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अजमेर शरीफ

12वीं शताब्दी की ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह के प्रति लोगों की आस्था वैसी ही है। अब भी यहां हर रोज करीब 12,000 लोग जियारत के लिए पहुंचते हैं।

By Edited By: Published: Thu, 05 Apr 2012 04:32 PM (IST)Updated: Thu, 05 Apr 2012 04:32 PM (IST)
अजमेर शरीफ

अजमेर। बेटे के जन्म की मुराद मांगने पहुंचे बादशाह अकबर से लेकर पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी की रविवार को होने वाली अजमेर शरीफ यात्रा तक यहां कुछ नहीं बदला है।

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12वीं शताब्दी की ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह के प्रति लोगों की आस्था वैसी ही है। अब भी यहां हर रोज करीब 12,000 लोग जियारत के लिए पहुंचते हैं। जयपुर से 145 किलोमीटर दूर अजमेर के बीचोंबीच सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की संगमरमर से बनी गुम्बदाकार कब्र लोगों की आस्था का केंद्र है। लोग यहां अपनी-अपनी मुरादें लेकर आते हैं।

कब्र एक प्रांगण के बीचोंबीच है और इसके चारों ओर संगमरमर का मंच बना हुआ है। ऐसा माना जाता है कि सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के अवशेष इस कब्र में रखे हुए हैं। चिश्ती को ख्वाजा गरीब नवाज नाम से भी जाना जाता है।

दरगाह के खादिमों का दावा है कि वे ख्वाजा के वंशज हैं और वहां इबादत करने का अधिकार उन्हीं का है। परिसर में आठ और कब्रें भी हैं, जो ख्वाजा के परिवार के अन्य सदस्यों की हैं।

एक खादिम एस.एफ. हुसैन चिश्ती ने बताया कि लोग यहां अपनी मुरादें पूरी होने की उम्मीदें लेकर आते हैं और दरगाह में चादर चढ़ाते हैं। जब उनकी मुरादें पूरी हो जाती हैं तो वे कृतज्ञता व्यक्त करने दोबारा आते हैं। चिश्ती ने कहा कि यह दरगाह मुगल बादशाह अकबर के लिए बरसों तक उनका पसंदीदा गंतव्य स्थल बनी रही।

दरगाह की खास बात यह है कि यहां सजदा करने सिर्फ मुसलमान ही नहीं आते बल्कि हिंदू, सिख व जैन सहित अन्य धर्मो के लोग भी यहां आते हैं। इस दरगाह को बने हुए जून में 800 साल पूरे हो जाएंगे। कहा जाता है कि हजरत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती का जन्म 1142 ईसवी में ईरान में हुआ था। एक खादिम ने बताया कि उन्होंने सूफीवाद की शिक्षा फैलाने के लिए अपना स्थान छोड़ दिया था। वह भारत आकर अजमेर में बस गए थे। उन्होंने बताया कि उस समय समाज में बहुत सी सामाजिक कुरीतियां थीं। उन्होंने समानता व भाईचारे की शिक्षा फैलाई। सूफीवाद बीच का रास्ता दिखाने वाला दर्शन है और मुगल बादशाह उनकी शिक्षाओं व उनके प्रसार से प्रभावित थे। खादिमों ने कहा कि ख्वाज सूफी दर्शन के लिए प्रसिद्ध थे। सूफीवाद भाईचारे, सद्भाव व समृद्धि की शिक्षा देता है।

इतिहासकार मोहम्मद आजम ने बताया कि बादशाह अकबर आगरा से अजमेर तक नंगे पांव आए थे और उन्होंने यहां बेटे के जन्म की मुराद मांगी थी। उन्होंने बताया कि यहां एक अकबरी मस्जिद व एक शहानी मस्जिद भी है जिन्हें मुगल बादशाह शाहजहां ने बनवाया था। आजम ने बताया कि दरगाह में प्रवेश के लिए आठ दरवाजे हैं लेकिन केवल तीन दरवाजे ही इस्तेमाल में लाए जाते हैं। निजाम दरवाजा, हैदराबाद के निजाम ने बनवाया है।

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