समाधि के मसले पर मुठ्ठियां तनीं
भू समाधि के लिए जमीन के मसले पर सभी अखाड़े एक मत हैं। इलाहाबाद प्रशासन से इसके लिए तत्काल दशनाम संन्यासियों के नाम से जमीन की मांग गई है।
कुंभ नगर। भू समाधि के लिए जमीन के मसले पर सभी अखाड़े एक मत हैं। इलाहाबाद प्रशासन से इसके लिए तत्काल दशनाम संन्यासियों के नाम से जमीन की मांग गई है। कुंभ पर्व के दौरान किसी संन्यासी की मौत होगी तो उसे समाधि कहां दी जाएगी यह सवाल खड़ा हो गया है। अखाड़ों ने कहा कि जब तक भूमि नहीं मिलेगी गंगा में में जल समाधि उनकी मजबूरी है।
गंगा को प्रदूषित होने से रोकने के लिए अखाड़ों ने भी अपने स्तर से उपाय शुरू कर दिए हैं। संन्यासियों की सनातनी परंपरा जल समाधि को त्यागने का फैसला हो गया है। संतों का कहना है कि हिन्दू संस्कृति में मृत्यु के बाद तीन तरह की जल, भू एवं अग्नि समाधि है। संन्यासी परंपरा में जल एवं भू समाधि हैं। इसमें साधु को पदमासन की मुद्रा में बैठाकर जल या जमीन में समाधि दी जाती है। वैसे ईसाई और मुस्लिम धर्म में भी जमीन में अंतिम संस्कार होता है। पारसी में वायु समाधि की पंरपरा है। इनके शव को पेड़ पर बांध दिया जाता है। अखाड़ों के प्रमुख प्रतिनिधियों ने दो दिन पहले मेला प्रशासन के साथ बैठक करके एक इस मसले पर एक मांग पत्र दिया है। इस प्रस्ताव में हाईकोर्ट का भी हवाला दिया गया है कि गंगा में शव के प्रवाहित करने पर रोक है। साथ ही तमाम संगठन नदियों में प्रदूषण को लेकर आंदोलित हैं। खासकर गंगा में प्रदूषण देश व्यापी मुद्दा बना हुआ है। ऐसे में उनको जमीन उपलब्ध कराई जाए जिससे उनके मृत्योपरांत संस्कार विधिवत हो सकें। मेला प्रशासन इस नए मसले को लेकर अभी चुप है। अफसरों ने भू समाधि को लेकर जमीन खोजने की कवायद अभी शुरू नहीं की है।
पर्यावरण के हित में-
महानिर्वाणी अखाड़े के सचिव महंत रवीन्द्र पुरी ने कहा कि भू समाधि के लिए जमीन की मांग पर्यावरण के हित में हैं। यदि सरकार अन्य धर्मो को मृत्यु के बाद संस्कार के लिए अलग से जमीन दे सकती है तो हिन्दू संतों के लिए भूमि देने में क्या दिक्कत है। संतों के पास भू समाधि के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं है। फिर गंगा को सुरक्षित करना है तो इसके अलावा क्या विकल्प है।
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