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षष्ठम देवी- कात्यायनी [स्त्रोत मंत्र]

षष्ठम देवी- कात्यायनी चन्द्रहासो”वलकरा शार्दूलवरवाहना। कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनीघ

By Edited By: Published: Sat, 20 Oct 2012 07:42 AM (IST)Updated: Sat, 20 Oct 2012 07:42 AM (IST)

षष्ठम देवी- कात्यायनी

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चन्द्रहासो”वलकरा शार्दूलवरवाहना।

कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनीघ भगवती दुर्गा के छठें रूप का नाम कात्यायनी है। महर्षि कात्यायन के घर पुत्री के रूप में उत्पन्न हुई थी। आश्रि्वन कृष्ण चतुर्दशी को जन्म लेकर शुक्ल सप्तमी, अष्टमी तथा नवमी तक तीन दिन उन्होंने कात्यायन ऋषि की पूजा ग्रहण कर दशमी को महिषासुर का वध किया था। इनका स्वरूप अत्यंत ही भव्य एवं दिव्य है। इनका वर्ण स्वर्ण के समान चमकीला और भास्वर है। इनकी चार भुजाएं हैं। माता जी का दाहिनी तरफ का ऊपर वाला हाथ अभयमुद्रा में है तथा नीचे वाला वरमुद्रा में, बाई तरफ के ऊपर वाले हाथ में कमल पुष्प तथा नीचे वाले हाथ में तलवार है। इनका वाहन सिंह है। दुर्गा पूजा के छठवें दिन इनके इसी स्वरुप की उपासना की जाती है। मां कात्यायनी की भक्ति और उपासना द्वारा मनुष्यों को बड़ी सरलता से अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति हो जाती है।

ध्यान वन्दे वांछित मनोरथार्थचन्द्रार्घकृतशेखराम्।

सिंहारूढचतुर्भुजाकात्यायनी यशस्वनीम्घ

स्वर्णवर्णाआज्ञाचक्त्रस्थितांषष्ठम्दुर्गा त्रिनेत्राम।

वराभीतंकरांषगपदधरांकात्यायनसुतांभजामिघ

पटाम्बरपरिधानांस्मेरमुखींनानालंकारभूषिताम्।

मंजीर हार केयुरकिंकिणिरत्‍‌नकुण्डलमण्डिताम

प्रसन्नवंदनापज्जवाधरांकातंकपोलातुगकुचाम्।

कमनीयांलावण्यांत्रिवलीविभूषितनिम्न नाभिम्घ

स्तोत्र कंचनाभां कराभयंपदमधरामुकुटोज्वलां।

स्मेरमुखीशिवपत्‍‌नीकात्यायनसुतेनमोअस्तुतेघ्

पटाम्बरपरिधानांनानालंकारभूषितां।

सिंहास्थितांपदमहस्तांकात्यायनसुतेनमोअस्तुतेघ्

परमदंदमयीदेवि परब्रह्म परमात्मा।

परमशक्ति,परमभक्ति्कात्यायनसुतेनमोअस्तुतेघ्

विश्वकर्ती,विश्वभर्ती,विश्वहर्ती,विश्वप्रीता।

विश्वाचितां,विश्वातीताकात्यायनसुतेनमोअस्तुतेघ्

कां बीजा, कां जपानंदकां बीज जप तोषिते।

कां कां बीज जपदासक्ताकां कां सन्तुताघ्

कांकारहद्दषणीकां धनदाधनमासना।

कां बीज जपकारिणीकां बीज तप मानसाघ

कां कारिण कां मूत्रपूजिताकां बीज धारिणी।

कां कीं कूंकै करूठरूछरूस्वाहारूपणीघ कवच

कात्यायनौमुख पातुकां कां स्वाहास्वरूपणी।

ललाटेविजया पातुपातुमालिनी नित्य संदरीघ्

कल्याणी हृदयंपातुजया भगमालिनीघ्। यह दुर्गा देवताओं और ऋषियों के कायरें को सिद्ध करने लिए महर्षि कात्यायन के आश्रम में प्रकट हुईं। उनकी पुत्री होने के कारण इनका नाम कात्यायनी पड़ा। देवी कात्यायनी दानवों तथा पापी जीवियों का नाश करने वाली हैं। वैदिक युग में यह ऋषि-मुनियों को कष्ट देने वाले दानवों को अपने तेज से ही नष्ट कर देती थीं। यह सिंह पर सवार, चार भुजाओं वाली और सुसज्जित आभा मंडल वाली देवी हैं। इनके बाएं हाथ में कमल और तलवार व दाएं हाथ में स्वस्तिक और आशीर्वाद की मुद्रा है। उपासना मंत्र चंद्रहासोज्जवलकरा शार्दूलवरवाहना।

कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी।।

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