समय के सांचे में ढलता रहा है सनातन धर्म
कई दिनों से संगम नगरी में महाकुंभ का बारीकी से अध्ययन कर रहे डॉ.अजीत सिंह सिकंद जर्मनी के फ्रैंकफर्ट और माइन्ज विश्वविद्यालयों में भारतीय अध्ययन के प्रोफेसर हैं। वे मानते हैं कि आजकल के भारतीय संत और महात्मा समाज को धर्म के सूत्र में पिरोने में भले ही कामयाब रहे हों लेकिन उनमें से ज्यादातर सामाजिक सरोकारों से दूर हैं।
कई दिनों से संगम नगरी में महाकुंभ का बारीकी से अध्ययन कर रहे डॉ.अजीत सिंह सिकंद जर्मनी के फ्रैंकफर्ट और माइन्ज विश्वविद्यालयों में भारतीय अध्ययन के प्रोफेसर हैं। वे मानते हैं कि आजकल के भारतीय संत और महात्मा समाज को धर्म के सूत्र में पिरोने में भले ही कामयाब रहे हों लेकिन उनमें से ज्यादातर सामाजिक सरोकारों से दूर हैं। पेश है उनसे बातचीत के मुख्य अंश
प्रश्न-भारतीय संस्कृति में धर्म के अविरल प्रवाह को बनाये रखने में कुंभ की क्या भूमिका है?
उत्तर-नदियां सभ्यता की पालनहार रही हैं। भारतीय भाग्यशाली हैं कि उन्हें गंगा के रूप में ईश्वर का वरदान मिला। पूरी दुनिया भारत को विश्व की आध्यात्मिक नाभि मानती है। कुंभ आस्था का विहंगम समागम ही नहीं, दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन है। कुंभ हिंदू धर्म के समस्त आयामों के साथ दुनिया के सभी धमरें का प्रतिनिधित्व करने वाले भारतीय अध्यात्म और दर्शन को भी प्रतिबिंबित व पुष्ट करता है।
प्रश्न-क्या आधुनिकीकरण के साथ घटती आस्था ने कुंभ को भी प्रभावित किया है?
उत्तर-ऐसा कतई नहीं है। मेरे हिसाब से यह डिबेट ही गलत है। यह सच है कि आज तमाम संत धर्म का व्यवसायीकरण कर रहे हैं लेकिन सनातन धर्म हमेशा अपने को समय के अनुरूप ढालने में कामयाब रहा है। कहावत भी है जो समय के साथ नहीं चलता, समय के साथ चला जाता है।
प्रश्न-कुंभ में युवाओं की भागीदारी को किस नजरिये से देखते हैं?
उत्तर-धर्म में भागीदार बनने और उसे ग्रहण करने के बारे में युवाओं का अपना अलग दृष्टिकोण है। यह हो सकता है कि आज के युवा धर्म और धार्मिकता को उस नजरिये से नहीं देखते जैसा उनके मां-बाप उन्हें बताना व समझाना चाहते हों। युवाओं के लिए कुंभ भले ही एक घटना हो लेकिन इस विराट समागम की चिरस्मरणीय यादों को वे संजोकर रखेंगे।
प्रश्न-पिछले बीस वषरें में सनातन धर्म में किस तरह के बदलाव आये हैं?
उत्तर-जो बदलाव आये हैं, वे वैचारिक भी हैं और व्यावहारिक भी। संत-महात्माओं के आचार-व्यवहार में भी बहुत बदलाव आया है। पहले अनुयायी संत-महात्माओं के पास मार्गदर्शन के लिए जाते थे। अब संत अपने अनुयायियों से क्त्रेडिट कार्ड के जरिये ई-डोनेशन स्वीकार करते हैं और इंटरनेट के जरिये उन्हें ई-आशीर्वाद भी देते हैं।
प्रश्न-कार्ल मा?र्क्स ने कहा है कि धर्म समाज की अफीम है। भारतीय संदर्भ में आप इससे कितना सहमत हैं?
उत्तर-सहमत ही नहीं, मैं तो एक कदम और आगे जाना चाहूंगा। ध्यान के लिए धर्म दुनिया की सबसे असरकारक अफीम है। हम कभी गाकर, कभी नाचकर और कभी नशे में भी अपने ईष्ट के साथ एक हो जाते हैं, उनमें लीन हो जाते हैं।
प्रश्न-धार्मिक आस्था पर गहराती बाजार की धुंध पर क्या प्रतिक्त्रिया व्यक्त करेंगे?
उत्तर-मैं पहले ही कह चुका हूं कि आजकल संत-महात्मा धर्म का व्यवसायीकरण करने लगे हैं लेकिन यह भी सच है कि वे हमारी आस्था को धर्म के सूत्र में पिरोने में सफल रहे हैं। उन्होंने इस धुंध में भी समाज को धर्म का शीशा दिखाया है। तारे अमावस में ही ज्यादा चमकते हैं।
प्रश्न-क्या हमारे संत-महात्मा शिक्षा, स्वास्थ्य और गरीबी सरीखे जनता से जुड़े सरोकारों को लेकर भी गंभीर हैं?
उत्तर-बिल्कुल नहीं। आधुनिक संत-महात्मा टेलीविजन पर भले ही दिखते हों लेकिन उनमें से अधिकतर गांव-गुरबों तक नहीं पहुंचते। बहुत कम संत ऐसे हैं जो जनकल्याण के लिए काम कर रहे हैं। अगर यह धन समाजोत्थान में लगाया जाए तो शायद वह बदलाव जल्दी आ जाएगा जिसकी जरूरत हम शिद्दत से महसूस करते हैं।
प्रश्न-धार्मिक पर्यटन आपका पसंदीदा विषय है? उप्र में इसे बढ़ावा देने में क्या अड़चनें आ रही हैं?
उत्तर-पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए मार्केटिंग में निरंतरता बेहद जरूरी है। जर्मनी की सरकार के सहयोग से मैंने उप्र में पर्यटन के विकास के लिए डेढ़ साल मशक्कत कर 1989 में 600 पन्नों की एक रिपोर्ट भेजी थी जिसे शायद ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। कुंभ को ही लीजिए। इतने विदेशी पर्यटक आ रहे हैं लेकिन इलाहाबाद में न तो कोई पांच सितारा होटल है और न पूर्ण विकसित हवाई अड्डा। यहां सिर्फ दिल्ली से एयर इंडिया की महज एक फलाइट आती है वह भी 32 सीटर।
प्रश्न-उप्र में धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए क्या सुझाव देंगे?
उत्तर-उप्र के पर्यटन विभाग को अंतरराष्ट्रीय पर्यटन मेलों व प्रदर्शनियों में लगातार भागीदार होना होगा। प्रमुख धार्मिक स्थलों में अवस्थापना सुविधाओं का विकास करना होगा। पर्यटकों की बड़ी तादाद को मैनेज करने के लिए आधुनिक प्रबंधन तकनीकों का सहारा भी लेना होगा।
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