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आपके ज्ञान से किसी का अहित नहीं होना चाहिए

एक व्यापारी एक अनजान व्यक्ति को व्यवसाय में साझेदार बनाना चाहता था। उसने तसल्ली करने के लिए अपने एक मित्र से उसके बारे में पूछा कि वह कैसा आदमी है? मित्र उस आदमी को जानता था।

By Edited By: Published: Wed, 05 Dec 2012 12:15 PM (IST)Updated: Wed, 05 Dec 2012 12:15 PM (IST)

एक व्यापारी एक अनजान व्यक्ति को व्यवसाय में साझेदार बनाना चाहता था। उसने तसल्ली करने के लिए अपने एक मित्र से उसके बारे में पूछा कि वह कैसा आदमी है? मित्र उस आदमी को जानता था। जिसे व्यापारी साझेदार बना रहा था, वह वास्तव में ठग था, लेकिन मित्र ठहरा शास्त्रों का ज्ञाता, वह दूसरे की बुराई कैसे कर सकता था? उसने शास्त्रों में पढ़ा था कि किसी की बुराई मत करो। उसके दोष बताना तो परनिंदा होगी। उसने ठग की प्रशंसा कर दी कि वह जिसके साथ काम करता है, उस पर अपना विश्वास जमा लेता है। सज्जन की बात पर विश्वास करके व्यापारी ने उसे साझेदार बना लिया। साझेदार ने मीठी-मीठी बातें करके व्यापारी पर विश्वास जमाया और दो महीने में ही सब कुछ लेकर चंपत हो गया। व्यापारी मित्र के पास गया। बोला - तुमने झूठ क्यों बोला? उसने कहा कि मैंने तो झूठ नहीं बोला। वह ज्यादा समय तक सच्चाई और ईमानदारी से विश्वास जमाता था, धोखा तो वह मात्र आखिरी दिन ही देता था। मैं सज्जन व्यक्ति हूं, किसी की निंदा करना तो पाप है। व्यापारी बोला - वाह मित्र, तुम्हारे इस कथित शास्त्र-ज्ञान और सज्जनता ने तो मेरी लुटिया ही डुबो दी।

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कथा-मर्म- अगर आपके ज्ञान से किसी का अहित होने की आशंका हो, तो वह ज्ञान किसी काम का नहीं.

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