सबकी प्रगति में अपनी उन्नति
जहा नरसी मेहता, सरदार पटेल, महात्मा गांधी का जन्म हुआ, उसी गुजरात में 1825 ई. को टंकारा ग्राम में ब्राह्मण कुल में कर्षण तिवारी और यशोदा बाई के आंगन में एक तेजस्वी बालक का जन्म हुआ, जिसका नाम मूलशंकर रखा गया। एक शैव भक्त जमींदार परिवार में जन्म लेने वाले मूलशंकर के बचपन में कई घटनाएं हुईं।
जहा नरसी मेहता, सरदार पटेल, महात्मा गांधी का जन्म हुआ, उसी गुजरात में 1825 ई. को टंकारा ग्राम में ब्राह्मण कुल में कर्षण तिवारी और यशोदा बाई के आंगन में एक तेजस्वी बालक का जन्म हुआ, जिसका नाम मूलशंकर रखा गया। एक शैव भक्त जमींदार परिवार में जन्म लेने वाले मूलशंकर के बचपन में कई घटनाएं हुईं। शिवरात्रि को मूर्तिपूजा से अनास्था, चाचा और बहन की मौत ने इनकी जिंदगी पर गहरा असर डाला। वे दयानंद के रूप में संन्यासी बन गए। गुरु विरजानद से उन्होंने व्याकरण, योग, धर्म-अध्यात्म का ज्ञान प्राप्त किया। मथुरा में शिक्षा पूरी कर दयानंद का सारा जीवन वेद, दर्शन, धर्म, भाषा, देश, स्वतंत्रता, समाज की बदतर हालात को सुधारने, समाज में फैले अंधविश्वासों, पाखंड़ों और बुराइयों को खत्म करने में समर्पित हो गया।
महर्षि दयानंद के समय में शिक्षा, दलितों और स्त्रियों की हालात अच्छी नहीं थी। बाल विवाह, सती प्रथा, जन्मगत जाति-पाति और ऊंच-नीच के भेदभाव से समाज बिखर रहा था। धर्म, अध्यात्म, योग और कर्मकंाड के नाम पर तंत्र-मंत्र, जादू-टोने और भूत-प्रेत के टोटके किए जाते थे। भारत की धरती अंग्रेजी दासता की जंजीरों में जकड़ी हुई थी। ऐसे में स्वामी दयानंद ने देश व समाज में छाए अंधकार को खत्म कर देश-समाज को नई दिशा दी।
दयानंद अंग्रेजी पराधीनता और समाज की दयनीय दशा को सुधारने के लिए योद्धा की तरह मुकाबला कर रहे थे, वहीं किसानों, मजदूरों और स्त्रियों की बिगड़ी हुई दशा को उबारने में लगे रहे। 1857 के पहले स्वाधीनता संग्राम से लेकर महाप्रयाण 1883 तक वे अंग्रेजी शासन से छुटकारा दिलाने और आजादी के रणबाकुरों को स्वतंत्रता के लिए प्रेरित करने में लगे रहे। विभिन्न संप्रदायों के महंत, अंग्रेजों के पिट्ठू राजा और नवाब इनके विरोधी बन गए थे। कहा जाता है कि उन्हे कई बार जहर देने का प्रयास भी किया गया।
1875 में दयानंद ने मुंबई की काकड़बाड़ी में आर्य समाज की स्थापना की, जिसका मकसद मानवता का कल्याण था। उन्होंने आर्य समाज के नियम में कहा कि किसी भी इंसान को अपने विकास से ही संतुष्ट नहीं रहना चाहिए, बल्कि सबकी प्रगति में अपनी उन्नति समझनी चाहिए। उन्होंने सत्यार्थ प्रकाश सहित चालीस पुस्तकें लिखकर समाज और देश को नई दिशा दी।
[अखिलेश आर्र्येदु]
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