तीर्थराज पुष्कर
पुष्कर मंदिरों और घाटों की नगरी है। तीर्थराज के रूप में विख्यात यह नगरी प्राकृतिक दृष्टि से भी अनुपम है। एक विशाल झील के किनारे स्थित यह नगरी तीन तरफ से तो पहाड़ से घिरी है, जबकि चौथी तरफ मारवाड़ की तरफ से आई मिट्टी का रेगिस्तान है। राजस्थान में अजमेर से नाग पहाड़ से होते हुए 14 किलोमीटर दूर पुष्कर पहुंचा जा सकता है।
पुष्कर मंदिरों और घाटों की नगरी है। तीर्थराज के रूप में विख्यात यह नगरी प्राकृतिक दृष्टि से भी अनुपम है। एक विशाल झील के किनारे स्थित यह नगरी तीन तरफ से तो पहाड़ से घिरी है, जबकि चौथी तरफ मारवाड़ की तरफ से आई मिट्टी का रेगिस्तान है। राजस्थान में अजमेर से नाग पहाड़ से होते हुए 14 किलोमीटर दूर पुष्कर पहुंचा जा सकता है।
हिंदू मान्यताओं में पुष्कर में स्नान किए बिना तीर्थयात्राएं पूरी नहीं मानी जातीं। यहां स्नान के लिए 52 घाट हैं। भारत में ब्रह्मा के गिने-चुने मंदिरों में से एक प्रमुख मंदिर पुष्कर में भी है। पुष्कर को ही ब्रह्मा की वैदिक यज्ञ की भूमि माना जाता है। कार्तिक माह में शुक्ल पक्ष की अष्टमी से शुरू होकर कार्तिक पूर्णिमा तक सालाना पुष्कर मेला लगता है। मेले के शुरुआती दिन जहां पशु मेले को समर्पित रहते हैं, वहीं बाद के दिनों में धार्मिक गतिविधियां जोरों पर रहती हैं। कार्तिक पूर्णिमा पर स्नान-ध्यान के लिए देश में जिन स्थानों का माहात्म्य सबसे ज्यादा है, उनमें पुष्कर प्रमुख है।
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