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नवरात्र: पूजा-पाठ

सोलह अक्टूबर से शारदीय नवरात्र आरंभ हो गया हैं। आज 17 अक्टूबर 2012 बुधवार, आश्विन मास, शुक्लपक्ष, द्वितीया है। नवरात्र के नौ दिनों में मां भगवती दुर्गा की विशेष आराधना की जाती है। यह त्यौहार भारत भर में पूरे उल्लास के साथ मनाया जाता है। इसमें देवी दुर्गा यानी शक्ति के नौ रूपों की पूजा की जाती है।

By Edited By: Published: Wed, 17 Oct 2012 07:30 AM (IST)Updated: Wed, 17 Oct 2012 07:30 AM (IST)
नवरात्र: पूजा-पाठ

सोलह अक्टूबर से शारदीय नवरात्र आरंभ हो गया हैं। आज 17 अक्टूबर 2012 बुधवार, आश्विन मास, शुक्लपक्ष, द्वितीया है। नवरात्र के नौ दिनों में मां भगवती दुर्गा की विशेष आराधना की जाती है। यह त्यौहार भारत भर में पूरे उल्लास के साथ मनाया जाता है। इसमें देवी दुर्गा यानी शक्ति के नौ रूपों की पूजा की जाती है।

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नवरात्रों का भारत में विशेष महत्व है। माता भगवती की पूजा करने का यह समय सबसे उपयुक्त माना जाता है। नवरात्र में हिंदू धर्म के अनुसार व्रत और पूजन का विशेष महत्व है। ऐसा माना जाता है कि जो इस नवरात्र में पूरी श्रद्धा और भक्ति से माता भगवती की पूजा करते हैं उनकी सभी मनोकामना माता पूरी करती हैं।

नवरात्रि के दूसरे दिन मां के ब्रह्मचारिणी रूप की पूजा होती है। दुर्गा के ब्रह्मचारिणी रूप को समस्त विद्याओं की ज्ञाता माना गया है। इनकी आराधना से अनंत फल की प्राप्ति और तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम जैसे गुणों की वृद्धि होती है। ब्रह्मचारिणीश् का अर्थ हुआ, तप की चारिणी यानी तप का आचरण करने वाली। यह स्वरूप श्वेत वस्त्र पहने दाएं हाथ में अष्टदल की माला और बाएं हाथ में कमंडल लिए हुए सुशोभित है।

इनकी पूजा करने से पहले सर्वप्रथम स्नान आदि नित्य कर्म से निवृत्त होकर साफ वस्त्र पहन कर अपने ईष्ट देवता को याद करें और फिर व्रत का ध्यान कर अपनी पूजा आरंभ करें।

पूजा अर्चना की सामग्री-

नवदुर्गा, यानी नवरात्र की नौ देवियां हमारे संस्कार एवं आध्यात्मिक संस्कृति के साथ जुड़ी हुई हैं। इन सभी देवियों को लाल रंग के वस्त्र, रोली, लाल चंदन, सिंदूर, लाल वस्त्र साड़ी, लाल चुनरी, आभूषण तथा खाने-पीने के सभी पदार्थ जो लाल रंग के होते हैं, वहीं अर्पित किए जाते हैं।

भगवान शिव ने भी जब अपनी आराध्य शक्ति को प्रणाम किया था और उनकी पूजा की थी, तो उस समय मंगल कामना के लिए निम्नलिखित श्लोक से महागौरी की स्तुति की थी। अत: माता का आशीर्वाद पाने के लिए नवरात्रों के दौरान रोज ही इस श्लोक की स्तुति करना शुभ होता है-

या देवी सर्वभूतेषु श्रद्धा रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

उपरोक्त मंत्र के साथ नवरात्र के दूसरे दिन की पूजा की शुरूआत करें।

पूजा हेतु गंगा जल, नारियल, लाल कपड़ा, मौली, रोली, चन्दन, पान, सुपारी, धूपबत्ती, घी का दीपक, ताजे फल, फल माला, बेलपत्रों की माला, एक थाली में साफ चावल होना चाहिए। देवी की मूर्ति के अनुसार लाल कपड़े, मिठाई, बताशा, सुगन्धित तेल, सिन्दूर, कंघा दर्पण आरती के लिए कपूर 5 प्रकार के फल पंचामृत जिसमें दूध दही शहद चीनी और गंगाजल हो, साथ ही पंचगव्य, जिसमें गाय का गोबर गाय का मूत्र गाय का दूध गाय का दही गाय का घी, भी पूजा सामग्री में रखना आवश्यक है। अष्टमी अथवा नवमी को जयंती काटा जाता और इसको सबके सिर में रखा जाता है।

नवदुर्गाओं को लाल वस्त्र आभूषण और नैवेद्य प्रिय हैं। अत: उनको पहनाने के लिए रोज नए रंगीन रेशम आदि के वस्त्र आभूषण, जिनमें गले का हार, हाथ की चूडि़यां, कंगन, मांग टीका, नथ और कर्णफूल आदि आते हैं, का भी आयोजन करके रखना चाहिए। ये सभी सामग्री नौ दिन नवदुर्गाओं को पूजा के दौरान समर्पित की जानी चाहिए।

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