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लगा रहा स्नान दान करने वालों का मेला

रविवार पौ फटते ही बरारी सीढ़ी घाट पर पुण्य कमाने वाले उमड़ने लगे। गंगा की अविरल धारा में डुबकी लगाने को सब बेताब थे। मौका था वैशाखी बुद्ध पूर्णिमा का। बूढ़े-बच्चे महिलाओं में इसको ले खासा उत्साह था। सभी अपने पापों से मुक्ति पाने को ले खुले मन से भिखारियों-गरीबों को चटाई और अन्न दान कर रहे थे।

By Edited By: Published: Mon, 07 May 2012 01:09 PM (IST)Updated: Mon, 07 May 2012 01:09 PM (IST)
लगा रहा स्नान दान करने वालों का मेला

भागलपुर। रविवार पौ फटते ही बरारी सीढ़ी घाट पर पुण्य कमाने वाले उमड़ने लगे। गंगा की अविरल धारा में डुबकी लगाने को सब बेताब थे। मौका था वैशाखी बुद्ध पूर्णिमा का। बूढ़े-बच्चे महिलाओं में इसको ले खासा उत्साह था। सभी अपने पापों से मुक्ति पाने को ले खुले मन से भिखारियों-गरीबों को चटाई और अन्न दान कर रहे थे। धर्मशास्त्र में वैशाख माह में स्नान दान, तप और व्रत कथा का खास महत्व है। मान्यता है कि इस दिन गरीबों को चटाई दान करने से अकाल मृत्यु नहीं होती। वस्त्र दान से सुख में वृद्धि होती है। बूढ़ानाथ मंदिर के पंडित शंकर झा बताते हैं कि वैशाख पूर्णिमा के दिन दान करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है। बताते हैं कि भविष्य पुरान के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु अपने अवतारों में से कच्छप रुप में अवतार लिया था और अजन्मा, अविनाशी विष्णु ही सब पापों को नष्ट करने वाले हैं। खगोल शास्त्र के मुताबिक इस दिन सूर्य उत्तरायण और उच्च राशि मेष में अवस्थित रहता है। इस दिन को ले राजा भागीरथ की कथा भी प्रचलित है, जिस कारण लोग गंगा मे नहा मोक्ष प्राप्त करते हैं।

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घाट पर व्रत कथा सुनने वालों का भी मजमा जमा था। महिलाएं खासकर भगवान विष्णु के सभी अवतारों के व्रत पाठ में जुटी हुई थी। पीपल के वृक्ष लगा उसके नीचे महिलाएं व्रत पाठ कर रहीं थी। बड़े-बुजुर्ग गरीबों को भोजन करा धर्म और पुण्य कमा रहे थे। गंगा घाट पर आस्था का मेला देर शाम तक जमा रहा।

रोज की तरह रविवार को बरारी सीढ़ी घाट सूना नहीं था। बैशाखी बुद्ध पूर्णिमा पर पुण्य कमाने वाले दोपहर से ही यहां एकत्रित हो रहे थे। इससे भी ज्यादा भीड़ रतजगा कर जमे लोगों की थी। आस्था की इस रेलमपेल में मन इस बात को लेकर भी विचलित हो रहा था कि इतनी भीड़ तो इसे और मैला कर देगी। भीड़ साबुन-सर्फ से नहा-धो रही थी और रात की सारी खुमारी त्याज्य पावन गंगा में बहा रही थी। खैर गंगा की ममता तो शायद आस्था में डुबकी लगाने वालों को माफ भी कर दे, मगर घाट पर दुकानें सजाए उन दुकानदारों का क्या करें जो खुलेआम प्लास्टिक की थैलियों में प्रसाद बेचते हैं और भक्त प्रसाद खरीद प्लास्टिक को गंगा में बहाते हैं। गंगा एक्शन प्लान में सरकार 15 सालों में 900 करोड़ रुपये खर्च करती है। स्वामी निगमानंद जान गंवाते हैं। स्वामी सानंद की आवाज संसद के कॉरिडोर में गुम हो जाती है। इन कवायदों और सुर्खियों के बावजूद अगर प्रदूषण निर्बाध जारी है, पर्यावरण का नुकसान होता रहे तो फिर इन सबका कोई मतलब नहीं। या फिर यह समझ लें कि गंगा ममतामयी है, माफ कर देगी। एक जमाना था मुंगेर घाट पर भग्गु सिंह के जहाज पर बैठने से पहले एकबारगी दिल जरूर मचलता था कि पांडे बाबा का चूड़ा-दही छक कर खा लें। मगर अब वो रोमांच कहां। जब से गंगा के ऊपर विक्रमशिला पुल, गांधी सेतु गुजरने लगे, तब से मोटर क्रांति ने नदियों से हमारा सामाजिक रिश्ता ही खत्म कर दिया।

हां हाइवे पर फर्राटा मारते ट्रकों के पीछे लिखे स्लोगनों गंगा तेरा पानी अमृत से मन में जरूर संतोष हो जाता है। गंगा अब बीमार दिखती है। उसकी गोद में रेत के गाद भर आए हैं। ऊपर से देखने पर लगता है गंगा के पेट को किसी ने चीर दिया है। बनारस, पटना से लेकर मुंगेर, भागलपुर तक गंगा एलबम की तस्वीर बन गई है। यह सब हुआ है हमारी आस्था के विस्फोट के बाद। जब तक नदियों के साथ सभ्यता जीती-बसती थी, तब तक नदियां हमारी सहचर थीं। पर अब लगता है नदियों से हमारा प्रयोजन पूरा हो चुका है। हां तीज-त्योहारों के दिन जब आस्था हिलोरे मारती है तब हम जरूर पाप धोने साबुन-सर्फ के साथ चले जाते हैं, डुबकी लेने। भुपेन हजारिका ने सच गाया है गंगा तुम गंगा बहती ही क्यों..।

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