शिवाले के रमणीक वातावरण में रमे मन
महेंद्रगढ़ के गांव अगिहार में स्थित शिव मंदिर का परिसर हरे-भरे पेड़ों से आच्छादित है। मंदिर परिसर में पहुंचते ही इन हरे-भरे पेड़ों को देखकर मन प्रसन्न हो जाता है। इस शिव मंदिर के रमणीक परिसर में पहुंचते ही मन शिव भक्ति में इस कद्र रम जाता है कि श्रद्धालुओं का यहां से लौटने का मन ही नहीं करता है। मन्नत पूरी होने पर कई श्रद्धालु यहां भंडारों का आयोजन करते हैं। भंडारों में असंख्य श्रद्धालु शिरकत करते हैं।
महेंद्रगढ़ जिले का गांव अगिहार हरियाणा की तलहटी में बसा है। इस गांव में स्थित भव्य शिव मंदिर श्रद्धालुओं की अगाध आस्था का केंद्र बना हुआ है। इस शिवाले का निर्माण ग्रामीणों ने मिलकर करवाया था। लगभग 22 साल पहले बने इस शिव मंदिर के परिसर में ग्रामीणों ने हनुमान मंदिर भी बनवाया और धूणे की स्थापना की। इसी दौरान ग्रामीण मंदिर परिसर में पेड़-पौधे लगाते रहे। अब इस मंदिर का परिसर इतना हरा-भरा है कि यहां पहुंचते ही मन हर्षित हो जाता है। इस शिव मंदिर के रमणीक वातावरण में मन इस कद्र रम जाता है कि यहां से लौटने का मन ही नहीं करता। यहां आकर सबको आनंद की अनुभूति होती है।
महेंद्रगढ़-खेड़ी तलवाना सड़कमार्ग पर महेंद्रगढ़ से लगभग 13 किमी. दूर बसे गांव अगिहार में स्थित शिव मंदिर में सुबह-शाम पूजा-अर्चना के अलावा आरती भी की जाती है। यहां हर रोज होने वाले कीर्तन की धुनों को सुनकर मन भक्तिमय हो जाता है। सुबह-शाम घंटियों की आवाज और धूप व दीप की महक हर व्यक्ति के मन में भक्ति भावों को जागृत करती है। गांव अगिहार के उत्तर में स्थापित शिव मंदिर में शिवरात्रि धूमधाम से मनाई जाती है। महाशिवरात्रि पर मंदिर परिसर में कबड्डी, क्रिकेट और दौड़ प्रतियोगिताएं भी आयोजित होती हैं। इस अवसर पर यहां भंडारे का आयोजन भी होता है। इस अवसर पर रात्रि में भजन-कीर्तन का आयोजन भी होता है। दिन में शिवपुराण का पाठ होता है। तीज के अवसर पर यहां मेले का आयोजन भी किया जाता है। श्रद्धालु यहां हर रोज पूजा-अर्चना करने आते हैं और शिव कृपा प्राप्त कर खुशी-खुशी घर लौटते हैं। महिलाएं यहां आकर हर रोज भजन गाती हैं। अन्य मांगलिक अवसरों पर भी यहां पर श्रद्धालुओं की गहमा-गहमी रहती है।
किसी भी नए कार्य की शुरूआत से पूर्व गांव अगिहार के निवासी इस शिव मंदिर में पहुंचकर अर्जी लगाते हैं। इस गांव के निवासी दूल्हे को यहां धोक लगवाते हैं और फिर यहीं से पूरी बारात एकसाथ प्रस्थान करती है। शादी के बाद दूल्हा जब अपनी दुल्हन को लेकर आता है तो दूल्हा-दुल्हन को इसी शिव मंदिर में एकसाथ धोक लगवाई जाती है। धोक लगाने के बाद दूल्हा-दुल्हन मंदिर परिसर में सांटी खेलकर शिव का आशीर्वाद पाते हैं।
शिव मंदिर के परिसर में निर्जला एकादशी के दिन छबील भी लगाई जाती है। ग्रामीणों का इस दौरान विशेष सहयोग रहता है। यहां बने धूणे की श्रद्धालु विशेष रूप से पूजा-अर्चना करते हैं। श्रद्धालु इस धूणे की राख को आशीर्वाद समझकर ग्रहण करते हैं। धूणे पर रखे चिमटे और मोर पंखों से झाड़ा भी लगाया जाता है। श्रद्धालुओं का मानना है कि इस झाड़े से भूत-प्रेत का साया दूर हो जाता है। ग्रामीण जरूरत पड़ने पर अपने पालतू पशुओं को भी झाड़ा लगवाते हैं।
तीज के अलावा होली के अवसर पर भी यहां मेले का आयोजन होता है। मेले में आसपास के गांवों से भी श्रद्धालु शिरकत करते हैं। इस तरह मेले में अपार भीड़ उमड़ आती है। जन्माष्टमी के अवसर पर शिव मंदिर के परिसर को खूब सजाया जाता है। जन्माष्टमी का व्रत करने वाले श्रद्धालु यहां से रात बारह बजे चरणामृत ले जाकर व्रत खोलते हैं। गांव अगिहार के बुजुर्गो का मानना है कि इस मंदिर में आकर जो व्यक्ति निष्ठा व आस्था से मन्नत मांगता है उसे भोलेनाथ कभी भी निराश नहीं करते।
कई श्रद्धालु मन्नत पूरी होने पर यहां भंडारे का आयोजन करवाते हैं। भंडारों में श्रद्धालु बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं। श्रद्धालुओं का मानना है कि सच्ची निष्ठा से की गई पूजा-अर्चना से भोलेनाथ सहज ही प्रसन्न हो जाते हैं और अपने भक्त की झोली खुशियों से भर देते हैं।
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