्त बताते हुए उसी के अनुसार पूजन करने के लिए कहा है। इस बार होलिका पर्व को लेकर कुछ कैलेंडर एवं पंचागो ने भ्रम की स्थिति पैदा कर दी है। इनके मुताबिक होलिका दहन 8 मार्च को और दुल्हेडी 9 मार्च को होगी। हालांकि स्थानीय पंचागो ने 7 मार्च को होलिका दहन लिखा है। ऐसे में तमाम श्रद्धालु अब पंडितों से इस बारे में पूछ रहे हैं। पंडित राकेश कुमार शुक्ल ने बताया कि होलिका दहन के लिए तीन तरह के प्रतिबंध होते हैं। इसमें पहला तो होली रात्रि मे जलाई जानी चाहिए। दूसरे पूर्णिमा तिथि हो व तीसरे भद्रा बीत चुकी हो। इसको देखते हुए सात मार्च को प्रदोष काल में पूर्णिमा तिथि लग जाएगी। रात्रि भी होगी और भद्रा मुख्य को त्याग देगी। इसलिए होलिका दहन के लिए शुक्ल समय शाम 6 बजकर 50 मिनट से रात्रि 8 बजकर 22 मिनट है।
कैसे शुरूहुई रंग लगाने की परंपरा- रुड़की: प्राचीन मान्यताओ के मुताबिक जिस समय हिरण्यकश्यप की बहन होलिका प्रह्लाद को लेकर जलाने के लिए बैठी, उस समय होलिका जलने के साथ भक्त प्रहलाद का शरीर भी कुछ जगह से चल गया। उसी जलन की पीड़ा को कम करने के लिए प्राकृतिक एवं औषधीय रंग लगाए गए, तब से यह परंपरा चली आ रही है। इसके अलावा यह भी बताते है कि भगवान शंकर ने कामदेव को क्रोधाग्नि से भस्म कर दिया था, उसी समय होली का प्रचलन हुआ।
इसलिए होता है हुड़दंग-
रुड़की: होली के दिन जबरदस्त हुड़दंग होता है। पंडित राकेश कुमार शुक्ल ने बताया कि इसका भी एक महत्व है। भविष्य पुराण में इस बात का वर्णन है कि होली के दिन अटट्हास करने एवं किलकारियां मारने से पापात्मा राक्षसो का नाश होता है। इस दिन हुड़दंग मचाया जाता है।
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