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सिमसा माता के दरबार में उमड़े श्रद्धालु

चैत्र मास नवरात्र के पहले दिन वीरवार को तहसील लडभड़ोल क्षेत्र की प्रसिद्ध संतान दात्री माता सिमसा के दरबार में श्रद्धा का सैलाब उमड़ा। हजारों श्रद्धालुओं ने मां के चरणों में हाजिरी भर कर शीश नवाया। मंदिर में संतान प्राप्ति के लिए भी सैकड़ों निसंतान दंपती पहुंचे हैं।

By Edited By: Published: Fri, 12 Apr 2013 02:57 PM (IST)Updated: Fri, 12 Apr 2013 02:57 PM (IST)
सिमसा माता के दरबार में उमड़े श्रद्धालु

लडभड़ोल। चैत्र मास नवरात्र के पहले दिन वीरवार को तहसील लडभड़ोल क्षेत्र की प्रसिद्ध संतान दात्री माता सिमसा के दरबार में श्रद्धा का सैलाब उमड़ा। हजारों श्रद्धालुओं ने मां के चरणों में हाजिरी भर कर शीश नवाया। मंदिर में संतान प्राप्ति के लिए भी सैकड़ों निसंतान दंपती पहुंचे हैं।

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संतान की चाह में महिलाएं मां के चरणों में लेटी हैं। पहले नवरात्र पर दस हजार से अधिक श्रद्धालुओं ने मंदिर में माथा टेक कर पूजा-अर्चना की।

वीरवार सुबह से ही मंदिर प्रांगण में श्रद्धालुओं की भीड़ जुटने लगी थी। देर शाम तक मंदिर परिसर में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहा। माता की भेटों व जयकारों से दिनभर मंदिर परिसर गूंजता रहा। मंदिर कमेटी के सहसचिव सुरेश कुमार ने बताया कि मंदिर परिसर में 1500 से अधिक महिलाएं संतान प्राप्ति के लिए सोई हुई हैं। श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए मंदिर कमेटी व युवक मंडल सिमस की ओर से भंडारे लगाए गए हैं।

धर्मपुर में उमड़े भक्त-

धर्मपुर- चैत्र नवरात्र के दौरान धर्मपुर क्षेत्र के मंदिरों में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी। धर्मपुर के प्रसिद्ध शक्तिपीठ बाबा कमलाहिया के दरबार में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहा। नवरात्र में बाबा के दरबार में भीड़ उमड़ी रहती है। व्यापार मंडल संधोल की ओर से पिछले वर्षो की भांति इस बार भी बाबा के दरबार में आने वाले भक्तों के लिए हर समय लंगर की व्यवस्था है। व्यापार मंडल संधोल के अध्यक्ष व लंगर के संचालक राजेंद्र ने बताया कि बाबा के दरबार में रात को भजन कीर्तन किया जाता है। वहीं, जालपा माता सक्त्रैणी, कंचना माता अनंतपुरगढ़, जनित्री जालपा माता, जालपा माता सिद्धपुर, क्षेत्र के मंदिरों में नवरात्र की धूम है।

देवताओं का प्रतिरूप-मां दुर्गा

त्वं वै देवा- शुक्ल पक्षे प्रपूज्यास्त्वं पित्राद्या- कृष्ण पक्षे प्रपूज्या।

त्वं वै सत्यं निष्कलं च स्वरूपं त्वां वै नत्वा बोधयामि प्रसीद।।

नवरात्र के दिनों में ऋतु परिवर्तन के कारण शरीर में नवरक्त का संचार होता है। अत: कुछ नियमों का पालन करने से उस रक्त को संग्रीहत कर शरीर में शक्ति का संचय किया जा सकता है लेकिन अध्यात्मिक धार्मिक प्रवृत्ति के जन धार्मिक कृत्यों के माध्यम से मां दुर्गा को रिझाने का प्रयास करते हैं। नवरात्र में शक्ति पूजन की परंपरा इसलिए है, क्योंकि मां दुर्गा सब देवताओं का प्रतिरूप है। इस बात को समझने के लिए पौराणिक कथा की चर्चा की जा सकती है। पूर्व काल में असुरों का राजा महिषासुर ने अपनी शक्ति के बल पर देव लोक पर कब्जा कर लिया। देवता इधर-उधर भागने लगे। फिर सब देवतागण भगवान शिव और विष्णु के पास गए। देवताओं की बात सुन विष्णु और शिव को क्त्रोध आया और सभी देवों ने मिलकर मां दुर्गा का सृजन किया। मां दुर्गा का स्वरूप सभी दिशाओं में प्रकाशमान हो रहा था। राक्षस महिषासुर के नाश के लिए देवी सिंह पर सवार होकर चल पड़ी। महिषासुर भी विशाल सेना लेकर देवी के साथ युद्ध करने आ पहुंचा। देवी ने अस्त्रों-शस्त्रों से सेना का संहार किया। महिषासुर भैंसे का रूप धारण कर देवी पर चट्टानें उठाकर प्रहार करने लगा। छल से कुपित होकर देवी ने तलवार से महिषासुर का सिर धड़ से अलग कर दिया। महिषासुर के वध से देवतागण प्रसन्न हुए। सभी देवी पर पुष्प वर्षा करने लगे। देवों द्वारा सृजन के कारण दुर्गा को सर्वशक्ति तथा महिषासुर वध के कारण महिषासुर मर्दिनी भी कहा जाता है।

जब महिषासुर मारियो, सभ दैत्यन को राज।

तब कायर भाजे सभै छाड़यो सकल समाज।।

अशोक शर्मा, भडियाड़ा, कांगड़ा

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