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प्रकाश की ओर..

ईस्टर जीवन का महोत्सव है, जो रात्रि के अंधकार को पार कर भोर के प्रकाश की ओर ले जाने की उम्मीद बंधाता है..

By Edited By: Published: Sat, 30 Mar 2013 01:45 PM (IST)Updated: Sat, 30 Mar 2013 01:45 PM (IST)

साई धर्म में गुड फ्राइडे के बाद आने वाला रविवार बहुत महत्व रखता है। ऐसा माना जाता है कि ईसा मसीह को क्रॉस पर लटकाए जाने के तीसरे दिन वह पुन: जीवित हो गए थे और चालीस दिनों तक अपने शिष्यों के साथ रहे।

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ईस्टर खुशी का दिन है। ईस्टर का पर्व नए जीवन और जीवन के बदलाव के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। आज जब हमें चारो तरफ बेरुखी, निराशा, हताशा और चिंता दिखाई देती है, ऐसे में हमें ईस्टर का त्योहार एक आशा की किरण दिखाता है। ईस्टर का अर्थ है- पुनरुत्थान और नवजीवन में विश्वास। पूर्वी देशों में इस समय वसंत की देवी का भी त्योहार पड़ता है, इसलिए इसे नवजीवन या ईस्टर का नाम दे दिया गया। यह समय भारत सहित पूर्वी देशों में भी सर्दी की विदाई और वसंत के आगमन का है। ईस्टर से ही ईसाइयत की शुरुआत मानी जाती है। लोग मोमबतियां जलाकर अपने विश्वास को प्रकट करते हैं।

अधिकतर लोग ईस्टर की सुबह सूर्य निकलने से पहले अपने प्रियजनों की कब्रों पर इस कामना से जाते हैं कि यीशु के समान वह भी अपने प्रियजनों से फिर से मिलेंगे। ईसाई धर्म की कुछ मान्यताओं के मुताबिक ईस्टर शब्द की उत्पति ईस्त्र शब्द से हुई है। यूरोप में प्रचलित पौराणिक कथाओं के अनुसार, ईस्त्र वसंत और उर्वरता की एक देवी हैं, जिनकी प्रशंसा में ये उत्सव होते थे, जिन्हें बाद में ईस्टर से जोड़ दिया गया। ईस्टर पर खरगोश और अंडों का रिवाज इन पुरानी कथाओं से जुड़ा हुआ है। अंडे को एक नए जीवन की उत्पति और पुनर्निर्माण का प्रचीन चिथ् माना जाता है।

ईस्टर इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसके पूर्व गुडफ्राइडे पर शोक के रूप में अंधकार दिखाई देता है, लेकिन फिर ईस्टर की सुबह का प्रकाश हमें यह बताता है कि अंधकार के बाद आने वाली सुबह और भी आशा से भरी होती है। जीवन में जब बुरे समय के रूप में अंधकार के क्षण आएं और लगे कि अब सब समाप्त हो गया है, तब निराशा और असफलता के वक्त यह याद करें कि कैसे यीशु को क्रॉस पर लटकाएं जाने के बाद उनके शिष्य भी डरकर घरों में बैठ गए थे, लेकिन जब ईस्टर की सुबह ईसा के जीवित होते ही स्थिति बदली, तो लोगों के जीवन भी बदल गए। वे लोग विजय के उत्सव में शामिल निर्भय व उत्साही बन गए।

अगर हम ईस्टर को दार्शनिक दृष्टि से देखें तो यह जीवन का महोत्सव है, जो रात्रि के काले अंधकार को पार कर भोर के प्रकाश में प्रवेश का महापर्व है। देश, काल और वातावरण के मुताबिक विभिन्न देशों में लोग अपनी परंपराओं और रुचियों के अनुसार ईस्टर मनाते है, फिर भी आनंद और आशा का भाव विश्वव्यापी रहता है।

आर.एल.फ्रांसिस

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