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सत्य के समान कोई धर्म नहीं

संत मुरारी बापू ने कहा है कि संसार में सत्य के समान कोई धर्म नहीं है। सत्य की राह पर चलकर ही धर्म का आचरण संभव है। उन्होंने कहा, सत्य ही पुण्य की जड़ है। बीज अपनी हस्ती मिटाकर ही वृक्ष का रूप धारण करता है। मुरारी बापू ने कथा का वाचन ही सत्य की सत्यता से शुरू किया।

By Edited By: Published: Mon, 24 Sep 2012 05:28 PM (IST)Updated: Mon, 24 Sep 2012 05:28 PM (IST)

धर्मशाला। संत मुरारी बापू ने कहा है कि संसार में सत्य के समान कोई धर्म नहीं है। सत्य की राह पर चलकर ही धर्म का आचरण संभव है। उन्होंने कहा, सत्य ही पुण्य की जड़ है। बीज अपनी हस्ती मिटाकर ही वृक्ष का रूप धारण करता है। मुरारी बापू ने कथा का वाचन ही सत्य की सत्यता से शुरू किया।

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उन्होंने ईश्वर से प्रार्थना की कि उन्हें सत्य को परिभाषित करने की शक्ति प्रदान करें। उन्होंने मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम को करुणा का सागर भी बताया। सूफियाना अंदाज में कथा के पहले दिन शनिवार को उन्होंने भक्ति संगीत से समां बांधा। भक्तिव वैराग्य के दर्शन पर अपने प्रवचनों को केंद्रित रखते हुए एक शेयर से यूं बयां किया तू फिक्र मंद क्यों है मेरे दिल को तोड़ कर, मैं खुद ही चला जाऊंगा तेरा शहर छोड़ कर। इस मौके पर श्रीराम कथा का श्रवण करने पहुंचे परमपावन दलाईलामा ने कहा कि भारत से ही विश्व को अंिहंसा की सीख मिलती है।

धर्म ही मानव जीवन के लिए एक प्रकाश का पुंज है। धन के लालच से दूर रहने की शिक्षा देते हुए कहा कि धन हो या न हो दोनों ही परिस्थितियों में मानव को तनाव पैदा करता है। धन के कारण ही भ्रष्टाचार पैदा होता है। इसलिए भ्रष्टाचार को दूर करने के लिए धन का लालच दूर करना होगा। उन्होंने कहा कि धर्मगुरु का प्रथम कर्तव्य भी अपने श्रद्धालुओं को धन के सदुपयोग की जानकारी देना है। दलाईलामा ने बताया कि धर्मशाला में वह 52 वर्ष से रह रहे हैं और यहां को मातृभूमि मानते हैं। यह सौभाग्य है कि संत मुरारी बापू को वह पहली बार उनकी मातृभूमि गुजरात में मिले थे और अब वह अपनी मातृभूमि धर्मशाला में मिल रहे हैं। इससे पूर्व संत आशा राम बापू ने सुबह दलाईलामा के आवास पर भी भेंट की थी।

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